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“वक्फ बिल के बाद अब ईसाइयों की बारी, RSS पत्रिका के विवादित लेख पर राहुल-विजयन का हमला”

"वक्फ बिल के बाद अब ईसाइयों को निशाना? RSS पत्रिका के विवादित लेख पर राहुल-विजयन का हमला"

वक्फ बिल के बाद अब ईसाइयों को निशाना ? RSS से जुड़ी पत्रिका के लेख पर विवाद

राहुल गांधी और पिनाराई विजयन ने संघ परिवार पर उठाए सवाल

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में छपे एक विवादास्पद लेख को लेकर संघ परिवार की आलोचना की है। इस लेख में दावा किया गया था कि “कैथोलिक चर्च देश का सबसे बड़ा गैर-सरकारी भूमि मालिक है”। विवाद बढ़ने के बाद पत्रिका ने लेख को अपनी वेबसाइट से हटा लिया, लेकिन इससे राजनीतिक बहस तेज हो गई है।

लेख के विवादित पॉइंट ?

  • संघ परिवार की ऑर्गनाइजर पत्रिका के लेख में दावा किया गया कि कैथोलिक चर्च के पास 7 करोड़ हेक्टेयर जमीन है, जिसका अनुमानित मूल्य 20,000 करोड़ रुपये है। इस भूमि स्वामित्व के ऐतिहासिक संदर्भ को देते हुए, लेख में कहा गया है, “कैथोलिक चर्च ने ब्रिटिश शासन के दौरान अपनी अधिकांश भूमि का अधिग्रहण किया। 1927 में, ब्रिटिश प्रशासन ने भारतीय चर्च अधिनियम पारित किया, जिससे चर्च को बड़े पैमाने पर भूमि अनुदान की सुविधा मिली। इनमें से कई संपत्तियों का इस्तेमाल मिशनरी संस्थानों, स्कूलों और धार्मिक केंद्रों की स्थापना के लिए किया गया था। ये भूमि अनुदान 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक जारी रहे, जिससे कैथोलिक चर्च के पास देश भर में अचल संपत्ति का एक बड़ा पोर्टफोलियो बन गया
  • लेख में आरोप लगाया गया कि चर्च ने ब्रिटिश शासन के दौरान जमीन हासिल की और मिशनरी संस्थानों के जरिए धर्मांतरण को बढ़ावा दिया।
  • संघ परिवार की इस पत्रिका में साथ ही, यह भी कहा गया कि वक्फ बोर्ड की जमीनें कैथोलिक चर्च के मुकाबले कम हैं।

राहुल गांधी का आरोप – अब ईसाइयों की बारी

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा, मैंने कहा था कि वक्फ बिल मुसलमानों पर हमला है, लेकिन यह अन्य समुदायों को निशाना बनाने की मिसाल बनेगा। RSS ने ईसाइयों को टारगेट करने में देर नहीं की। संविधान ही हमारी सुरक्षा कर सकता है। राहुल गांधी ने आगे पोस्ट में कहा कि “संघ परिवार की रणनीति एक के बाद एक अल्पसंख्यक समुदायों को टारगेट करने की है।

केरल के सीएम पिनाराई विजयन का निशाना ?

केरल के मुख्यमंत्री और सीपीएम (CPI) नेता पिनाराई विजयन ने इस लेख को अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिश बताया। उन्होंने संघ परिवार पर निशाना साधते हुए कहा, वक्फ बिल पास होने के बाद अब चर्च की संपत्ति पर निशाना साधा जा रहा है। यह संघ परिवार की सांप्रदायिक मानसिकता को दिखाता है। उन्होंने सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों से एकजुट होकर इसका विरोध करने का आह्वान किया।

भाजपा और RSS का जवाब :

  • भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने इस विवाद पे कहा कि यह एक पुराना लेख था, जिसे गलती से शेयर कर दिया गया और बाद में हटा लिया गया।
  • टॉम वडक्कन ने दावा किया कि केंद्र की भारती जनता पार्टी एवं RSS ईसाइयों के साथ हैं और केरल राज्य के ईसाइयों एवं वक़्फ़ बोर्ड के बीच चल रहे मुनंबम जमीन विवाद में केरल के ईसाइयों का समर्थन किया।
  • वही RSS की ऑर्गनाइजर पत्रिका के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने लेख हटाने के बाद एक नया लेख पोस्ट किया, जिसका शीर्षक था हमारी जमीन, वक्फ नहीं

केरल में क्यों बढ़ रहा है विवाद ?

केरल में भारती जनता पार्टी अपनी जमीनी पकड़ को मजबूत करने के लिए ईसाई समुदाय का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन ऑर्गनाइजर पत्रिका में सम्पादित यह लेख उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। हालांकि केरला राज्य ईसाई परिवार और वक्फ बोर्ड में मुनंबम जमीन के लिए विवाद चल रहा है, जहां 600 से अधिक ईसाई परिवार उनके जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावों के खिलाफ लड़ रहे हैं। भाजपा ने वक्फ बिल के पास होने का जश्न मनाया था, लेकिन अब यह लेख नया विवाद खड़ा कर सकता है।

क्या है वक्फ संशोधन कानून ?

  • इस कानून के तहत वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन सरकारी नियंत्रण में लाया गया है।
  • जब की विपक्ष का आरोप है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय जो की अल्पसंख्यक है सीधा- सीधा उनकेअधिकारों पर हमला है।
  • विपक्ष द्रवारा ये आशंका जताई जा रही है कि मुस्लिम समुदाय के बाद अब सरकार ईसाई संस्थानों की संपत्तियों पर भी निशाना साधा सकती है।

क्या अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है ?

इस लेख के विवाद ने एक बार फिर संघ परिवार और देश भर के अल्पसंख्यकों के बीच तनाव को उजागर किया है। जहां RSS और भाजपा इसे गलतफहमी बता रहे हैं, वहीं विपक्ष इसे सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा मान रहा है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा और तूल पकड़ सकता है, खासकर केरल एवं वैसे राज्यों में जहां ईसाई समुदाय की अहम भूमिका है।

धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की यह बहस अब राजनीतिक मोर्चे पर और तेज होगी। क्या सरकार इस पर स्पष्टीकरण देगी? या विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाएगा?

 

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