Loading Now

केंद्र सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियाँ: कर्मचारी-पेंशनभोगी बनाम सांसदों के लिए ‘दोहरे मापदंड’ पर बवाल

Game of discriminatory statistics: 2% vs 24%... How much concern for whom?

“जनता के पैसे से जनप्रतिनिधियों की खुशहाली?”

केंद्र सरकार के हालिया दो फैसलों ने देश में “सामाजिक न्याय” और “वित्तीय प्राथमिकताओं” पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। एक ओर, केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को महंगाई राहत (डीए-डीआर) में मात्र 2% की वृद्धि दी गई है, वहीं दूसरी ओर सांसदों के वेतन-भत्ते और पेंशन में 24% का भारी उछाल किया गया है। यह फैसला सरकार के ‘दोहरे मापदंड’ की ओर इशारा करता है, जिससे विशेषज्ञों से लेकर आम लोग तक नाराज हैं।

आँकड़ों का खेल: 2% vs 24%… किसके लिए कितनी चिंता?

  • कर्मचारी-पेंशनभोगियों के लिए ‘राहत’:
    1 जनवरी 2025 से प्रभावी 2% डीए-डीआर वृद्धि से 48.66 लाख कर्मचारी और 66.55 लाख पेंशनभोगी लाभान्वित होंगे। सरकार पर इसका वार्षिक वित्तीय भार ₹6,614.04 करोड़ पड़ेगा। हालाँकि, यह बढ़ोतरी महंगाई दर (वर्तमान में 5-6%) के समानांतर नहीं है।
  • सांसदों के लिए ‘उदारता’:
    1 अप्रैल 2023 से प्रभावी 24% वेतन वृद्धि के साथ, सांसदों का मासिक वेतन ₹1 लाख से बढ़कर ₹1.24 लाख हो गया। पेंशन ₹25,000 से ₹31,000 कर दी गई। इस पर सालाना ₹150 करोड़ का अतिरिक्त खर्च आएगा। साथ ही, मुफ्त हवाई यात्राएँ, लुटियन्स जोन के बंगले, और 50,000 यूनिट मुफ्त बिजली जैसे लाभ जारी हैं।

पेंशन न्याय का संकट: “वर्गीकरण की राजनीति”

AITUC जैसे ट्रेड यूनियनों ने CCS (पेंशन) नियमों में संशोधन को “संवैधानिक विश्वासघात” बताया है। नए नियमों के चलते मौजूदा पेंशनभोगियों को 8वें वेतन आयोग के लाभ नहीं मिलेंगे। यह लाभ केवल भविष्य में सेवानिवृत्त होने वालों को मिलेगा। यह हैरान करने वाली बात है कि सांसदों की पेंशन में कोई कटौती नहीं की गई। उलटे, उनके लिए अतिरिक्त पेंशन प्रति वर्ष ₹2,500 की दर से बढ़ाई गई है।

सवाल: क्या सशस्त्र बलों के OROP (वन रैंक वन पेंशन) की तर्ज पर नागरिक पेंशनभोगियों के साथ न्याय नहीं होना चाहिए?

वित्तीय बोझ का ‘चुनिंदा’ विश्लेषण

  • कर्मचारियों पर तर्क: सरकार डीए-डीआर बढ़ाने को “अर्थव्यवस्था पर दबाव” बताती है। लेकिन, 7वें वेतन आयोग के बाद से केंद्रीय कर्मचारियों का वास्तविक वेतन वृद्धि दर महज 3% रही है, जबकि महंगाई 30% से अधिक बढ़ी है।
  • सांसदों पर खर्च: 2018 में सांसदों का वेतन 100% बढ़ाकर ₹1 लाख किया गया था। अब 24% वृद्धि के साथ, उनकी आय में पिछले 5 वर्षों में 148% की छलांग लगी है, जबकि एक औसत भारतीय की आय में वार्षिक वृद्धि 4-5% से अधिक नहीं हुई।

जनता vs नेता: सुविधाओं का अंतर्राष्ट्रीय स्तर!

सांसदों को मिलने वाली सुविधाएँ किसी “लक्जरी लाइफस्टाइल” से कम नहीं:

  • ₹2 लाख मासिक किराया भत्ता (आम नागरिकों के लिए EWS घर योजना का बजट ₹3 लाख प्रति यूनिट)।
  • सालाना 34 मुफ्त हवाई यात्राएँ vs आम जनता के लिए UDAN योजना में ₹2,500 सब्सिडी।
  • मुफ्त बिजली-पानी का भार टैक्सपेयर्स पर, जब देश में 20 करोड़ लोग अब भी बिजलीविहीन हैं।

विशेषज्ञों की नजर: “नीतियों में राजनीतिक स्वार्थ?”

अर्थशास्त्री डॉ. रघुराम राजन के अनुसार, “सरकारें अक्सर चुनावी लाभ के लिए अल्पकालिक फैसले लेती हैं। सांसदों को खुश करना आसान है, क्योंकि वे सीधे कानून बनाते हैं। लेकिन कर्मचारी-पेंशनभोगियों की आवाज़ दब जाती है।” साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में OROP मामले में कहा था कि “पेंशन भुगतान सरकार का कानूनी दायित्व है, न कि उपकार”।

सोशल मीडिया का गुस्सा: #MPLuxuryLife ट्रेंड करता सच

ट्विटर पर एक उपयोगकर्ता ने लिखा: “एक सांसद का एक दिन का भत्ता (₹2,500) = एक मजदूर का 10 दिन का वेतन (MNREGA ₹250/दिन)।” वहीं, #TaxPayersMoney के तहत यह सवाल उछाला जा रहा है कि क्या आम नागरिकों के टैक्स का उपयोग “विशेषाधिकारों की फंडिंग” के लिए हो रहा है?

निष्कर्ष: क्या संविधान का अनुच्छेद 14 सिर्फ कागजों तक सीमित है?

अनुच्छेद 14 “कानून के समक्ष समानता” की गारंटी देता है। लेकिन, सरकार के इन फैसलों से साफ है कि जनप्रतिनिधि और आम जनता के बीच एक ‘अदृश्य दीवार’ खड़ी कर दी गई है। जरूरत इस बात की है कि वेतन-पेंशन नीतियाँ पारदर्शी और न्यायसंगत हों, न कि “वोट बैंक” या “सत्ता के समीकरण” का औजार। आखिरकार, लोकतंत्र में जनता का पैसा जनता की भलाई पर ही खर्च होना चाहिए।

(यह लेख डेटा एनालिटिक्स, सरकारी दस्तावेजों और सार्वजनिक प्रतिक्रियाओं पर आधारित है।)

Spread the love

Post Comment

You May Have Missed