पहलगाम में आतंकी हमला: जनता का आक्रोश, आतंक के अंत की शुरुआत?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने पहलगाम में हुए नृशंस आतंकी हमले के विरोध में एक दिवसीय विशेष सत्र आयोजित किया। सत्ता पक्ष और विपक्ष ने दुर्भाग्यपूर्ण घटना को “कश्मीरियत के मूल्यों पर हमला” बताते हुए सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने का संकल्प लिया।
ऐतिहासिक एकजुटता: सदन का संकल्प
20 अप्रैल को पहलगाम में 28 निर्दोष पर्यटकों की हत्या के बाद, विधानसभा ने सर्वसम्मति से तीन पन्नों का प्रस्ताव पारित किया। इसमें आतंकवादियों द्वारा “चुनिंदा निशाना बनाने” की रणनीति की कड़ी निंदा की गई। उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने जोर देकर कहा, “यह हमला केवल जानलेवा नहीं, बल्कि कश्मीर की शांति और राष्ट्रीय एकता को तोड़ने की साजिश है।”
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पहलगाम हमले के बाद जनाक्रोश: ‘आतंक के अंत की शुरुआत’
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने घटना के बाद जम्मू के कठुआ से लेकर कश्मीर के कुपवाड़ा तक उभरे जनआक्रोश को “आतंकवाद के खात्मे का संकेत” बताया। उन्होंने कहा, “बंदूकें आतंकवादियों को नहीं रोक सकतीं, लेकिन जनसमर्थन से इस बुराई को जड़ से मिटाया जा सकता है।” इसी कड़ी में, श्रीनगर की जामिया मस्जिद सहित कई मस्जिदों ने पहली बार शुक्रवार की नमाज से पहले दो मिनट का मौन रखकर पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी।
राजनीतिक एकता और नई पहल
विपक्ष के नेता सुनील शर्मा (भाजपा), जीए मीर (कांग्रेस), और सज्जाद लोन (पीपुल्स कॉन्फ्रेंस) सहित सभी दलों ने हमले की निंदा करते हुए केंद्र सरकार के कूटनीतिक कदमों का समर्थन किया। प्रस्ताव में मीडिया और समाज से भड़काऊ बयानबाजी से बचने की अपील की गई, साथ ही अन्य राज्यों से कश्मीरी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया।
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शहीद आदिल हुसैन: कश्मीर की वीरता की मिसाल
प्रस्ताव में पर्यटकों को बचाते हुए शहीद हुए पुलिसकर्मी सैयद आदिल हुसैन शाह के साहस को “कश्मीर की असली भावना” बताया गया। अब्दुल्ला ने स्वीकार किया, “एक मेजबान के तौर पर, मैं उन्हें सुरक्षित घर नहीं भेज सका। यह मेरी व्यक्तिगत विफलता है।”
राज्य का दर्जा: अब्दुल्ला का स्पष्ट रुख
हमले के बाद राज्य के दर्जे की मांग को लेकर चर्चाओं पर अब्दुल्ला ने स्पष्ट किया, “28 लोगों की मौत के बाद राज्य की मांग करना शर्मनाक होगा। हमारी राजनीति इतनी सस्ती नहीं।” उन्होंने यूटी प्रशासन के साथ समन्वय बनाए रखने पर भी जोर दिया।
पहलगाम हमले का व्यापक प्रभाव
पहलगाम, जो कश्मीर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल है, में यह हमला 21 वर्षों में सबसे भीषण था। 2000 के दशक में इस क्षेत्र में आतंकी घटनाओं में 60% की कमी आई थी, लेकिन यह घटना सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है। विशेषज्ञों के अनुसार, पर्यटन पर निर्भर कश्मीर की अर्थव्यवस्था को इस हमले से 300 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है।
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निष्कर्ष: सद्भावना की नई उम्मीद
इस घटना ने न केवल सुरक्षा चुनौतियों को उजागर किया, बल्कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने साबित किया कि आतंकवाद उनकी एकता को तोड़ नहीं सकता। मस्जिदों से लेकर सड़कों तक, शांति और मानवता का संदेश स्पष्ट है: “कश्मीर की आवाज हिंसा नहीं, बल्कि सद्भाव की है।”
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