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केंद्र और कांग्रेस के बीच जाति जनगणना को लेकर तनाव !

भारत में जाति जनगणना एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है

भारत में जाति जनगणना एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। केंद्र सरकार और विपक्षी दलों के बीच इस मुद्दे को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस और विपक्षी राज्यों पर जाति जनगणना को “राजनीतिक हथियार” बनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में इसे पारदर्शी तरीके से शामिल किया जाएगा। वहीं, राहुल गांधी ने कांग्रेस के घोषणापत्र में जनगणना और आरक्षण सीमा बढ़ाने का वादा दोहराया है।

जाति जनगणना का वैश्विक और ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान विवाद

भारत में जाति आधारित आँकड़ों का इतिहास ब्रिटिश काल से जुड़ा है। 1871 से 1931 तक अंग्रेजों ने जनगणना में जाति को शामिल किया, लेकिन 1941 में इसे बंद कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद, 1951 की जनगणना में केवल अनुसूचित जाति (SC) और जनजाति (ST) को ही गिना गया। 1980 में मंडल आयोग ने पिछड़े वर्गों (OBC) को 27% आरक्षण देने की सिफारिश की, लेकिन यह 1931 की जनगणना के पुराने आँकड़ों पर आधारित थी। विडंबना यह है कि आज भी OBC आरक्षण और योजनाओं के लिए 90 साल पुराने डेटा का उपयोग हो रहा है।

विश्व बैंक की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जातिगत असमानता आर्थिक विकास को 30% तक धीमा कर सकती है। इसी तरह, नेशनल सैंपल सर्वे (NSSO) के 2017-18 के आँकड़े बताते हैं कि OBC परिवारों की औसत मासिक आय सवर्ण हिंदुओं की तुलना में 35% कम है। यह डेटा सामाजिक नीतियों में जाति को शामिल करने की जरूरत को रेखांकित करता है।

स्वतंत्रता के बाद से भारत में जनगणना में जाति को शामिल नहीं किया गया। 2011 में सामाजिक-आर्थिक जनगणना (SECC) की शुरुआत हुई, लेकिन इसके नतीजे कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। अब केंद्र सरकार का कहना है कि जाति जनगणना को “राष्ट्रीय एकता के लिए” पारदर्शी तरीके से किया जाएगा। वैष्णव के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना केंद्र का विषय है, लेकिन कुछ राज्यों ने इसे “अधूरे और गैर-पारदर्शी” तरीके से अंजाम दिया।

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जाति जनगणना और तकनीकी समाधान

2021 में नीति आयोग ने एक विस्तृत प्रस्ताव रखा था कि जनगणना को डिजिटल प्लेटफॉर्म (जैसे आधार-लिंक्ड डेटा) के साथ जोड़ा जाए, ताकि भ्रष्टाचार और डेटा लीक का जोखिम कम हो। इससे नागरिकों की गोपनीयता बनी रहेगी और वास्तविक आँकड़े एकत्रित होंगे। केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने पहले ही स्थानीय स्तर पर जाति डेटा को सार्वजनिक नीति निर्माण में शामिल किया है। उदाहरण के लिए, केरल ने 2015 में “कुटुम्बश्री” योजना में जातिगत आँकड़ों का उपयोग करके महिलाओं को लक्षित ऋण दिया।

राज्यों की भूमिका और नए प्रयोग

बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना के अलावा, महाराष्ट्र सरकार ने भी 2024 में जनगणना कराने की घोषणा की। हालाँकि, यहाँ चुनौती डेटा की विविधता है। उदाहरण के लिए, बिहार के सर्वे में OBCs को 27% और EBCs (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) को 36% श्रेणीबद्ध किया गया, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर OBCs की आबादी 52% मानी जाती है। इस अंतर के कारण केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल की कमी उजागर होती है।

सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका और कानूनी पहलू

2022 में सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा था कि “आरक्षण नीतियों के लिए वैज्ञानिक डेटा आवश्यक है।” न्यायालय ने केंद्र को जाति जनगणना के आँकड़ों को अपडेट करने का संकेत दिया था। इसके अलावा, 2023 में राजस्थान हाईकोर्ट ने एक फैसले में राज्य सरकारों को जाति आधारित सर्वेक्षण का अधिकार दिया, बशर्ते वे केंद्र के दिशानिर्देशों का पालन करें।

बिहार चुनाव से पहले जाति जनगणना का महत्व

बिहार में अक्टूबर 2023 में जारी जाति जनगणना के नतीजों के अनुसार, राज्य की 85% आबादी पिछड़े और हाशिए के समुदायों से आती है। यह आँकड़ा राज्य की राजनीति को पूरी तरह बदल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार का यह कदम बिहार विधानसभा चुनाव (2025) से पहले पिछड़े वर्गों को लुभाने की रणनीति हो सकती है।

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जाति जनगणना पर क्यों टिकी है राजनीति?

  1. आरक्षण नीति: जातिगत आँकड़ों के आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग तेज होगी।
  2. चुनावी समीकरण: OBC (पिछड़ा वर्ग) और SC/ST समुदायों का वोट बैंक सभी दलों के लिए अहम है।
  3. सामाजिक न्याय: जाति आधारित आँकड़े सरकारी योजनाओं के लक्षित क्रियान्वयन में मदद कर सकते हैं।

क्या कहते हैं आलोचक?

आलोचकों का मानना है कि जाति जनगणना समाज को विभाजित करने वाला कदम है। हालाँकि, समर्थक इसे “सामाजिक-आर्थिक असमानता मापने का वैज्ञानिक तरीका” बताते हैं। 2010 में मनमोहन सिंह सरकार ने जनगणना पर चर्चा की थी, लेकिन SECC के नतीजों को छिपाने का आरोप कांग्रेस पर लगता रहा।

जाति जनगणना का भविष्य और चुनौतियाँ

तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों ने हाल में जाति जनगणना शुरू की है, लेकिन इनके नतीजों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। केंद्र सरकार के नए प्रस्ताव के अनुसार, अगली जनगणना (अब तक कोविड के कारण स्थगित) में जाति को शामिल करने के लिए तकनीकी और प्रशासनिक ढाँचे को मजबूत किया जाएगा। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस प्रक्रिया में सामाजिक संगठनों और नागरिक समाज को भी शामिल किया जाना चाहिए।

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