भारत की अर्थव्यवस्था: दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था के एलान का सच?

भारत की अर्थव्यवस्था: चौथी रैंक की वास्तविकता
नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम के अनुसार, भारत 2025 तक जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। यह दावा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पूर्वानुमान पर आधारित है, जिसमें भारत की नाममात्र जीडीपी 4,187 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। हालाँकि, यह अनुमान केवल आँकड़ों का खेल प्रतीत होता है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था की वास्तविक] चुनौतियाँ इस उत्सव को संदेहास्पद बनाती हैं।
आईएमएफ के अनुमान: विश्वसनीयता की कसौटी
आईएमएफ के अनुसार, 2025-26 में भारत की नाममात्र जीडीपी जापान से 0.586 बिलियन डॉलर अधिक होगी। यह अंतर मात्र 0.014% का है, जो वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल के कारण आसानी से बदल सकता है। भारत की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में यह पूर्वानुमान सरकारी डेटा पर निर्भर है, जिसकी शुद्धता पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भी आईएमएफ ने गलत अनुमान लगाए थे, जो इसकी सीमाएँ उजागर करते हैं।
जापान और भारत: तुलनात्मक विश्लेषण
पैरामीटर | भारत (2025-26) | जापान (2025-26) |
नाममात्र जीडीपी (बिलियन ($) | 4,187.017 | 4,186.431 |
प्रति व्यक्ति आय ($) | $2,500 | $34,000 |
जनसंख्या (अरब) | 1.43 | 0.125 |
तालिका से स्पष्ट है कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत जापान से काफी पीछे है। इसके अलावा, नाममात्र जीडीपी में छोटा अंतर वास्तविक आर्थिक शक्ति को नहीं दर्शाता।
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डेटा संग्रह: असंगठित क्षेत्र की अनदेखी
भारत की अर्थव्यवस्था का 40% हिस्सा असंगठित क्षेत्र पर निर्भर है, जिसका डेटा अधूरा या अनुमानित होता है। 2016 के विमुद्रीकरण के बाद इस क्षेत्र को गंभीर झटका लगा, लेकिन आधिकारिक आँकड़ों में इसका प्रभाव दिखाई नहीं दिया। उदाहरण के लिए, 2016-17 में असंगठित क्षेत्र के व्यापार में 50% की गिरावट आई, लेकिन जीडीपी वृद्धि दर 8% दर्ज की गई। विशेषज्ञों का मानना है कि संगठित क्षेत्र के डेटा ने असंगठित क्षेत्र की गिरावट को छिपा दिया।
ऐतिहासिक झटकों का दीर्घकालिक प्रभाव
2016 का विमुद्रीकरण, 2017 में जीएसटी का कार्यान्वयन, और 2020 का कोविड लॉकडाउन—इन घटनाओं ने असंगठित क्षेत्र को लगातार प्रभावित किया। कृषि और लघु उद्योगों में गिरावट के बावजूद, आधिकारिक जीडीपी डेटा ने सकारात्मक वृद्धि दिखाई। इससे पता चलता है कि डेटा संग्रह की पद्धति में बदलाव ने वास्तविक आर्थिक स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं किया।
वैश्विक चुनौतियाँ: बाहरी खतरों का असर
भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक घटनाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है। 2024 के अमेरिकी चुनावों के बाद ट्रम्प की संरक्षणवादी नीतियाँ भारतीय निर्यात को प्रभावित कर सकती हैं। यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में तनाव ने कच्चे तेल की कीमतें बढ़ाई हैं, जिससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ा है।
मुद्रास्फीति और रुपये की स्थिति
वर्ष | महंगाई दर (%) | रुपया/डॉलर (औसत) |
2022 | 6.7 | 79.5 |
2023 | 5.5 | 82.9 |
2024 | 5.1 (अनुमान) | 83.5 (अनुमान) |
तालिका दर्शाती है कि रुपये का अवमूल्यन जारी है, जो आयात की लागत बढ़ाता है। इससे उद्योगों पर दबाव बढ़ता है और आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।
असंगठित क्षेत्र: रोजगार का संकट
भारत की अर्थव्यवस्था में असंगठित क्षेत्र 94% कार्यबल को रोजगार देता है, लेकिन पिछले एक दशक में यह सिकुड़ रहा है। हस्तशिल्प, छोटे व्यापार, और दैनिक मजदूरी पर निर्भर लोगों के लिए रोजगार के अवसर कम हुए हैं। संगठित क्षेत्र का विस्तार हुआ है, लेकिन यह स्वचालन के कारण रोजगार सृजन में विफल रहा है।
बेरोजगारी: एक बढ़ती समस्या
वर्ष | बेरोजगारी दर (%) | युवा बेरोजगारी (%) |
2016 | 5.0 | 10.5 |
2020 | 7.1 | 23.0 |
2024 | 8.1 (अनुमान) | 25.2 (अनुमान) |
आँकड़े बताते हैं कि युवाओं में बेरोजगारी की दर चिंताजनक स्तर पर पहुँच गई है। इसका मुख्य कारण असंगठित क्षेत्र का सिकुड़ना और संगठित क्षेत्र का रोजगार-विरोधी विकास है।
यथार्थवादी दृष्टिकोण की आवश्यकता
भारत की अर्थव्यवस्था ने निस्संदेह प्रगति की है, लेकिन चौथी रैंक का जश्न मनाने से पहले गंभीर विश्लेषण आवश्यक है। प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने, असंगठित क्षेत्र को पुनर्जीवित करने, और रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना होगा। सरकार को डेटा पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए और वास्तविक आर्थिक सुधारों को प्राथमिकता देनी चाहिए। भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह समय गर्व करने का नहीं, बल्कि व्यावहारिक नीतियाँ बनाने का है।
भारत पर कैपिटा इनकम के मामले में विश्व तालिका में 140वे स्थान पर है और पीपीपी (Purchasing Power Parity) के मद्देनजर 120वे स्थान पर हैं. और देश की 80 करोड़ आवादी 5 किलो मुफ्त अनाज से अपना पेट भर रही है और हम दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था होने का जश्न मना रहे हैं.
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