MP, दमोह जिले के मिशन अस्पताल में 7 मौतें; एनएचआरसी ने शुरू की जांच!

घटना का संछिप्त विवरण
मध्य प्रदेश के दमोह जिले स्थित एक मिशनरी अस्पताल में चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहाँ ‘डॉ. एन. जॉन कैम‘ के नाम से कार्यरत एक कथित नकली कार्डियोलॉजिस्ट द्वारा इलाज कराए गए 7 मरीजों की जनवरी-फरवरी 2024 के बीच मौत हो गई।
शिकायतकर्ता दीपक तिवारी के अनुसार, यह डॉक्टर वास्तव में नरेंद्र विक्रमादित्य यादव नामक व्यक्ति है, जिसने यूके के प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ प्रोफेसर जॉन कैम की पहचान चुराकर मरीजों को गुमराह किया, प्रकरण की एनएचआरसी ने जांच शुरू की है।
एनएचआरसी की जांच: क्या होगा अगले चरण में?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए तीन सदस्यीय जांच टीम गठित की है। आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो के अनुसार, टीम 7 से 9 अप्रैल तक दमोह पहुँचकर अस्पताल प्रशासन, पीड़ित परिजनों और स्थानीय अधिकारियों से पूछताछ करेगी। इस दौरान सभी पक्षों के बयान दर्ज किए जाएंगे और मेडिकल रिकॉर्ड्स की जाँच की जाएगी।
आयुष्मान योजना से जुड़ा है अस्पताल, सरकारी धन का दुरुपयोग का आरोप
चिंता का एक प्रमुख बिंदु यह है कि यह अस्पताल प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना के तहत रजिस्टर्ड है। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि नकली डॉक्टर द्वारा किए गए ऑपरेशन्स के बिल सरकारी कोष से सेटल किए गए, जिससे करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ हो सकता है। गौरतलब है कि आयुष्मान योजना के तहत गरीबों को मुफ्त इलाज सुविधा दी जाती है।
कौन है नरेंद्र यादव? पहले भी रह चुका है विवादों में
जानकारी के अनुसार, आरोपी नरेंद्र यादव पिछले कई वर्षों से अलग-अलग अस्पतालों में फर्जी डिग्री और नकली पहचान का इस्तेमाल कर काम करता रहा है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसने महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह के मामलों में अपना नाम दर्ज कराया है। हैरानी की बात यह है कि अस्पताल प्रबंधन ने बिना पृष्ठभूमि जांच के उसे नियुक्त कर लिया।
प्रशासन की कार्रवाई: कलेक्टर ने दी जानकारी
दमोह कलेक्टर सुधीर कोचर ने बताया कि घटना की प्रारंभिक जांच शुरू हो चुकी है। उन्होंने कहा, “जिला प्रशासन एनएचआरसी टीम को पूरा सहयोग देगा। यदि अस्पताल प्रबंधन या कर्मचारियों की लापरवाही साबित होती है, तो कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।”
पीड़ित परिवारों की आवाज: न्याय की मांग
मृतकों के परिजनों का आरोप है कि अस्पताल ने मरीजों को “विशेषज्ञ डॉक्टर” का झांसा देकर महंगे इलाज के नाम पर ठगा। एक पीड़ित के भाई ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “ऑपरेशन के बाद मेरे पिता की हालत बिगड़ गई, लेकिन डॉक्टर ने कोई जिम्मेदारी नहीं ली।”
क्या कहता है कानून?
भारतीय न्याय संहिता BNS की धारा 319 (2) (छलपूर्वक व्यक्तित्व ग्रहण), 318(4) (ठगी) और 105 (लापरवाही से मौत) के तहत मामला दर्ज होने की संभावना है। इसके अलावा, चिकित्सा पेशे से जुड़े आईएमसी एक्ट 1956 के उल्लंघन के आरोप भी लग सकते हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं पर उठे सवाल
यह घटना निजी अस्पतालों में गुणवत्ता नियंत्रण और डॉक्टरों की प्रमाणिकता जांच की कमी को उजागर करती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार कहते हैं, “राज्य सरकार को सभी अस्पतालों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस और डिजिटल डिग्री वेरिफिकेशन सिस्टम अनिवार्य करना चाहिए।”
अगले 48 घंटे महत्वपूर्ण
एनएचआरसी की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही इस मामले में गिरफ्तारियाँ और आरोपपत्र तैयार होंगे। सूत्रों के मुताबिक, आरोपी यादव फिलहाल फरार है, जिसे ढूंढने के लिए पुलिस ने विशेष टीम गठित की है।
पाठकों के लिए सलाह
स्वास्थ्य सेवाएं लेते समय हमेशा डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन नंबर (MCI/NMC) और योग्यता की जांच करें। संदिग्ध मामलों की शिकायत स्वास्थ्य विभाग की हेल्पलाइन 104 या एनएचआरसी पोर्टल पर कर सकते हैं।”
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