आतंकवाद पर सख्त रुख के साथ भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी और मज़बूत

विदेश मंत्री एस जयशंकर की बर्लिन यात्रा ने भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी को नया दृष्टिकोण दिया है। 25 वर्षों से जारी सहयोग को अगले 25 सालों के लिए नई दिशा देने की मंशा दोनों देशों ने ज़ाहिर की। इस साझेदारी का फोकस सुरक्षा, प्रौद्योगिकी, हरित विकास और वैश्विक स्थिरता पर रहा।
आतंकवाद पर भारत का स्पष्ट रुख
- जयशंकर ने बर्लिन में कहा कि पहलगाम हमला भय फैलाने, पर्यटन को नुकसान पहुंचाने और धार्मिक तनाव भड़काने की कोशिश थी।
- उन्होंने कहा, “भारत आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। भारत कभी भी परमाणु ब्लैकमेल के आगे नहीं झुकेगा।”
मुख्य बिंदु:
- भारत ने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की खुलकर आलोचना की।
- ऑपरेशन सिंदूर जैसे एक्शन को अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला।
- जर्मनी ने हमले की कड़ी निंदा की और भारत के आत्मरक्षा अधिकार को समर्थन दिया।
भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी का यह पक्ष दोनों देशों को सुरक्षा सहयोग में मजबूती प्रदान करता है।
25 वर्षों की साझेदारी, आगे की योजना
जयशंकर ने DGPAP के भू-राजनीतिक मंच पर कहा कि भारत और जर्मनी को अगले 25 वर्षों की साझेदारी को लेकर सोचने की ज़रूरत है।
- उन्होंने कहा, “यह सरकार के कार्यकाल की शुरुआत में यहां आना इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि हम साझेदारी को नई ऊंचाई दें।”
- जर्मनी और भारत की विचारधाराएं बहुध्रुवीय दुनिया के अनुकूल हैं।
- दोनों देश वैश्विक स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए साझेदार हैं।
रक्षा और सुरक्षा: नए सहयोग का आधार
भारत और जर्मनी ने रक्षा क्षेत्र में नए अवसरों को पहचाना है।
जयशंकर ने कहा:
- “हमारे बीच दशकों पहले मजबूत रक्षा संबंध थे। अब फिर से यह समझ बनी है कि हम एक-दूसरे को बहुत कुछ दे सकते हैं।”
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जर्मन जहाजों की तैनाती इसका प्रमाण है।
- निर्यात लाइसेंसिंग, उपकरण सहयोग, और प्रौद्योगिकी साझेदारी पर दोनों पक्षों में चर्चा हुई।
भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी में सुरक्षा और रक्षा को प्रमुख स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है।
प्रतिभा और जनसांख्यिकी में सहयोग
- जयशंकर ने कहा कि भारत की जनसांख्यिकीय स्थिति वैश्विक कार्यबल में योगदान के लिए उपयुक्त है।
- जर्मनी की ageing population और भारत की युवा आबादी एक-दूसरे के पूरक हैं।
- उच्च शिक्षा, पेशेवर प्रशिक्षण और वीज़ा प्रक्रियाओं में सहयोग को गति देने की ज़रूरत जताई गई।
मुख्य सुझाव:
- भारत से कुशल कामगारों का जर्मनी में समायोजन
- छात्र विनिमय कार्यक्रमों का विस्तार
- द्विपक्षीय टैलेंट पार्टनरशिप एग्रीमेंट की आवश्यकता
प्रौद्योगिकी और डिजिटल सहयोग
तीसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है डिजिटल तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।
- भारत की IT क्षमताएं और जर्मनी की मशीनरी दक्षता मिलकर वैश्विक नवाचार में योगदान कर सकती हैं।
- साइबर सुरक्षा, डेटा सुरक्षा, डिजिटल ID, और स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग में सहयोग पर जोर दिया गया।
भारत और जर्मनी दोनों Industry 4.0 में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।
हरित विकास और जलवायु पर साझा दृष्टिकोण
- दोनों देश Paris Agreement के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
- हरित हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा, और सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर पर सहयोग की योजनाएं बनाई जा रही हैं।
- भारत-जर्मनी ग्रीन एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट पार्टनरशिप पहले से कार्यरत है।
जलवायु संकट के समाधान के लिए यह साझेदारी न सिर्फ द्विपक्षीय, बल्कि वैश्विक उदाहरण बनेगी।
व्यापार, निवेश और मुक्त व्यापार समझौता
- भारत और जर्मनी के बीच व्यापार $30 अरब डॉलर से अधिक पहुंच गया है।
- मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को गति देने के लिए यूरोपीय संघ से भारत वार्ता कर रहा है।
- जर्मनी भारत में निवेश के लिए प्रमुख भागीदार रहा है – विशेष रूप से ऑटोमोबाइल, औद्योगिक मशीनरी और रिन्यूएबल सेक्टर में।
भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी में यह आर्थिक आयाम बेहद महत्वपूर्ण है।
कूटनीतिक संकेत और पाकिस्तान पर सख्त रुख
- जयशंकर ने कहा कि भारत-पाकिस्तान संबंध पूरी तरह से द्विपक्षीय होंगे, किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की कोई आवश्यकता नहीं है।
- उन्होंने जर्मनी को यह भी बताया कि पाकिस्तान आतंकवाद को एक ‘राज्य नीति’ के रूप में उपयोग कर रहा है।
- जर्मन विदेश मंत्री वाडेफुल ने भारत की चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया।
यह रुख भारत के संप्रभु अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय समर्थन को मज़बूती प्रदान करता है।
वैश्विक स्थिरता की साझेदारी
भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी आज सिर्फ द्विपक्षीय हितों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्थिरता, सुरक्षा और विकास की दिशा में एक ठोस कदम है।
- दोनों देश बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में विश्वास रखते हैं।
- साझा मूल्यों, लोकतंत्र, कानून के शासन और मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने में ये भागीदार हैं।
- आतंकवाद, जलवायु संकट और तकनीकी प्रतिस्पर्धा जैसे वैश्विक मुद्दों पर यह साझेदारी निर्णायक बन सकती है।
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