BSNL vs रिलायंस जियो: ₹1,757 करोड़ का वित्तीय घोटाला

भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में एक बड़ा वित्तीय विवाद सामने आया है, जिसमें भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) और रिलायंस जियो शामिल हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, BSNL को जियो से 10 वर्षों तक बुनियादी ढांचे के उपयोग का शुल्क वसूलने में चूक हुई, जिससे ₹1,757 करोड़ का नुकसान हुआ। यह मामला सार्वजनिक-निजी भागीदारियों (PPP) में पारदर्शिता और प्रबंधन की कमी को उजागर करता है।
2014 के समझौते की पृष्ठभूमि
साल 2014 में BSNL और रिलायंस जियो के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ था। इसके तहत जियो को देशभर के 4,000 से अधिक मोबाइल टावरों तक पहुंच मिली। ग्राउंड टावरों के लिए ₹38,000 प्रति माह और रूफटॉप इंस्टॉलेशन के लिए ₹24,900 प्रति माह का शुल्क निर्धारित किया गया था। समझौते में प्रौद्योगिकी के उपयोग की निगरानी और कीमत समायोजन का प्रावधान भी था, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया।
CAG रिपोर्ट में उजागर हुई चूकें
CAG की रिपोर्ट के मुताबिक, BSNL ने 2014 से 2023 तक जियो के अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रक्चर यूज का बिल बनाने में लापरवाही बरती। इसकी वजह से कंपनी को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा। रिपोर्ट में स्वचालित बिलिंग सिस्टम की कमी, नियमित ऑडिट न होने और अनुबंध प्रबंधन में कर्मचारियों की अक्षमता को प्रमुख कारण बताया गया।
प्रणालीगत कमजोरियों का प्रभाव
यह मामला सिर्फ वित्तीय घाटे तक सीमित नहीं है। इसने सार्वजनिक क्षेत्र की प्रणालीगत खामियों को भी उजागर किया है। BSNL जैसी सरकारी कंपनियों में तकनीकी अपग्रेड और ऑटोमेशन का अभाव है, जिससे मैन्युअल त्रुटियों का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही, PPP मॉडल में निगरानी के अभाव के कारण निजी कंपनियां सार्वजनिक संसाधनों का अनुचित लाभ उठा लेती हैं।
BSNL का वित्तीय संकट और सरकारी सहायता
BSNL पहले से ही गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहा है। 2022-23 में कंपनी का ऑपरेटिंग घाटा ₹8,851 करोड़ रहा। सरकार ने ₹1.64 लाख करोड़ के बेलआउट पैकेज की घोषणा की थी, लेकिन इस घोटाले ने कंपनी की वसूली की राह को और मुश्किल बना दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि BSNL को डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और ग्राहक सेवाओं में निवेश बढ़ाने की जरूरत है।
रिलायंस जियो का पक्ष और नैतिक सवाल
रिलायंस जियो ने इस मामले में कानूनी तौर पर कोई गलती नहीं की है, क्योंकि समझौते के अनुसार उसने भुगतान संबंधी दायित्वों का पालन किया। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का तर्क है कि निजी कंपनियों को सार्वजनिक संस्थानों की कमजोरियों का फायदा उठाने के बजाय नैतिक जिम्मेदारी दिखानी चाहिए। यह मामला PPP मॉडल में नैतिकता और कानून के बीच के अंतर को भी रेखांकित करता है।
भविष्य के लिए आवश्यक सुधार
इस घटना से सबक लेते हुए, सरकारी कंपनियों को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:
- स्वचालित बिलिंग प्रणाली: AI और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का उपयोग करके पारदर्शी बिलिंग सुनिश्चित की जा सकती है।
- नियमित ऑडिट: CAG की सिफारिशों के अनुसार, तीसरे पक्ष द्वारा वार्षिक ऑडिट अनिवार्य किए जाने चाहिए।
- कर्मचारी प्रशिक्षण: अनुबंध प्रबंधन और डेटा एनालिटिक्स पर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।
- पारदर्शिता नीति: सभी PPP समझौतों की शर्तें सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराई जाएं।
दूरसंचार क्षेत्र के लिए चुनौतियां और अवसर
भारत का दूरसंचार बाजार दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक है, लेकिन BSNL–जियो जैसे विवाद इसकी प्रतिस्पर्धात्मकता को खतरे में डालते हैं। सरकार को 5G और फाइबर नेटवर्क जैसे नए तकनीकी उन्नयन में BSNL की भूमिका को मजबूत करना होगा। साथ ही, निजी कंपनियों के साथ समान नियम लागू करने से बाजार में निष्पक्षता बनी रहेगी।
निष्कर्ष: सुधार की ओर एक कदम
BSNL और रिलायंस जियो का यह विवाद भारत के दूरसंचार क्षेत्र के लिए एक चेतावनी है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रबंधन और तकनीकी सुधारों पर तेजी से काम करना चाहिए। इसके साथ ही, सरकार को PPP मॉडल में जवाबदेही बढ़ाने वाले नियम बनाने चाहिए। केवल तभी भारत का टेलीकॉम सेक्टर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा।, सरकार को PPP मॉडल में जवाबदेही बढ़ाने वाले नियम बनाने चाहिए। केवल तभी भारत का टेलीकॉम सेक्टर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम होगा।
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