भारत-पाकिस्तान तनाव दशकों से दक्षिण एशिया की सुरक्षा और स्थिरता के लिए चुनौती बना हुआ है। यह विवाद मुख्य रूप से कश्मीर को लेकर है, जिसे पाकिस्तान “फ्लैश प्वाइंट” बता रहा है। हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले (28 पर्यटकों की मौत) के बाद तनाव और बढ़ा है।
पाकिस्तान ने अमेरिका से मध्यस्थता की अपील की है, जबकि भारत ने सैन्य प्रतिक्रिया की “पूर्ण स्वतंत्रता” जताई है। इस पृष्ठभूमि में, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका और परमाणु जोखिम चिंता का केंद्र हैं।
भारत-पाकिस्तान तनाव की शुरुआत 1947 के विभाजन से हुई, जब कश्मीर का विलय भारत में हुआ, लेकिन पाकिस्तान ने इसे विवादित बताया। 1965 और 1999 के युद्ध, सियाचिन विवाद, और आतंकवादी घुसपैठ ने रिश्तों को और खराब किया।
2019 में भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के बाद तनाव चरम पर पहुंचा। पाकिस्तान ने इसे “अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन” बताया, जबकि भारत इसे आंतरिक मामला मानता है।
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22 अप्रैल के पहलगाम हमले ने भारत-पाकिस्तान तनाव को नए सिरे से उभारा। भारत ने आरोप लगाया कि पाकिस्तानी एजेंसियों ने आतंकवादियों को समर्थन दिया, जबकि पाकिस्तान ने इनकार किया।
इसी बीच, पाकिस्तान के राजदूत रिजवान सईद शेख ने अमेरिका से “शांतिदूत” की भूमिका निभाने की गुजारिश की।
उन्होंने कहा कि कश्मीर दुनिया का सबसे संवेदनशील “परमाणु फ्लैश प्वाइंट” है, जहां चीन, भारत और पाकिस्तान तीनों परमाणु शक्ति संपन्न देशों की उपस्थिति है।
अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने भारत के “आत्मरक्षा के अधिकार” का समर्थन किया, लेकिन तनाव कम करने का भी आग्रह किया। वहीं, UN ने दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है।
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में भारत के साथ रक्षा समझौतों (जैसे COMCASA, BECA) को मजबूत किया है, जिससे पाकिस्तान की चिंताएं बढ़ी हैं।
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भारत-पाकिस्तान तनाव का सबसे बड़ा खतरा दोनों देशों के परमाणु शस्त्रागार से है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, भारत के पास 160 और पाकिस्तान के पास 165 परमाणु वारहेड हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि सीमा पार आतंकवाद और कश्मीर मुद्दे पर बातचीत के बिना स्थायी शांति मुश्किल है। हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया है कि वह “टेरर और टॉक” (आतंक और वार्ता) को साथ नहीं चलने देगा।
भारत-पाकिस्तान तनाव को कम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव और पारदर्शी वार्ता जरूरी है। अमेरिका और चीन जैसे देश मध्यस्थ बन सकते हैं, लेकिन भारत अक्सर बाहरी हस्तक्षेप को खारिज करता है।
ऐसे में, स्थानीय स्तर पर कश्मीरी जनता की आवाज को शामिल करना और आतंकवाद पर पाकिस्तान की कार्रवाई इस संकट की कुंजी हो सकती है।
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