मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप वजीफ़ा विलंब से छात्र संकट में
मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप वजीफ़ा विलंब: छात्रों की व्यथा
फ़ेलोशिप के तहत वजीफ़ा रुकने से पीएचडी शोधार्थी संकट में हैं। दिसंबर 2024 से मई 2025 तक का वजीफ़ा नहीं मिला है। कई छात्रों को पहले से ही देरी का सामना करना पड़ रहा है। अल्पसंख्यक समुदायों के ये शोधकर्ता वित्तीय और मानसिक तनाव झेल रहे हैं। सरकार की चुप्पी ने उनकी चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप क्या है?
मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा चलाई जाती है। यह मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के पीएचडी शोधार्थियों को वित्तीय सहायता देती है। NET परीक्षा पास करने वाले छात्र ही इसके पात्र हैं। परिवार की वार्षिक आय 6 लाख रुपये से कम होनी चाहिए। इस फेलोशिप की शुरुआत 2009 में हुई थी।
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फ़ेलोशिप की मुख्य जानकारी
पैरामीटर | विवरण |
जेआरएफ (पहले 2 वर्ष) | 37,000 रुपये मासिक |
एसआरएफ (अगले 3 वर्ष) | 42,000 रुपये मासिक |
कुल लाभार्थी (2023 तक) | 1,466 शोधार्थी |
जेआरएफ प्राप्तकर्ता | 907 |
एसआरएफ प्राप्तकर्ता | 559 |
नोडल एजेंसी | NMDFC (पहले UGC) |
मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप वजीफ़ा विलंब की वर्तमान स्थिति
दिसंबर 2024 से वजीफ़ा रुका हुआ है। कुछ छात्रों को इससे पहले भी भुगतान नहीं मिला। NMDFC के अनुसार, मंत्रालय ने अक्टूबर-नवंबर 2024 के बाद फंड नहीं दिया। मई 2025 तक भी स्थिति नहीं सुधरी। सांसदों ने मंत्री किरेन रिजिजू को पत्र लिखकर कार्रवाई मांगी है। फिर भी, सरकार की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया।
विलंब के कारण शोधार्थियों पर प्रभाव
वित्तीय संकट ने छात्रों का जीवन मुश्किल बना दिया है। कई लोग उधार लेकर गुजारा कर रहे हैं। कालू तमांग (कोलकाता) कहते हैं, “छह महीने से मेरा शोध ठप है।” दिल्ली की एक छात्रा ने बताया, “किराया चुकाने के लिए दोस्तों से उधार लेना पड़ा।” मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है। रजिया खातून (कलकत्ता यूनिवर्सिटी) का स्वास्थ्य खराब हुआ है। किताबें या फील्डवर्क के लिए पैसे नहीं बचे।
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सरकारी रुख और बजट में कटौती
सरकार ने 2022-23 में मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप बंद कर दी। मौजूदा लाभार्थियों को पूरा वजीफ़ा देने का वादा किया गया। लेकिन, 2025-26 के बजट में फंडिंग 4.9% घटाई गई। 45.08 करोड़ से घटाकर 42.84 करोड़ रुपये कर दिया गया। HRA भी UGC के नए नियमों के अनुसार नहीं बढ़ाया गया। इससे छात्रों को भेदभाव महसूस हो रहा है।
विद्वानों की मांग और भविष्य
शोधार्थी समय पर वजीफ़ा और पारदर्शिता चाहते हैं। जम्मू यूनिवर्सिटी के जसप्रीत सिंह कहते हैं, “32 साल की उम्र में परिवार से पैसे माँगना शर्मिंदगी भरा है।” उनकी मुख्य मांगें हैं:
- तुरंत बकाया वजीफ़ा जारी किया जाए।
- HRA को UGC दिशानिर्देशों के अनुसार बढ़ाया जाए।
- भविष्य में देरी न हो, इसकी गारंटी दी जाए।
कई छात्रों ने RTI दायर की, लेकिन जवाब नहीं मिला।
धूमिल होती आशा की किरण
मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप अल्पसंख्यक छात्रों के लिए जीवनरेखा है। सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। वजीफ़ा जारी करने से उनका शोध फिर से शुरू हो सकेगा। आखिरकार, शिक्षा का अधिकार हर छात्र का मौलिक अधिकार है। इसलिए, मौलाना आज़ाद फ़ेलोशिप वजीफ़ा विलंब को दूर करना जरूरी है। तभी “सबका साथ, सबका विकास” का सपना साकार होगा।
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