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सीपीएम महासचिव चुनाव: एमए बेबी की जीत, पश्चिम बंगाल गुट नाराज़!

सीपीएम महासचिव चुनाव
सीपीएम महासचिव चुनाव

सीपीएम के छठे महासचिव को लेकर मदुरै पार्टी कांग्रेस में ऐतिहासिक फैसला

सीपीएम महासचिव के चुनाव में 24वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान केरल के वरिष्ठ नेता एमए बेबी को पार्टी का छठा महासचिव चुना गया। 71 वर्षीय बेबी, ईएमएस नंबूदरीपाद के बाद केरल से इस पद पर पहुंचने वाले दूसरे नेता हैं।

सीपीएम महासचिव चुनाव में पार्टी के भीतर से उठे आंतरिक विवादों के बीच हुआ, जहां पश्चिम बंगाल गुट ने महाराष्ट्र के नेता अशोक धावले के पक्ष में मतदान किया, लेकिन 16 सदस्यीय पोलित ब्यूरो में 11 नेताओं के समर्थन से बेबी की जीत तय हुई।

सीपीएम महासचिव चुनाव: पोलित ब्यूरो में बड़े बदलाव

पार्टी ने पोलित ब्यूरो सदस्यों की संख्या 17 से बढ़ाकर 18 करने का फैसला किया। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को पुनः शामिल किया गया, जबकि प्रकाश करात, वृंदा करात, माणिक सरकार और सुभाषिनी अली ने आयु सीमा नियम का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। 8 नए सदस्यों में मरियम धावले (महाराष्ट्र), यू वासुकी (तमिलनाडु), और श्रीदीप भट्टाचार्य (पश्चिम बंगाल) प्रमुख हैं।

केंद्रीय समिति चुनाव में अप्रत्याशित मोड़

इस सत्र में पहली बार केंद्रीय समिति के लिए चुनाव हुए, जहां महाराष्ट्र के डीएल कराड 31 वोटों से चुनाव हार गए। 84 सदस्यीय समिति में एक सीट खाली रही, जो पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर नए सवाल खड़े करती है। केरल से टीपी रामकृष्णन और केएस सलीखा समेत तीन नए नेताओं को समिति में जगह मिली।

बेबी के सामने प्रमुख चुनौतियां

नए महासचिव के रूप में बेबी का प्राथमिक लक्ष्य पार्टी को पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में पुनर्जीवित करना है, जहां 2011 और 2018 के बाद से भाजपा को बड़ी सफलता मिली है। उन्होंने अंग्रेजी दैनिक द हिंदू को दिए बयान में कहा, “संघ परिवार के विचारधारा से लड़ने और गैर-भाजपा दलों के साथ एकजुटता बनाना हमारी प्राथमिकता होगी।” विश्लेषकों के अनुसार, केरल में सीपीएम की मजबूत उपस्थिति के बावजूद, राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का प्रभाव 1990 के दशक के बाद से लगातार घटा है।

आंतरिक विरोध और भविष्य की रणनीति

चुनाव प्रक्रिया के दौरान, पश्चिम बंगाल गुट ने बेबी के नाम पर आपत्ति जताई, जिसके बाद केंद्रीय समिति ने रविवार को अंतिम मुहर लगाई। बेबी के समर्थकों का तर्क है कि उनका अनुभव और केरल मॉडल (सार्वजनिक शिक्षा-स्वास्थ्य में निवेश) राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को नई पहचान दे सकता है। हालांकि, पार्टी के युवा नेताओं ने नेतृत्व में उम्रदराज चेहरों पर सवाल उठाए हैं।

नए नेतृत्व का रोडमैप: क्या होगी अगली कार्ययोजना?

सूत्रों के अनुसार, सीपीएम अगले छह महीनों में देशभर में ‘भाजपा विरोधी जनसंपर्क अभियान’ चलाने की योजना बना रही है। साथ ही, छात्र-युवा संगठनों (SFI, DYFI) को सक्रिय करने और सोशल मीडिया पर मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने पर जोर दिया जाएगा। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले यह निर्णय पार्टी के लिए अस्तित्व का सवाल बना हुआ है।

पाठकों के लिए विशेष: सीपीएम का इतिहास और वर्तमान संकट

1964 में कांग्रेस से अलग होकर बनी सीपीएम ने 1977-2011 तक पश्चिम बंगाल में शासन किया।

2023 में पार्टी का राष्ट्रीय वोट शेयर घटकर मात्र 1.75% रह गया है।

केरल और त्रिपुरा को छोड़कर अन्य राज्यों में विधानसभा सीटें नगण्य हैं।

इस नए नेतृत्व के साथ, सीपीएम की यह कोशिश रंग लाएगी या नहीं, यह समय के साथ स्पष्ट होगा। फिलहाल, बेबी को पार्टी की एकता बनाए रखते हुए विचारधारा और व्यावहारिक राजनीति के बीच संतुलन बनाना होगा।

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