सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल: सफलता की कुंजी है भारत की एकजुटता

अमेरिका में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की भूमिका
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत को झकझोर दिया। 26 निर्दोष पर्यटकों की मौत ने देश को स्तब्ध कर दिया। इसके बाद, भारत ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से वैश्विक समर्थन जुटाने की रणनीति अपनाई। शशि थरूर के नेतृत्व में अमेरिका गए प्रतिनिधिमंडल ने न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास में अपना पक्ष रखा।
थरूर ने स्पष्ट किया, “हमले का उद्देश्य भारत को धर्म के आधार पर बांटना था।” उन्होंने आगे कहा, “लेकिन इसके विपरीत, देश ने अभूतपूर्व एकजुटता दिखाई।” यह बयान भारत की आंतरिक मजबूती को उजागर करता है। प्रतिनिधिमंडल में भाजपा, टीडीपी और जेएमएम जैसे विभिन्न दलों के सांसद शामिल थे। इससे राजनीतिक विविधता के बावजूद राष्ट्रहित में एकमत होने का संदेश गया।
ऑपरेशन सिंदूर पर थरूर के विचार
7 मई को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। इस ऑपरेशन को थरूर ने “सटीक और सुनियोजित” बताया। उन्होंने कहा, “हमने पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया।” इनमें मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा और बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के कैंप शामिल थे।
थरूर ने जोर देकर कहा, “यह प्रतिशोध नहीं, बल्कि स्पष्ट चेतावनी थी।” उनके अनुसार, भारत ने संयम और दृढ़ता के बीच संतुलन बनाया। साथ ही, उन्होंने विपक्षी होते हुए भी सरकार की कार्रवाई का समर्थन किया। यह सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की सार्थकता साबित करता है।
इस मिशन का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारत की चिंताओं से अवगत कराना था। थरूर ने अमेरिकी मीडिया और नीति निर्माताओं के साथ व्यापक चर्चा की। उन्होंने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता की अपील की।
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बहरीन में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का संदेश
वहीं, बहरीन में बैजयंत पांडा के नेतृत्व में गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान को घेरा। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने पाकिस्तान को “विफल राज्य” करार दिया। उन्होंने कहा, “भारत ने हर हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया है।”
ओवैसी ने बहरीन के नेताओं के सामने पहलगाम पीड़ितों की दुखद कहानियां साझा कीं। उन्होंने बताया, “एक महिला शादी के छह दिन बाद विधवा हो गई।” इससे आतंकवाद की मानवीय कीमत का एहसास हुआ। प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान को एफएटीएफ ग्रे सूची में डालने की मांग रखी।
ओवैसी का पाकिस्तान को चेतावनी
ओवैसी ने स्पष्ट किया, “आतंकवाद की जड़ पाकिस्तान है।” उन्होंने भारत की रक्षा प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा, “हमारी वायु सुरक्षा ने हर खतरे को नाकाम किया।” साथ ही, उन्होंने सरकार की नागरिक सुरक्षा नीतियों को सराहा।
प्रतिनिधिमंडल में भाजपा, एआईएमआईएम और अन्य दलों के सांसद शामिल थे। सभी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर एकस्वर में बात की। ओवैसी ने बहरीन से पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक दबाव बनाने का आग्रह किया। उनका कहना था, “एफएटीएफ की ग्रे सूची आतंकवाद के वित्तपोषण को रोक सकती है।”
इस दौरान, भाजपा सांसद बैजयंत पांडा ने भारत की कूटनीतिक सफलताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हमने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की वास्तविकता से अवगत कराया है।” यह प्रयास भारत की साख को मजबूत करने वाला साबित हुआ।
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क्यों महत्वपूर्ण हैं सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल?
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भारत की आंतरिक एकता को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करते हैं। ये प्रतिनिधिमंडल दिखाते हैं कि राष्ट्रहित में सभी दल एकजुट हैं। थरूर और ओवैसी जैसे विपक्षी नेताओं का समर्थन इसका उदाहरण है।
2019 के पुलवामा हमले के बाद भी ऐसे प्रयास हुए थे। उस समय भी विपक्ष ने सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। इस बार, प्रतिनिधिमंडलों ने पाकिस्तान की विफल नीतियों को उजागर करने पर ध्यान केंद्रित किया।
इन प्रतिनिधिमंडलों का चयन सावधानी से किया जाता है। अमेरिका में थरूर जैसे वैश्विक पहचान वाले नेता भेजे गए। वहीं, बहरीन में ओवैसी जैसे नेता ने अल्पसंख्यक एकजुटता का संदेश दिया। यह रणनीति अंतरराष्ट्रीय समझ बनाने में कारगर साबित हुई।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
अमेरिका और बहरीन में भारतीय प्रतिनिधिमंडलों को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। अमेरिकी मीडिया ने भारत की संयमित कूटनीति की सराहना की। द न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा, “भारत ने आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाया।”
बहरीन की सरकार ने पाकिस्तान की निंदा करने का आश्वासन दिया। उन्होंने एफएटीएफ ग्रे सूची के मुद्दे पर सहयोग का संकेत दिया। यह भारत की कूटनीतिक जीत मानी जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल भविष्य में आतंकवाद रोकने में मदद करेगी। साथ ही, इससे पाकिस्तान को अलग-थलग करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। भारत की साख अंतरराष्ट्रीय मंच पर और मजबूत हुई है।
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ऐतिहासिक संदर्भ में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल
भारत में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की परंपरा पुरानी है। 1971 के युद्ध के दौरान भी ऐसे प्रतिनिधिमंडल विदेशों में भेजे गए थे। उद्देश्य हमेशा एक रहा है: राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन।
1999 के कारगिल युद्ध के बाद भी इसी रणनीति का उपयोग किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्षी नेताओं को प्रतिनिधिमंडलों में शामिल किया। इससे वैश्विक समर्थन जुटाने में मदद मिली।
वर्तमान परिदृश्य में, यह परंपरा और प्रासंगिक हो गई है। सोशल मीडिया और वैश्विक मीडिया के युग में संदेश पहुंचाना अहम है। भारत ने इसे समझते हुए बहु-स्तरीय कूटनीति अपनाई है।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
हालाँकि, सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को लेकर कुछ आलोचनाएँ भी सामने आईं। कुछ विश्लेषकों ने इसे “प्रतीकात्मक कदम” बताया। उनका कहना है कि वास्तविक बदलाव के लिए ठोस कूटनीतिक दबाव जरूरी है।
दूसरी ओर, कुछ नेताों ने प्रतिनिधिमंडलों में विविधता की कमी पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि छोटे क्षेत्रीय दलों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला। इससे मिशन की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है।
इन आलोचनाओं के बावजूद, प्रतिनिधिमंडलों ने अपना उद्देश्य पूरा किया। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की आवाज मजबूत हुई। साथ ही, आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक एकजुटता बनाने में सफलता मिली।
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सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल: एकता ही ताकत
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने साबित किया कि भारत चुनौतियों का मुकाबला एकजुट होकर करता है। थरूर और ओवैसी जैसे विरोधी विचारधाराओं के नेताओं ने राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
आतंकवाद के खिलाफ यह संघर्ष अभी जारी है। परंतु, भारत की साझा इच्छाशक्ति इसे मजबूती से लड़ने का संकल्प देती है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आंतरिक एकता इसकी सफलता की कुंजी हैं।
भविष्य में, ऐसे प्रतिनिधिमंडल और अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। आवश्यकता है कि सत्ता में बैठे राजनीतिक दल व्यक्तिगत मतभेदों से ऊपर उठें। तभी भारत वैश्विक मंच पर अपनी आवाज का प्रभाव बढ़ा पाएगा।
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