धार्मिक परिसर सुरक्षा विवाद: स्वर्ण मंदिर में तोप तैनाती पर विवाद गहराया

धार्मिक परिसर में सुरक्षा विवाद को लेकर SGPC और सेना प्रमुख के बयान आमने-सामने
धार्मिक परिसर सुरक्षा विवाद अब एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है। विवाद तब शुरू हुआ जब भारतीय वायु रक्षा के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर इवान डी’कुन्हा ने यह दावा किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान स्वर्ण मंदिर परिसर में एयर डिफेंस गन तैनात की गई थी और इसके लिए मंदिर प्रबंधन से अनुमति ली गई थी।
हालांकि, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC), स्वर्ण मंदिर के हेड ग्रंथी और अन्य सिख धर्मगुरुओं ने इस दावे को नकारते हुए इसे “झूठा और भ्रामक” करार दिया है।
SGPC और धर्मगुरुओं का संयुक्त खंडन :
SGPC अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने इस बयान को “चौंकाने वाला” बताते हुए खंडन किया। उन्होंने कहा:
- “SGPC ने ऐसी कोई अनुमति नहीं दी।”
- “धार्मिक स्थलों पर सैन्य गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जाती।”
- “भारत सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।”
मुख्य ग्रंथी ज्ञानी रघबीर सिंह, जो उस समय अमेरिका में प्रवास पर थे, ने भी कहा:
• “मैं 24 अप्रैल से 14 मई तक अमेरिका में था। मेरी गैरहाज़िरी में किसी प्रकार की सैन्य अनुमति नहीं दी गई।”
ज्ञानी अमरजीत सिंह, जो तब कार्यवाहक के रूप में तैनात थे, ने भी पुष्टि की:
- “कोई तोप या हथियार स्वर्ण मंदिर परिसर में नहीं लाया गया।”
- “सभी धार्मिक गतिविधियां बिना किसी रुकावट के चलीं।”
सेना की स्थिति और मीडिया रिपोर्ट :
लेफ्टिनेंट जनरल डी’कुन्हा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान खतरे की स्थिति में उन्होंने कई संवेदनशील स्थलों पर एयर डिफेंस तैनात की थी। उन्होंने विशेष रूप से स्वर्ण मंदिर का उल्लेख करते हुए दावा किया कि वहां “अनुमति के साथ” गन तैनात की गई थी।
हालांकि, बाद में सेना के प्रवक्ता ने सफाई देते हुए कहा कि:
- “स्वर्ण मंदिर परिसर में कोई एयर डिफेंस गन तैनात नहीं की गई थी।”
- “मीडिया रिपोर्ट्स में कुछ बातों को गलत ढंग से पेश किया गया है।”
- “तैनाती की गई थी, पर धार्मिक स्थलों पर नहीं।”
धार्मिक मर्यादा और संवैधानिक प्रश्न :
धार्मिक परिसर सुरक्षा विवाद केवल तकनीकी अनुमति का मामला नहीं है, बल्कि इससे जुड़े हैं संवैधानिक और सांस्कृतिक पहलू :
- भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
- धार्मिक स्थलों पर बिना अनुमति सैन्य उपस्थिति या गतिविधि संवैधानिक मर्यादा के विरुद्ध मानी जा सकती है।
- सिख धर्म में पवित्र स्थलों की मर्यादा और पवित्रता सर्वोपरि मानी जाती है।
इसलिए SGPC और अकाल तख्त के जत्थेदारों ने इस विवाद को केवल “भ्रामक प्रचार” नहीं, बल्कि धार्मिक विश्वास पर हमला माना है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और केंद्र की चुप्पी :
इस विवाद पर विपक्षी दलों और पंजाब के राजनीतिक नेताओं ने भी सवाल उठाए हैं:
- आम आदमी पार्टी के सांसदों ने मांग की कि सरकार स्पष्ट करे कि ऐसे संवेदनशील बयान कैसे सामने आए।
- कांग्रेस ने कहा कि धार्मिक स्थलों का राजनैतिक या सैन्य उपयोग नहीं होना चाहिए।
- शिरोमणि अकाली दल ने केंद्र सरकार से संसद में बयान देने की मांग की।
हालांकि, अब तक केंद्र सरकार या रक्षा मंत्रालय की ओर से कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं आया है।
मीडिया और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया :
यह मुद्दा सोशल मीडिया पर भी तेजी से फैल गया। ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर #GoldenTempleTrending टॉप हैशटैग में शामिल रहा। यूज़र्स ने सवाल किया:
- क्या धार्मिक स्थलों की पवित्रता से खिलवाड़ किया जा रहा है?
- क्या यह बयान एक रणनीतिक चूक है या जानबूझकर किया गया प्रचार?
कई सिख संगठनों ने दिल्ली, अमृतसर और लुधियाना में शांतिपूर्ण प्रदर्शन भी किए और सरकार से स्पष्टीकरण मांगा।
SGPC की मांग – जांच हो और दोषियों पर कार्रवाई हो :
SGPC अध्यक्ष धामी ने केंद्र सरकार से मांग की है कि:
- “इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच करवाई जाए।”
- “अगर कोई अधिकारी झूठा बयान दे रहा है, तो उस पर कार्रवाई हो।”
- “धार्मिक स्थलों पर भविष्य में किसी भी प्रकार की तैनाती की नीति स्पष्ट की जाए।”
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) का संवैधानिक और धार्मिक दायित्व :
स्वर्ण मंदिर की देखरेख शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) करती है, जो सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था मानी जाती है। गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 के तहत गठित SGPC का दायित्व सिख धार्मिक स्थलों की मर्यादा बनाए रखना है। यही कारण है कि SGPC सेना की बिना अनुमति मौजूदगी या धार्मिक स्थल के पास सैन्य गतिविधियों को लेकर संवेदनशील रहती है। SGPC ने इसे धार्मिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा और केंद्रीय गृह मंत्रालय से भी स्थिति स्पष्ट करने की माँग की।
- SGPC की स्थापना 1920 में सिख सुधार आंदोलन के तहत हुई थी
- वर्तमान में SGPC पंजाब, हरियाणा और हिमाचल के प्रमुख गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है
- SGPC धार्मिक स्वतंत्रता और सिख मर्यादा की रक्षा की जिम्मेदारी निभाती है
- हालिया विवाद में SGPC ने सेना के दावे को “झूठा और भ्रामक” बताया
विश्वास की नींव हिलने न पाए :
धार्मिक परिसर सुरक्षा विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत जैसे बहु-धार्मिक देश में पवित्र स्थलों की पवित्रता पर अत्यधिक संवेदनशीलता रहती है। ऐसे मामलों में पारदर्शिता, संवाद और जिम्मेदारी से काम लेना न केवल सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए जरूरी है, बल्कि यह संवैधानिक जिम्मेदारी भी है। चाहे सुरक्षा का कोई भी खतरा हो, धार्मिक संस्थाओं के विश्वास और जनता की आस्था से समझौता नहीं होना चाहिए।
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