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ECI मतदान वीडियो नियम : राहुल गांधी ने सबूत मिटाने का आरोप लगाया

ECI मतदान वीडियो नियम

भारत का चुनाव आयोग (ECI) मतदान वीडियो नियम को लेकर एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया है। 18 जून को जारी एक परिपत्र में, आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदान केंद्रों से रिकॉर्ड किए गए वीडियो फुटेज अब केवल उन्हीं उच्च न्यायालयों को उपलब्ध कराए जाएंगे जो चुनाव याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं। इस कदम का मुख्य उद्देश्य मतदाताओं की निजता का संरक्षण और सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करना है। आयोग का मानना है कि इन फुटेज को सार्वजनिक करने से किसी भी समूह या व्यक्ति द्वारा मतदाताओं की पहचान आसान हो सकती है। यह स्थिति उन्हें असामाजिक तत्वों द्वारा दबाव, भेदभाव और धमकी के प्रति संवेदनशील बना सकती है। नए नियम 30 मई, 2025 के बाद अधिसूचित चुनावों पर लागू होंगे। यह बदलाव महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की 5 बजे के बाद के सीसीटीवी फुटेज जारी करने की मांग के बाद आया है।

फुटेज साझा करने पर प्रतिबंध और तर्क

ECI मतदान वीडियो नियम के तहत, आयोग ने सीसीटीवी, वेबकास्ट या वीडियोग्राफी के माध्यम से रिकॉर्ड किए गए मतदान फुटेज को आम जनता के लिए अनुपलब्ध कर दिया है। आयोग का तर्क है कि इन फुटेज को साझा करने से मतदाता आसानी से पहचाने जा सकते हैं। इससे वे “असामाजिक तत्वों द्वारा दबाव, भेदभाव और धमकी” के प्रति संवेदनशील हो जाएंगे।

मुख्य बिंदु :

  1. चुनाव आयोग अब मतदान वीडियो केवल संबंधित उच्च न्यायालयों को उपलब्ध कराएगा।
  2. नया नियम 30 मई 2025 के बाद अधिसूचित चुनावों पर लागू किया जाएगा।
  3. वीडियो से मतदाता पहचान उजागर होने का खतरा आयोग ने प्रमुख कारण बताया।
  4. 45 दिन के भीतर याचिका नहीं हुई तो वीडियो स्वतः नष्ट किए जाएंगे।
  5. मतदान गोपनीयता भंग करना RPA की धारा 128 के तहत दंडनीय अपराध है।
  6. राहुल गांधी ने ECI पर सबूत मिटाने और चुनाव फिक्स करने का आरोप लगाया।
  7. आयोग ने वीडियो जारी करने को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन बताया।

इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण पर पूर्व प्रतिबंध

पिछले साल दिसंबर में, सरकार ने कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों, जैसे सीसीटीवी फुटेज और वेबकास्टिंग फुटेज के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए चुनाव नियमों में बदलाव किया था।

  • यह कदम उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया था।
  • यह संशोधन चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा किया गया था,
  • जिसमें चुनाव नियम, 1961 के नियम 93 में बदलाव किया गया था।

फुटेज के संरक्षण और विनाश पर नए दिशा-निर्देश

ECI मतदान वीडियो नियम के तहत, आयोग ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि यदि चुनाव परिणामों को अदालत में चुनौती नहीं दी जाती है, तो ऐसे वीडियो फुटेज को परिणाम घोषित होने के 45 दिनों के बाद नष्ट कर दिया जाए। यह निर्देश 30 मई को जारी एक अलग परिपत्र में दिया गया था। अधिकारियों ने बताया कि चूंकि चुनाव परिणामों को 45 दिनों से अधिक समय तक चुनौती नहीं दी जा सकती, इसलिए इस अवधि से अधिक समय तक फुटेज को बनाए रखने से इसका दुरुपयोग हो सकता है। यह “गलत सूचना और दुर्भावनापूर्ण बयानबाजी” के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • यदि 45 दिनों के भीतर चुनाव याचिका दायर की जाती है, तो वीडियो नष्ट नहीं किए जाएंगे।
  • फुटेज सक्षम अदालत को उपलब्ध कराए जाएंगे।
  • यह वीडियो उपलब्ध कराना फॉर्म 17ए (मतदाताओं का रजिस्टर) तक पहुंच प्रदान करने के समान है।
  • इसमें मतदाताओं के मतदान केंद्र में प्रवेश करने का क्रम और मतदाता सूची में उनकी क्रम संख्या से संबंधित जानकारी होती है।

मतदाताओं की निजता और कानूनी दायित्व

ECI मतदान वीडियो नियम का यह पहलू विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। अधिकारियों का कहना है कि मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 128 के तहत दंडनीय अपराध है। इसके लिए तीन महीने तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। इस प्रकार, चुनाव आयोग कानूनी रूप से मतदाताओं की गोपनीयता और मतदान की गोपनीयता की रक्षा करने के लिए बाध्य है। आयोग के एक अन्य अधिकारी ने बताया कि अपने मतदाताओं के हितों की रक्षा करना “सबसे बड़ी चिंता” है।

  • आयोग ने अतीत में भी कानून में निर्धारित इस आवश्यक सिद्धांत पर कभी समझौता नहीं किया है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सिद्धांत को बरकरार रखा है।

राहुल गांधी की प्रतिक्रिया और आयोग पर आरोप

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस बदलाव पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने चुनाव आयोग पर “सबूत मिटाने” का आरोप लगाया है।

गांधी ने एक्स पर अपनी पोस्ट में कहा,

“मतदाता सूची? मशीन-पठनीय प्रारूप नहीं देंगे। सीसीटीवी फुटेज? कानून बदलकर छिपाया गया। चुनाव की तस्वीरें और वीडियो? अब वे 1 साल नहीं, बल्कि 45 दिनों में हटा दिए जाएंगे।, “जिसे जवाब देना था – वही सबूत मिटा रहा है।”

  • गांधी ने इसे “मैच फिक्स” बताया।
  • उन्होंने कहा, “एक फिक्स चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर है।”

विपक्षी दलों की मांगें और हालिया घटनाएँ

राहुल गांधी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए मतदाता सूची, मतदान डेटा और वीडियो फुटेज की मांग कर रहे हैं। इस सप्ताह की शुरुआत में, गुजरात में 19 जून को हुए विसावदर विधानसभा उपचुनाव के दौरान एक मतदान केंद्र में ईवीएम के पास खड़े दो लोगों का कथित वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने वीडियो लीक की जांच शुरू कर दी।

आयोग का स्पष्टीकरण और भविष्य के निहितार्थ

चुनाव आयोग ने राहुल गांधी की टिप्पणियों पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया। हालांकि, एक तीसरे अधिकारी ने कहा कि विपक्ष की मांग मतदाताओं के हित में लग सकती है, लेकिन वास्तव में इसका उद्देश्य बिल्कुल विपरीत है। यह मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा चिंताओं के बिल्कुल विपरीत है। आयोग ने अपने पत्र में स्पष्ट किया कि फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, सीसीटीवी और वेबकास्टिंग का उपयोग चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को दर्ज करने के लिए किया जाता है। हालांकि, वे कानून द्वारा अनिवार्य नहीं हैं और इन्हें प्रक्रिया प्रबंधन के लिए आंतरिक उपकरण माना जाता है। आयोग का यह भी कहना है कि ऐसी वीडियो सामग्री जारी करना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के साथ-साथ मतपत्र की गोपनीयता और पवित्रता बनाए रखने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन होगा।

  • आयोग ने नीति की समीक्षा “गैर-चुनावी व्यक्तियों द्वारा ऐसी सामग्री के हाल के दुरुपयोग” के कारण की है।
  • इसका उपयोग “गलत सूचना और दुर्भावनापूर्ण कथन फैलाने” के लिए किया गया है।

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