बोलने की सीमाएं तय : सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान की जमानत बढ़ाई

सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को राहत दी है, लेकिन साथ ही अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर सख्त संकेत भी दिए हैं। अदालत ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बोलने की सीमाएं तय करती है
दरअसल, महमूदाबाद ने ऑपरेशन सिंदूर और महिला सैन्य अधिकारियों पर टिप्पणी की थी, जिसे लेकर विवाद खड़ा हुआ। इसके बाद उनके खिलाफ दो FIR दर्ज हुईं और उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
विवादित पोस्ट का सारांश :
- ऑपरेशन सिंदूर पर सेना की संयमित कार्रवाई को सराहा
- महिला सैन्य अधिकारियों की प्रेस ब्रीफिंग को “दिखावा” कहा
- युद्धोन्माद और राष्ट्रवाद पर चिंता जताई
FIR में लगाए गए गंभीर आरोप
दो जगहों से FIR दर्ज की गई — एक महिला आयोग प्रमुख द्वारा और दूसरी स्थानीय सरपंच की ओर से। FIR में निम्नलिखित धाराएं जोड़ी गईं:
- धारा 152: भारत की संप्रभुता पर खतरा
- धारा 196: साम्प्रदायिक तनाव फैलाने का प्रयास
- धारा 79: महिलाओं की गरिमा को ठेस
- धारा 353: सामाजिक अव्यवस्था की साजिश
सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत, लेकिन सशर्त
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने प्रोफेसर को सशर्त जमानत दी। लेकिन साथ ही कोर्ट ने कहा कि वह अब कोई भी पोस्ट ऑपरेशन सिंदूर या पाकिस्तान को लेकर नहीं कर सकते।
कोर्ट की अहम शर्तें:
- ऑपरेशन सिंदूर व पाकिस्तान पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं
- पासपोर्ट जमा करना होगा
- जांच में पूरा सहयोग देना होगा
- “बोलने की सीमाएं तय” हैं, यह अब उन्हें ध्यान रखना होगा
जस्टिस सूर्यकांत की तीखी टिप्पणी
कोर्ट ने प्रोफेसर की टिप्पणी को “डॉग व्हिसलिंग” बताया, यानि अप्रत्यक्ष रूप से समाज में तनाव पैदा करना।
“यह सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश है। ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि भड़काने का प्रयास है।”
— जस्टिस सूर्यकांत
एसआईटी जांच को कोर्ट ने सीमित किया
प्रोफेसर के वकील ने जांच पर सवाल उठाया कि दो FIR की आड़ में एक व्यापक जांच की जा रही है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने S.I.T. को केवल उन दो FIR की जांच तक सीमित कर दिया।जांच से जुड़े निर्देश:
- केवल दो FIR की सीमा में जांच
- जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पहले दाखिल की जाए
- हरियाणा या दिल्ली पुलिस अफसर जांच में शामिल नहीं होंगे
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की दखल
NHRC ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया है और महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर सवाल उठाया है। आयोग ने हरियाणा सरकार से रिपोर्ट मांगी है।
विश्वविद्यालय परिसर की प्रतिक्रिया और माहौल
प्रोफेसर महमूदाबाद की गिरफ्तारी के बाद विश्वविद्यालय परिसर में हलचल तेज हो गई। छात्रों और शिक्षकों ने इसे शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला बताया। कुछ विद्यार्थियों ने उनकी गिरफ्तारी को “राजनीतिक दबाव का परिणाम” कहते हुए पोस्टर और सोशल मीडिया कैंपेन शुरू किए। हालाँकि कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि इन प्रतिक्रियाओं में कोई गैर-कानूनी गतिविधि या भड़काऊ बयानबाज़ी पाई गई, तो उन पर भी कार्रवाई की जाएगी। यह संकेत साफ था कि अभिव्यक्ति का अधिकार किसी को भी कानून से ऊपर नहीं बनाता।
छात्रों और शिक्षकों को कोर्ट की चेतावनी
सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि विश्वविद्यालय के कई छात्रों और प्रोफेसरों ने गिरफ्तारी का विरोध किया। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी:
“अगर उन्होंने कोई गैर-कानूनी गतिविधि की, तो हम उन्हें भी नोटिस जारी करेंगे।”
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अदालत की दृष्टि
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सरकार और सैन्य बलों के रुख की सराहना की। कोर्ट ने कहा कि सेना के संयम और नीति आधारित कार्रवाई से देश में सुरक्षा संतुलन बना है। वहीं प्रोफेसर द्वारा इस ऑपरेशन को “प्रोपेगेंडा” कहे जाने पर कोर्ट ने नाराज़गी जताई। अदालत ने दो टूक कहा कि किसी भी सैन्य कार्रवाई को राजनीतिक टिप्पणी की सीमा में लाना, सैन्य सम्मान को ठेस पहुंचा सकता है। इसीलिए प्रोफेसर पर अब यह शर्त लगाई गई कि वे आगे कोई भी टिप्पणी इस ऑपरेशन या संबंधित विषयों पर नहीं देंगे।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सम्मान
सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा —
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम नहीं होती, हर स्वतंत्रता की अपनी सीमा होती है।”
संतुलन ज़रूरी है:
- विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए
- लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा, सेना का मनोबल और सामाजिक सौहार्द भी बना रहना चाहिए
बोलने से पहले सोचिए
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि शब्दों की ताकत को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह फैसला भविष्य में सार्वजनिक मंचों पर जिम्मेदार अभिव्यक्ति के मानक तय कर सकता है।
“कलम ज़रूर चलाइए, पर जिम्मेदारी के साथ।”
स्वतंत्रता जरूरी, संयम अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम नहीं है। अली खान महमूदाबाद को जमानत ज़रूर मिली, लेकिन उनके विचार अब सार्वजनिक नहीं हो सकते – कम से कम इस मामले में।
यह फैसला अभिव्यक्ति और जिम्मेदारी के बीच संतुलन की मिसाल बनता है।
“जब देश युद्ध जैसी स्थिति में हो, तो हर शब्द राष्ट्र के लिए मायने रखता है।”
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