कांग्रेस ने इसे मराठी भाषा और पहचान पर हमला बताया।
उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने फैसले का बचाव किया और मराठी की प्रधानता दोहराई।
भाजपा नेता शेलार ने NEP पढ़ने की सलाह दी और भाषायी सम्मान की बात कही।
यह फैसला NEP 2020 के त्रि-भाषा फॉर्मूला के अंतर्गत लिया गया है।
विरोध करने वालों ने केंद्र पर राज्यों पर भाषा थोपने का आरोप लगाया।
इतिहास में 1965 में तमिलनाडु में हिंदी विरोध हिंसक रूप ले चुका है।
प्रारंभिक शिक्षा विवाद पर गहराया बवाल
मुंबई : हिंदी थोपने का विरोध महाराष्ट्र में एक गंभीर शिक्षा विवाद का कारण बन गया है। महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की है कि वर्ष 2025-26 से कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत लागू किया गया है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं। अगर हिंदी थोपी गई, तो संघर्ष अवश्यंभावी है।” उन्होंने आगे कहा कि उनकी पार्टी स्कूलों में हिंदी किताबें वितरित करने या दुकान पर बेचने की इजाजत नहीं देगी।
कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा कि यह मराठी भाषा के साथ अन्याय है और यह मातृभाषा की पहचान को कमजोर करता है। उन्होंने मांग की कि हिंदी को यदि तीसरी भाषा के रूप में जोड़ा भी जाए, तो वह वैकल्पिक होनी चाहिए।
भाषायी पहचान पर राजनीतिक टकराव :
राज ठाकरे बोले राज्य सरकार मराठी बनाम गैर-मराठी विभाजन पैदा कर रही है।
ठाकरे बोले, महायुति सरकार फूट डालो नीति अपना रही, हिंदी थोपने का प्रयास अस्वीकार्य है।
ठाकरे ने कहा, हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं, केंद्र जबरन थोपकर चुनावी लाभ लेना चाहता है।
कांग्रेस ने कहा, भाषा थोपना संघीय ढांचे के खिलाफ है, प्रस्ताव तत्काल रद्द किया जाए।
सरकार और NEP का बचाव :
उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने इस फैसले का समर्थन किया
अजित पवार ने कहा, मराठी राज्य की प्रमुख भाषा रहेगी, हिंदी-अंग्रेज़ी का महत्व स्वीकार, विरोध सिर्फ दिखावा है
आशीष शेलार बोले, राज ठाकरे पहले एनईपी पढ़ें, किसी भाषा का अपमान नहीं होना चाहिए।
पवार ने बताया, मोदी ने मराठी को शास्त्रीय भाषा बनाने की पहल की, भवन निर्माण योजना भी जारी।
पूर्व उदाहरण :
यह विवाद दक्षिण भारत के राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी दोहराया जा रहा है।
महाराष्ट्र में भी दक्षिण भारत जैसा विवाद, तमिलनाडु-केरल ने पहले ही हिंदी थोपने का विरोध किया।
1965 में तमिलनाडु में विरोध हिंसक हुआ था, कई छात्र इस आंदोलन में घायल हो गए थे।
Post Comment