गेटवे जेटी विवाद SC ने याचिका खारिज की, HC से जल्द फैसला लेने कहा

गेटवे ऑफ इंडिया जेटी विवाद ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सीधे हस्तक्षेप से इनकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट से मानसून समाप्त होने से पहले फैसला सुनाने को कहा है। यह मामला महाराष्ट्र सरकार द्वारा गेटवे ऑफ इंडिया के पास प्रस्तावित यात्री जेटी और टर्मिनल निर्माण को लेकर है, जिसका कोलाबा के निवासियों और पर्यावरणविदों ने जमकर विरोध किया है।
मामले की पृष्ठभूमि
गेटवे ऑफ इंडिया जेटी विवाद की शुरुआत तब हुई जब महाराष्ट्र सरकार ने गेटवे ऑफ इंडिया के समीप एक आधुनिक यात्री जेटी और टर्मिनल बनाने की योजना बनाई। इस परियोजना का उद्देश्य मुंबई के समुद्री परिवहन को बेहतर बनाना और पर्यटकों के लिए सुविधाएं बढ़ाना बताया गया।
हालांकि, कोलाबा के निवासियों और क्लीन एंड हेरिटेज कोलाबा रेजिडेंट्स एसोसिएशन (CHCRA) ने इस योजना का विरोध करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उनका कहना है कि यह परियोजना:
- ऐतिहासिक गेटवे ऑफ इंडिया की सुंदरता को नुकसान पहुंचाएगी।
- पर्यावरण और समुद्री जीवन के लिए हानिकारक हो सकती है।
- बिना सार्वजनिक सुनवाई के मंजूरी दी गई, जो पारदर्शिता के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
27 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करने से इनकार कर दिया, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट पहले से ही इस पर विचार कर रहा है। हालांकि, CJI की अगुवाई वाली पीठ ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया कि वह मानसून समाप्त होने से पहले इस मामले का निपटारा करे।
मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा :
“शहर में कुछ अच्छा हो रहा है, तो हर कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है। दुनिया के कई शहरों जैसे मियामी में ऐसी परियोजनाएं सफलतापूर्वक चल रही हैं।”
जेटी परियोजना को चुनौती क्यों दी जा रही है?
गेटवे विरासत पर संकट उस समय और बढ़ गया जब बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर याचिका में इसे अवैध, मनमाना और विरासत क्षेत्र के लिए विनाशकारी बताया गया। याचिका के अनुसार, जेटी और टर्मिनल की यह परियोजना गेटवे से सिर्फ 280 मीटर की दूरी पर और रेडियो क्लब के पास बनाई जा रही है।
- परियोजना में वीआईपी लाउंज, 150 कारों की पार्किंग और टिकट काउंटर शामिल हैं।
- समुद्र में 1.5 एकड़ क्षेत्र में टर्मिनल प्लेटफॉर्म खंभों पर बनाया जाएगा।
- समुद्र में आधा किलोमीटर लंबा टेनिस रैकेट आकार का जेट्टी प्रस्तावित है।
- गेटवे की मौजूदा सैरगाह दीवार को तोड़ने की योजना है।
विरासत क्षेत्र के नियमों की अनदेखी का आरोप
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इतने संवेदनशील गेटवे विरासत पर संकट के बावजूद इस परियोजना को बिना स्थानीय लोगों की जानकारी के मंजूरी दी गई। निवासियों को न तो कोई नोटिस मिला, न ही आपत्ति दर्ज कराने का मौका।
- गेटवे क्षेत्र के अपार्टमेंट्स में छोटे बदलाव तक की अनुमति नहीं होती।
- इतनी बड़ी संरचना को मंजूरी मिलना नियमों की अनदेखी दर्शाता है।
- विरासत समिति की अनुमति की पारदर्शिता पर भी सवाल उठे हैं।
याचिका में कहा गया है कि यह परियोजना न केवल सौंदर्य और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विरूपण करेगी, बल्कि समुद्रतट की मूल पहचान को भी पूरी तरह से नष्ट कर देगी।
VIP सुविधा पर आपत्ति, पर्यावरणीय प्रभाव की अनदेखी
परियोजना को लेकर एक और बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब बंदरगाह विकास मंत्री ने मार्च 2025 में भूमि पूजन समारोह में बयान दिया कि यह जेटी विशेष रूप से वीआईपी, मशहूर हस्तियों और क्रिकेटरों की नौकाओं के लिए होगी। इससे आम जनता और पर्यावरणविदों में रोष है।
- मुंबई ट्रैफिक पुलिस ने भी मौजूदा ट्रैफिक दबाव के बावजूद NOC दे दी।
- गेटवे क्षेत्र में पहले से ही भीड़ और जाम की स्थिति रहती है।
- परियोजना से समुद्री जीवन और पारिस्थितिक संतुलन पर भी असर पड़ सकता है।
याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि राज्य सरकार इस निर्णय को रद्द करे और गेटवे की विरासत और पर्यावरणीय संतुलन की रक्षा सुनिश्चित की जाए।
सरकार की तरफ से क्या दलीलें दी गईं?
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने याचिकाकर्ताओं के दावों को “भ्रामक” बताया। उन्होंने कहा कि:
- सभी कानूनी मंजूरियां ली गई हैं, जिसमें CRZ (Coastal Regulation Zone) अनुमति भी शामिल है।
- यह परियोजना VIPs के लिए नहीं, बल्कि आम यात्रियों के लिए है।
- इससे मुंबई के यातायात और पर्यटन को फायदा होगा।
निवासियों की मुख्य चिंताएं
गेटवे ऑफ इंडिया जेटी विवाद में स्थानीय लोगों की प्रमुख आपत्तियां इस प्रकार हैं:
- विरासत संरक्षण का मुद्दा
- गेटवे ऑफ इंडिया एक ऐतिहासिक धरोहर है, और इसके पास बड़े निर्माण से इसकी सुंदरता प्रभावित होगी।
- समुद्र तट की दीवार को तोड़ना पड़ सकता है, जो विरासत नियमों के खिलाफ हो सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव
- समुद्री जीवन और कोस्टल इकोसिस्टम पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
- CRZ नियमों का उल्लंघन होने का खतरा है।
- भीड़ और ट्रैफिक की समस्या
- कोलाबा पहले से ही भीड़-भाड़ वाला इलाका है, और इस परियोजना से स्थिति और बिगड़ सकती है।
- पारदर्शिता की कमी
- निवासियों का आरोप है कि बिना उनकी राय लिए यह परियोजना पास की गई।
बॉम्बे हाईकोर्ट की भूमिका और अगली सुनवाई
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले ही इस मामले में एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें पाइलिंग कार्य पर रोक लगाने से इनकार किया गया था। हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि 20 जून से पहले गेटवे ऑफ इंडिया की दीवार नहीं तोड़ी जाएगी। अगली सुनवाई 16 जून को होनी है, और अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद हाईकोर्ट को जल्द फैसला सुनाना होगा।
क्या होगा आगे?
गेटवे ऑफ इंडिया जेटी विवाद अब बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का इंतज़ार कर रहा है। अगर यह परियोजना मंजूर होती है, तो यह मुंबई के परिवहन और पर्यटन के लिए एक बड़ा बदलाव ला सकती है। लेकिन, अगर निवासियों और पर्यावरणविदों की चिंताओं को नजरअंदाज किया गया, तो यह एक बड़ा विवाद बन सकता है।
फिलहाल, सभी की निगाहें बॉम्बे हाईकोर्ट पर टिकी हैं, जिसे अब मानसून से पहले इस मामले में फैसला सुनाना होगा।
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