शाह और अंग्रेजी विवाद : देशभर में छिड़ा बड़ा विवाद और तेज विरोध

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान ने देश में शाह और अंग्रेजी विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा था, “भारत में अंग्रेजी बोलने वालों को जल्द ही शर्म आएगी।” यह टिप्पणी भारतीय राजनीति में नया तूफान लाई। शाह ने अंग्रेजी को औपनिवेशिक विरासत बताया। उनके अनुसार, भारतीय संस्कृति को “विदेशी भाषाओं” से नहीं समझा जा सकता। उनका मानना है कि हमारी भाषाएं हमारी संस्कृति का गहना हैं। इनके बिना हम सच्चे भारतीय नहीं रह सकते। यह बयान हिंदी पुस्तक “मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं” के विमोचन पर 19 जून, 2025 को आया।
- इस बयान से तमिलनाडु जैसे राज्यों में तुरंत तीखी प्रतिक्रियाएं आईं।
- यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के त्रि-भाषा फॉर्मूले पर विवाद बढ़ाता है।
- कई लोग इसे देश के भाषाई परिदृश्य में हिंदी थोपने का “छिपा हुआ प्रयास” मानते हैं।
शाह और अंग्रेजी विवाद :
- अमित शाह का बयान: अंग्रेजी बोलने वालों को शर्म आनी चाहिए, बयान से बड़ा विवाद शुरू हुआ।
- तमिलनाडु का विरोध: सरकार ने अंग्रेजी को वैश्विक प्रगति का माध्यम बताते हुए शाह को आड़े हाथों लिया।
- राहुल गांधी की प्रतिक्रिया: अंग्रेजी बराबरी और अवसर का हथियार है, भाजपा इसे रोकना चाहती है।
- नागालैंड की चिंता: कांग्रेस ने कहा, अंग्रेजी जनजातीय संवाद और प्रशासन के लिए बेहद जरूरी है।
- AIADMK का रुख: शाह की बात को निजी राय बताया, डीएमके पर भाषा को भुनाने का आरोप लगाया।
- संवैधानिक और ऐतिहासिक संदर्भ: संविधान और स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी को स्वीकार्य और उपयोगी माना।
- बहुलता पर बहस: यह विवाद भाषा नहीं, बल्कि पहचान, समानता और अवसरों की राजनीति से जुड़ा है।
तमिलनाडु का मुखर विरोध: प्रगति का वैश्विक साधन
तमिलनाडु सरकार ने अमित शाह के बयान का कड़ा जवाब दिया है। स्कूल शिक्षा मंत्री अंबिल महेश पोय्यामोझी ने स्पष्ट कहा। अंग्रेजी अब औपनिवेशिक अवशेष नहीं है। यह “प्रगति का एक वैश्विक उपकरण” है।
- उन्होंने उदाहरण दिया। चीन, जापान, कोरिया, इज़राइल, जर्मनी जैसे देश अंग्रेजी सिखाते हैं। वे इसे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यापार में नेतृत्व के लिए पढ़ाते हैं।
- पोय्यामोझी ने भाजपा, आरएसएस पर निशाना साधा। वे अंग्रेजी को अभिजात्य वर्ग की भाषा बताते हैं। उनका मकसद गरीबों, दलितों, पिछड़े समुदायों को आगे बढ़ने से रोकना है।
- उन्होंने संस्कृत का उदाहरण दिया। जैसे वह आम लोगों से दूर थी, वे अब अंग्रेजी को भी दूर रखना चाहते हैं। महेश ने कहा, शाह का बयान भाषा नहीं, नियंत्रण के बारे में था। डीएमके “पहचान के लिए तमिल और अवसर के लिए अंग्रेजी” में विश्वास करती है।
राहुल गांधी और कांग्रेस का मोर्चा: समानता का हथियार
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को शाह और अंग्रेजी विवाद पर अपनी बात रखी। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा-आरएसएस की अंग्रेजी विरोधी कहानी गरीबों को पीछे रखना चाहती है।
- राहुल गांधी ने तर्क दिया। “अंग्रेजी एक हथियार है।” यह सामाजिक गतिशीलता के लिए जरूरी है। भाजपा-आरएसएस नहीं चाहते कि गरीब बच्चे अंग्रेजी सीखें। वे नहीं चाहते कि आप सवाल करें, आगे बढ़ें, बराबरी करें।
- राहुल ने शाह को सीधा जवाब दिया: “अंग्रेजी एक पुल है। यह शक्ति है, शर्म नहीं। यह जंजीर नहीं, बेड़ियों को तोड़ने का साधन है।”
- उन्होंने कहा, भारत की हर भाषा में आत्मा, संस्कृति, ज्ञान है। हमें उन्हें संजोना है। साथ ही, हर बच्चे को अंग्रेजी सिखानी है। उन्होंने कुछ भाजपा नेताओं का भी जिक्र किया। उनके बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा गया है।
नागालैंड कांग्रेस की चिंता: भाषाई विविधता पर खतरा
नागालैंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी (NPCC) ने भी शाह और अंग्रेजी विवाद पर चिंता जताई है। उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) को एक ज्ञापन सौंपा है।
- NPCC अध्यक्ष एस. सुपोंगमेरेन जमीर ने शाह के बयान को चिंताजनक बताया। उनके अनुसार, गृह मंत्री के बयानों के बड़े नीतिगत निहितार्थ हो सकते हैं।
- इसका नागालैंड जैसे राज्यों पर बुरा असर होगा। वहां अंग्रेजी 16 जनजातियों के बीच मुख्य संचार माध्यम है। एनपीसीसी ने कहा, यह रुख भारत की भाषाई विविधता को कमजोर करता है।
- यह उन राज्यों, समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को खतरे में डालता है। ये राज्य शिक्षा, शासन, अंतर-जनजातीय संचार के लिए अंग्रेजी पर निर्भर हैं। उन्होंने 1970 के दशक की जनता पार्टी सरकार के समय को याद किया। इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप से वह खतरा टल गया था।
AIADMK की ‘निजी राय’ और डीएमके से तकरार
AIADMK के महासचिव एडप्पादी के पलानीस्वामी ने शाह की टिप्पणी को “व्यक्तिगत” कहा है। उन्होंने बताया कि गृह मंत्री ने मातृभाषा के महत्व पर चिंता जताई थी।
- पलानीस्वामी के अनुसार, शाह की टिप्पणी इस आधार पर थी। लोग अंग्रेजी को अधिक महत्व दे रहे हैं। उन्होंने कहा, सबको अपनी राय रखने का अधिकार है।
- पलानीस्वामी ने कोयंबटूर हवाई अड्डे पर बात की। उन्होंने 2026 विधानसभा चुनाव में DMK को जनता द्वारा दंडित करने की बात कही।
- उन्होंने डीएमके मंत्रियों, पदाधिकारियों के “अपमानजनक भाषण” की निंदा की। ये लोग सार्वजनिक बैठकों, सोशल मीडिया पर अपमानजनक संदेश फैलाते हैं।
संवैधानिक निहितार्थ और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
विरोधियों का तर्क है कि अमित शाह की टिप्पणी ऐतिहासिक वास्तविकता को नजरअंदाज करती है। यह बयान स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गजों का अपमान है। महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर और मौलाना आज़ाद जैसे नामों का जिक्र हुआ।
- यह संविधान का भी सीधा उल्लंघन है। संविधान कई अनुच्छेदों में भारतीय भाषाओं, अंग्रेजी दोनों के उपयोग की अनुमति देता है। शाह ने यह टिप्पणी संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर की थी।
- उदाहरण के लिए, गांधीजी ने गीता को संस्कृत में कभी नहीं पढ़ा। उन्होंने लंदन में इसका अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा था। मौलाना आज़ाद ने भी स्वीकार किया कि अंग्रेजी ने भारत को एकजुट किया।
- अनुच्छेद 348 में प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट में अंग्रेजी का उपयोग होगा। कानूनों, विधेयकों के आधिकारिक ग्रंथों में भी अंग्रेजी रहेगी। अनुच्छेद 120 संसद सदस्यों को हिंदी, अंग्रेजी या मातृभाषा में बोलने की अनुमति देता है। राज्य विधानसभाओं में भी सदस्यों को राज्य की भाषा के अलावा अंग्रेजी में बोलने की अनुमति है।
बहुलतावादी भारत के लिए चुनौती
अमित शाह का बयान केवल भाषा नहीं, भारत की पहचान और अवसरों की राजनीति को छूता है। यह बहस दिखाती है कि भारत में भाषा केवल संप्रेषण नहीं, बल्कि संघर्ष और सत्ता का माध्यम भी है। शाह और अंग्रेजी विवाद आने वाले समय में राजनीतिक विमर्श को प्रभावित करता रहेगा।
- संवाद, संविधान और समानता—तीनों की परीक्षा शुरू हो चुकी है
- यह विवाद बहुलता, न्याय और अवसर की गहरी परतों को उजागर करता है
- क्या भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा के साथ अपनी भाषाई विविधता भी बचा पाएगा?
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