बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- मैंग्रोव क्षेत्र में अतिक्रमण को कानूनी संरक्षण नहीं

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मैंग्रोव क्षेत्र में अतिक्रमण करने वालों की याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि राहत देना अवैधता को बढ़ावा देगा। जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और अद्वैत सेठना की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। उन्होंने 9 अप्रैल, 2021 को कांदिवली पश्चिम में हुई तोड़फोड़ को सही ठहराया।
- यह फैसला कानून की सर्वोच्चता को दर्शाता है।
- सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे को न्यायपालिका बर्दाश्त नहीं करेगी।
मुख्य बिंदु :
- बॉम्बे हाईकोर्ट ने मैंग्रोव भूमि पर अवैध झुग्गियों को राहत देने से किया इनकार।
- जस्टिस कुलकर्णी-सेठना की पीठ ने 2021 की तोड़फोड़ को पूरी तरह जायज़ ठहराया।
- कोर्ट ने कहा: अवैध कब्जे पर राहत देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
- स्लम अधिनियम की धारा 3Z-6 वन व मैंग्रोव क्षेत्र को सुरक्षा से बाहर करती है।
- सरकारी वकील ने बताया- याचिकाकर्ता बार-बार अतिक्रमण करने वाले और तथ्य छुपाने वाले हैं।
- कोर्ट ने माना- संरक्षित भूमि पर स्लम नियमों के तहत पुनर्वास का दावा अस्वीकार्य है।
- दहिसर में निवासियों ने भी मैंग्रोव कटाई व संभावित बेदखली पर चिंता जताई।
वन भूमि पर अवैध निर्माण: एक गंभीर चिंता
पीठ ने सार्वजनिक भूमि पर अवैध झुग्गियों पर चिंता व्यक्त की। ये निर्माण पर्यावरण संरक्षण का उल्लंघन करते हैं। साथ ही, सार्वजनिक संसाधनों पर भी दबाव डालते हैं। कोर्ट ने साफ किया कि अवैध कब्जाधारियों को राहत नहीं मिलेगी।
- न्यायालय ने इसे गैरकानूनी आचरण को पुरस्कृत करने जैसा बताया।
- ऐसी मिसाल कायम नहीं की जा सकती।
याचिकाकर्ताओं के तर्क और सरकारी पक्ष
याचिकाकर्ताओं के वकील रोनिता भट्टाचार्य ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ‘संरक्षित कब्जाधारी’ हैं। उन्होंने महाराष्ट्र स्लम क्षेत्र अधिनियम, 1971 का हवाला दिया। उन्होंने पुनर्वास का अधिकार मांगा। उन्होंने दो सरकारी प्रस्तावों (जीआर) का भी उल्लेख किया। इनमें 2000 और 2011 से पहले के निवासियों को लाभ देने की बात थी। भट्टाचार्य ने विध्वंस को “अवैध” बताया। उन्होंने तत्काल वैकल्पिक आवास की मांग की।
- सरकारी वकील उमा पलसुलेदेसाई ने याचिका का विरोध किया।
- उन्होंने इसे “गलत तरीके से तैयार किया गया” बताया।
बार-बार अतिक्रमण और कानून का दायरा
राज्य ने कहा कि याचिकाकर्ता बार-बार अतिक्रमण करने वाले हैं। उन्होंने संरक्षित वन और मैंग्रोव बफर जोन में घर बनाए। ये क्षेत्र स्लम अधिनियम से स्पष्ट रूप से बाहर हैं। पहले भी उनकी संरचनाएं ध्वस्त की गई थीं। पुनर्निर्माण के प्रयास पर प्राथमिकी भी दर्ज हुई थी। सरकारी वकील उमा पलसुलेदेसाई ने याचिकाकर्ताओं पर आरोप लगाए। उन्होंने महत्वपूर्ण तथ्यों को दबाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि क्षेत्र आरक्षित वन भूमि के रूप में दर्ज है। सभी उचित प्रक्रियाओं का पालन किया गया था।
- सार्वजनिक नोटिस जारी किए गए थे।
- दस्तावेजों का सत्यापन भी किया गया था।
कोर्ट का स्पष्टीकरण और कानूनी निहितार्थ
अदालत ने याचिकाकर्ताओं की दलीलें खारिज कर दीं। याचिकाकर्ता ‘पात्र झुग्गी निवासी’ के रूप में योग्य नहीं थे। भूमि को कभी भी स्लम क्षेत्र के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया था। याचिकाकर्ताओं द्वारा उद्धृत जीआर वन क्षेत्रों में लागू नहीं थे। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता कोई कानूनी अधिकार स्थापित नहीं कर पाए। कोई भी राहत देना “अवैधता पर प्रीमियम लगाने” जैसा होगा। कोर्ट ने याचिका को “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” कहा। हालांकि, कोई जुर्माना नहीं लगाया गया।
- मुकदमेबाजी में ईमानदारी और पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
- वन भूमि पर मैंग्रोव क्षेत्र में अतिक्रमण को कानूनी संरक्षण नहीं मिलेगा।
संरक्षित वनों और मैंग्रोव भूमि पर झुग्गीवासियों के अधिकार
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को साफ किया। संरक्षित जंगलों पर बसे झुग्गीवासी पुनर्वास नहीं मांग सकते। इसमें मैंग्रोव भूमि और बफर जोन शामिल हैं। जस्टिस गिरीश एस कुलकर्णी और अद्वैत सेठना की खंडपीठ ने महाराष्ट्र सरकार के रुख को बरकरार रखा। स्लम अधिनियम की धारा 3Z-6 वन क्षेत्रों को इसके दायरे से बाहर रखती है। परिणामस्वरूप, वन भूमि पर अतिक्रमण करने वालों को सुरक्षा नहीं मिलती।
- यह मामला कांदिवली के चारकोप में लक्ष्मीनगर के चार निवासियों से जुड़ा था।
- उनकी झोपड़ियाँ अप्रैल 2021 में ध्वस्त कर दी गई थीं।
धारा 3Z-6 और अधिनियम की प्रयोज्यता
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे 1980 से रह रहे थे। वे पुनर्वास के पात्र थे। उन्होंने 2000 और 2011 से पहले के निवासियों को सुरक्षा देने वाले जीआर का हवाला दिया। हालांकि, राज्य ने कहा कि यह भूमि आरक्षित वन है। यह सर्वेक्षण संख्या 39 के तहत वर्गीकृत है। स्लम अधिनियम की धारा 3Z-6 ऐसे क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से बाहर करती है। इसमें तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) भी शामिल है। कोर्ट ने इस दलील से सहमति जताई।
- पीठ ने कहा कि मैंग्रोव क्षेत्र में अतिक्रमण पर स्लम अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
- याचिकाकर्ता अधिनियम के तहत संरक्षित अधिभोगियों के रूप में लाभ का दावा नहीं कर सकते।
दहिसर में मैंग्रोव विनाश और स्थानीय चिंताएं
अदालत ने यह भी कहा कि क्षेत्र को कभी स्लम घोषित नहीं किया गया। याचिकाकर्ता पात्र झुग्गी निवासियों की परिभाषा को पूरा नहीं करते। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि दावा “कानूनी रूप से अस्थिर” था। याचिका खारिज कर दी गई। इस बीच, दहिसर पश्चिम के निवासियों ने मैंग्रोव विनाश पर चिंता जताई है। उन्होंने राजनीतिक नेताओं से तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया।
- दहिसर में भी निवासियों को इसी तरह की बेदखली का डर है।
- वे सरकार से मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने का आग्रह कर रहे हैं।
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