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हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर प्रतिबंध: अंतर्राष्ट्रीय छात्रों पर प्रभाव

हार्वर्ड विश्वविद्यालय को झटका

हार्वर्ड विश्वविद्यालय को झटका: अंतर्राष्ट्रीय छात्रों पर प्रतिबंध

हार्वर्ड विश्वविद्यालय, दुनिया के प्रतिष्ठित Ivy League/आइवी लीग संस्थानों में से एक, अब राजनीतिक उठापटक के केंद्र में है। डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने हाल ही में हार्वर्ड को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के नामांकन से रोक दिया है। इस कदम का मौजूदा और भविष्य के छात्रों पर गहरा असर पड़ेगा।

इस निर्णय के पीछे होमलैंड सिक्योरिटी विभाग (DHS) ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर कैंपस में “असुरक्षित माहौल” बनाए रखने का आरोप लगाया है। साथ ही, विश्वविद्यालय की विविधता नीतियों को भी निशाना बनाया गया है।

विश्वविद्यालय और DHS की शर्तें: क्या है मांग?

DHS ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को स्टूडेंट्स एंड एक्सचेंज विजिटर्स प्रोग्राम SEVP प्रमाणन रद्द करते हुए 72 घंटे में 6 शर्तें पूरी करने को कहा है। इनमें पिछले 5 वर्षों के छात्र रिकॉर्ड्स जमा करना, अनुशासनात्मक कार्रवाई के दस्तावेज़, और विरोध प्रदर्शनों की वीडियो फुटेज शामिल हैं।

इन शर्तों को पूरा करने पर ही विश्वविद्यालय का स्टूडेंट्स एंड एक्सचेंज विजिटर्स प्रोग्राम SEVP प्रमाणन बहाल होगा। अभी तक हार्वर्ड ने इन मांगों को चुनौती देते हुए कानूनी लड़ाई शुरू की है।

अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की दुविधा: क्या होगा अगला कदम?

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रहे 6,793 अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का भविष्य अनिश्चितता में है। DHS के आदेश के बाद, इन छात्रों को या तो दूसरे संस्थानों में स्थानांतरित होना होगा या वीज़ा खोने का जोखिम उठाना होगा।

विशेषज्ञों के अनुसार, स्नातक होने वाले छात्रों को कुछ राहत मिल सकती है। परंतु नए आवेदकों के लिए I-20 फॉर्म जारी करने पर रोक लग गई है। इससे उनकी पढ़ाई की योजनाएँ धरी-की-धरी रह जाएँगी।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर प्रतिबंध का आर्थिक असर

अंतर्राष्ट्रीय छात्र हार्वर्ड विश्वविद्यालय के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत हैं। वे घरेलू छात्रों की तुलना में 2-3 गुना अधिक फीस भरते हैं। स्टूडेंट्स एंड एक्सचेंज विजिटर्स प्रोग्राम SEVP प्रमाणन रद्द होने से विश्वविद्यालय को वित्तीय नुकसान होगा।

इसके अलावा, हार्वर्ड की वैश्विक छवि को भी झटका लगा है। दुनिया भर के छात्र अब अमेरिकी शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठा रहे हैं।

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हार्वर्ड विश्वविद्यालय क्यों है ट्रम्प के निशाने पर?

ट्रम्प प्रशासन और विश्वविद्यालय के बीच तनाव नया नहीं है। पिछले कुछ महीनों में, विश्वविद्यालय ने सरकार की विवादास्पद नीतियों का विरोध किया है। इनमें प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव और नस्लीय समानता को लेकर मतभेद शामिल हैं।

इसके जवाब में, प्रशासन ने हार्वर्ड के संघीय फंड्स ब्लॉक कर दिए। साथ ही, अनुसंधान अनुदानों को भी रोक दिया गया। यह टकराव अब अंतर्राष्ट्रीय छात्रों तक पहुँच गया है।

राजनीतिक विवाद या शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला?

आलोचकों का मानना है कि विश्वविद्यालय पर प्रतिबंध राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा है। ट्रम्प प्रशासन ने पहले भी ब्राउन, कॉर्नेल जैसे विश्वविद्यालयों को निशाना बनाया है।

इस कदम से अमेरिकी शिक्षा संस्थानों की स्वायत्तता खतरे में पड़ गई है। छात्र अब अपनी बात रखने से डरने लगे हैं।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया और कानूनी लड़ाई

हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने DHS के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है। विश्वविद्यालय के अध्यक्ष ने पूर्व छात्रों और दानदाताओं से समर्थन की अपील की है।

इसके अलावा, हार्वर्ड ने अपनी वेबसाइट पर एक बयान जारी किया। इसमें अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के योगदान को रेखांकित किया गया है।

भारतीय छात्रों के लिए क्या है मायने?

हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भारतीय छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2024-25 में 700 से अधिक भारतीय छात्र नामांकित थे। प्रतिबंध से इनकी पढ़ाई और करियर योजनाएँ प्रभावित होंगी।

स्थानांतरण का विकल्प होने के बावजूद, दूसरे संस्थानों की समयसीमा और शर्तें चुनौती पैदा करेंगी। इससे छात्रों का मनोबल भी गिरेगा।

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हार्वर्ड विश्वविद्यालय का संकट और भविष्य

हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर प्रतिबंध न सिर्फ छात्रों, बल्कि अमेरिकी शिक्षा प्रणाली के लिए चिंता का विषय है। यह घटना राजनीति और शिक्षा के टकराव का उदाहरण बन गई है।

भविष्य में, हार्वर्ड को न केवल कानूनी लड़ाई लड़नी होगी, बल्कि अपनी वैश्विक विश्वसनीयता भी बहाल करनी होगी। छात्रों की उम्मीदें अब इसी पर टिकी हैं।

 

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