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बिहार मतदाता सूची विवाद: चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल

बिहार मतदाता सूची विवाद

बिहार मतदाता सूची विवाद गहराता जा रहा है। चुनाव आयोग ने विशेष गहन संशोधन (SIR) शुरू किया है। यह प्रक्रिया 22 साल बाद लागू हुई है। इस प्रक्रिया से लगभग 8 करोड़ मतदाता प्रभावित हो रहे हैं। बिहार मतदाता सूची विवाद ने राजनीतिक तनाव बढ़ा दिया है।

मतदाता सूची विवाद के प्रमुख कारण

तीन मुख्य कारणों से यह बिहार मतदाता सूची विवाद उठा है। 1. शहरीकरण के कारण सूची अद्यतन की जरूरत। 2. पलायन से डेटा में गलतियाँ आई हैं। 3. गैर-कानूनी नागरिकों के नाम शामिल होने का खतरा। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने स्पष्ट किया। उनके अनुसार SIR का लक्ष्य पात्र मतदाताओं को जोड़ना है। साथ ही अयोग्य लोगों को हटाना भी जरूरी है।

एक बड़ा बदलाव यह हुआ है। 1 जनवरी 2003 के बाद रजिस्टर्ड मतदाताओं को अतिरिक्त दस्तावेज दिखाने होंगे। बूथ लेवल अधिकारी (BLO) घर-घर सत्यापन करने का दावा किया जा रहा हैं। दरसअल बिहार मतदाता सूची विवाद में संदिग्ध प्रशासनिक तैनाती चौंकाने वाली है।

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विशाल प्रशासनिक तैनाती

बिहार सरकार ने 2,25,590 कर्मचारी तैनात किए हैं। इनमें 81,753 प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं। साथ ही 1,43,837 स्वयंसेवक कार्यरत हैं। राजनीतिक दलों ( बीजेपी और जेडीयू) के 1.5 लाख बूथ लेवल एजेंट (BLA) निगरानी कर रहे हैं। इसी लिए बिहार मतदाता सूची विवाद थम नहीं रहा। विपक्ष को पारदर्शिता पर गंभीर शंका है।

स्वयंसेवक विवाद पारदर्शिता संबंधी प्रश्न

ये स्वयंसेवक कौन हैं, कहाँ से आये हैं और इनके चयन प्रकिया का कोई खुलासा नहीं किया गया है। स्वयंसेवक भर्ती प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है। सवाल यह भी है कि क्यों स्वयंसेवक चयन मानदंड गोपनीय रखे गए। इनके प्रशिक्षण प्रोटोकॉल को भी सार्वजनिक नहीं किया गया। बिहार मतदाता सूची विवाद में दस्तावेजों की मांग सबसे बड़ी समस्या है।

दस्तावेजों की चुनौती

बिहार के कुल मतदाताओं में से 37% को अतिरिक्त कागजात चाहिए। यानि सीधे-सीधे चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया से 2.93 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। इन्हें जन्मतिथि और जन्मस्थान का प्रमाण देना होगा। अधिकतर मामलों में माता-पिता के दस्तावेज भी मांगे जा रहे हैं। बिहार की ग्रामीण साक्षरता दर सिर्फ 61.8% है। अतः मतदाताओं इन दस्तावेज जुटाना कठिन होगा।

बिहार के बाहर काम करने वाले लोगों के लिए समस्या गंभीर है। प्रवासी मजदूर दूरदराज के इलाकों में रहते हैं। उनके लिए कागजात लाना संभव नहीं है।बिहार मतदाता सूची विवाद में समय सीमा भी समस्या पैदा कर रही है।

विवादस्पद अव्यवहारिक समय सीमा

मतदाता सूची के दुरुस्तीकरण की पूरी प्रक्रिया महज दो महीने में पूरी करनी है। 25 जून से 30 सितंबर 2025 तक का समय है। जोकि 8 करोड़ मतदाताओं के लिए यह पर्याप्त समय नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह धांधली को छुपाने के लिए की जा रही जल्दबाजी है। यही कारण है कि बिहार मतदाता सूची विवाद बढ़ता जा रहा है।

बिहार मतदाता सूची दुरुस्तीकरण को लेकर विपक्ष की प्रमुख चिंताएँ

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने स्पष्ट चेतावनी दी है । उन्होंने कहा कि गरीबों के पास दस्तावेज नहीं हैं। उन्हें आशंका है कि गरीब मतदाता सूची से बाहर कर दिए जाएंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे एनआरसी से भी खतरनाक बताया है।

ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि ग्रामीण मतदाता निशाने पर हैं। उनका कहना है कि वैध मतदाताओं को मतदाता सूची से हटाया जा सकता है। इस मामले पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कानूनी कार्रवाई की बात कही।

इंडिया गठबंधन अदालत जाने पर विचार कर रहा है। विपक्ष का मानना है कि SIR नियमों के खिलाफ है। बिहार मतदाता सूची विवाद में चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखा है।

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चुनाव आयोग का अपने बचाव में तर्क

चुनाव आयोग ने संविधान का अनुच्छेद 326 उद्धृत किया है। जो यह स्पष्ट करता है कि सिर्फ भारतीय नागरिक ही वोट डाल सकते हैं। आयोग का कहना है कि उसने पारदर्शिता के कई कदम उठाए हैं। सभी दस्तावेज ईसीआईएनईटी सिस्टम पर अपलोड होंगे।

2003 की मतदाता सूची सार्वजनिक की जाएगी। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि BLA प्रक्रिया में शामिल होंगे। परंतु अपलोड किए गए दस्तावेज सिर्फ अधिकारियों के लिए सुलभ होंगे। इससे पारदर्शिता की बात करने वाले चुनाव आयोग की कथनी और करनी में फर्क पर प्रश्न उठे हैं।

चुनाव आयोग का कहना है कि उसने विशेष निर्देश जारी किए हैं। बुजुर्गों, दिव्यांगों और गरीबों को परेशान न किया जाए। उनकी मदद के लिए एक लाख स्वयंसेवक तैनात हैं, ये वही (गुप्त) स्वयंसेवक हैं जिनपर विपक्ष को एतराज है। मौजूदा बिहार मतदाता सूची विवाद को ऐतिहासिक डेटा से समझें।

बिहार का चुनावी इतिहास

बिहार में मतदाताओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है। 2015 में कुल मतदाता 6.68 करोड़ थे। 2020 में यह संख्या बढ़कर 7.29 करोड़ हो गई। 2025 में अनुमानित 7.89 करोड़ मतदाता होंगे।

चुनाव वर्षकुल मतदातामतदान %प्रमुख मुद्दे
2015 6.68 करोड़ 56.66% गठबंधन राजनीति
20207.29 करोड़ 57.05% COVID-19, रोजगार
20257.89 करोड़ ? मतदाता सूची शुद्धता

2015 में मतदान प्रतिशत 56.66% रहा था। 2020 में यह बढ़कर 57.05% हुआ। इस बार मतदाता सूची की शुद्धता के नाम पर हेरफेर प्रमुख मुद्दा है। यही बिहार मतदाता सूची विवाद का महत्व बढ़ाता है। विपक्ष को आशंका है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तरह बीजेपी फर्जी मतदाताओं को सूची में शामिल करा सकती है।

कांग्रेस का आरोप है कि महाराष्ट्र में 40 लाख से अधिक फर्जी मतदाताओं के नाम शामिल किये गए थे।

चुनाव आयोग द्वारा मतसूची संशोधन का कानूनी आधार

संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को सूची संशोधन का अधिकार देता है। अनुच्छेद 326 मतदाता के मतदान का मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(3) भी चुनाव आयोग को विशेष संशोधन की अनुमति देती है।

लेकिन विपक्ष ने कई बार चुनाव आयोग के ऊपर सत्ता के इशारे पर चुनाव में हेरफेर करते हुए पकड़ा है। इसलिए विपक्ष को बिहार में मोदी सरकार के इशारे पर चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची में धांधली की आशंका है।

कानून में तीन स्तरों पर अपील का प्रावधान है। पहले जिला मजिस्ट्रेट के पास अपील की जा सकती है। दूसरे स्तर पर मुख्य निर्वाचन अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं। अंत में अदालत का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। बिहार मतदाता सूची विवाद में विशेषज्ञों की राय विभाजित है।

विपक्ष का आरोप है कि सत्ता के दबाव में जिला मजिस्ट्रेट और निर्वाचन अधिकारी इस धांधली में शामिल हो सकते हैं।

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मामले में विशेषज्ञों की राय

पूर्व चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी SIR का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि चुनाव सिर्फ भारतीय नागरिकों के लिए हैं। विश्वसनीय दस्तावेजों से लोकतंत्र मजबूत होगा। परंतु चुनाव पारदर्शिता कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज चिंतित हैं।

उन्होंने बताया कि अत्यधिक दस्तावेज मांगने से बहिष्कार होगा। गरीब और कमजोर वर्ग प्रभावित होंगे। ADR के जगदीप एस. छोकर ने गंभीर कानूनी सवाल उठाए। उनका कहना है कि 2003 के बाद के मतदाताओं को हटाना गलत है। इससे पता चलता है कि बिहार मतदाता सूची विवाद में तकनीक की भूमिका अहम है।

तकनीकी पहल

चुनाव आयोग ने ECINET सिस्टम लॉन्च किया है। सभी दस्तावेज डिजिटल रूप से स्टोर होंगे। एन्यूमरेशन फॉर्म ऑनलाइन उपलब्ध हैं। रियल-टाइम डेटा अपडेट किया जा रहा है।

क्योकि बिहार के ग्रामीण अंचलों में डिजिटल साक्षरता बेहद कम है। इसलिए इस तकनीक का लाभ सीमित रह सकता है और नुक्सान अधिक। बिहार मतदाता सूची विवाद के दो पहलू हैं।

सकारात्मक बनाम नकारात्मक पक्ष, संभावित प्रभाव

सकारात्मक पक्ष यह है कि डुप्लीकेट एंट्री हटेगी। मृत मतदाताओं के नाम कटेंगे। धोखाधड़ी वाली वोटिंग पर रोक लगेगी। डेटाबेस अधिक सटीक होगा।

नकारात्मक पक्ष में बड़े पैमाने पर मतदाताओं के बहिष्कार का खतरा है। ग्रामीण और गरीब मतदाता प्रभावित होंगे। दस्तावेज जुटाने के लिए समय सीमा काफी कम है। चयनात्मक बहिष्कार की आशंका है।

बिहार मतदाता सूची विवाद के समाधान के सुझाव

चुनाव आयोग को समय सीमा बढ़ानी चाहिए। स्वयंसेवक भर्ती प्रक्रिया और उनकी पहचान सार्वजनिक करनी चाहिए। शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत बनाना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुभाषी सहायता उपलब्ध करानी होगी।

सभी राजनीतिक दलों को सक्रिय भागीदारी की व्यवस्था करनी चाहिए। जिससे उन्हें मतदाताओं की पहचान और जरूरत पड़ने पर उनकी मदद कर सकें। निगरानी के लिए सभी राजनीतिक दलों के एजेंट तैनात करने चाहिए। ऐसा न करने पर विपक्ष को कानूनी विकल्पों का सहारा लेना चाहिए।

नागरिकों को BLO के साथ सहयोग करना चाहिए। जरूरी कागजात जल्दी जुटाने चाहिए। अगर BLO द्वारा किसी प्रकार की कोई अनियमितताएं की जा रही हों तो उन्हें अनियमितताओं की रिपोर्ट तुरंत करनी चाहिए। मतदाताओं को उनके मतदान के अधिकारों के बारे में जागरूक रहना चाहिए। बिहार मतदाता सूची विवाद का समाधान सबकी भागीदारी से होगा।

भविष्य की चुनौतियाँ

बिहार मतदाता सूची विवाद के दूरगामी परिणाम होंगे। क्योकि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी है। अतः प्रशासनिक अमले को प्रशिक्षण देना होगा। डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारना जरूरी है।

माइग्रेंट वर्कर्स के लिए विशेष प्रावधान चाहिए। दूरस्थ सत्यापन की व्यवस्था करनी होगी। स्थानीय भाषा में जानकारी उपलब्ध करानी होगी। तभी यह बिहार मतदाता सूची विवाद सुलझ पाएगा।

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निष्कर्ष

बिहार मतदाता सूची विवाद एक जटिल मामला है। चुनावी अखंडता और समावेशन के बीच संतुलन जरूरी है। सटीक मतदाता सूची बनाना आयोग का उद्देश्य है। परंतु देश की जनता के मतदान सम्बन्धी मौलिक अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए।

यह बिहार मतदाता सूची विवाद पारदर्शिता की परीक्षा है, पर साथ साथ चुनाव आयोग के निष्पक्षता की भी परीक्षा है । प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल उठ रहे हैं। मतदाताओं की लोकतांत्रिक भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। बिहार के लिए आने वाले महीने निर्णायक साबित होंगे।

बिहार मतदाता सूची विवाद में सभी हितधारकों को साथ आना होगा। चुनाव आयोग, राजनीतिक दल और नागरिक मिलकर काम करें। तभी लोकतंत्र मजबूत बनेगा। सतर्कता और पारदर्शिता ही समाधान है। बिहार का भविष्य इसी पर निर्भर करता है। चुनाव आयोग को भी सत्ता पर काबिज लोगों की अनैतिक और गैरकानूनी इच्छाओं को पूरा करने का हथियार नहीं बनना चाहिए।

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