महाराष्ट्र में भाषा नीति पर यू-टर्न: हिंदी को वैकल्पिक भाषा बनाने का प्रस्ताव रद्द

महाराष्ट्र सरकार ने स्कूलों में हिंदी को वैकल्पिक भाषा बनाने संबंधी अपने दो विवादास्पद सरकारी प्रस्ताव (जीआर) रद्द कर दिए हैं। यह निर्णय मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी लागू करने के खिलाफ कड़े विरोध के बाद आया है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पूर्व योजना आयोग के सदस्य नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति के गठन की घोषणा की है। यह समिति राज्य की ‘त्रिभाषी नीति फॉर्मूले’ पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी। यह कदम 5 जुलाई को शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे और मनसे के राज ठाकरे द्वारा घोषित संयुक्त मोर्चे से ठीक पहले उठाया गया है। इस निर्णय से आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम चुनावों से पहले फडणवीस सरकार को अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिल सकती है।
मुख्य बिंदु :
- महाराष्ट्र सरकार ने विरोध के बाद हिंदी को वैकल्पिक बनाने वाले दोनों आदेश रद्द कर दिए हैं।
- अब कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी स्कूलों में हिंदी पढ़ाना अनिवार्य नहीं रहेगा।
- त्रिभाषा नीति पर सुझाव देने के लिए नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक नई समिति बनेगी।
- राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के संयुक्त मोर्चे से पहले सरकार ने यह बड़ा फैसला लिया।
- मराठी भाषा पैनल और शिक्षाविदों ने प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी लागू करने का विरोध किया।
- मुख्यमंत्री फडणवीस ने उद्धव ठाकरे पर मराठी के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया।
- सरकार ने स्पष्ट किया कि मराठी भाषा राज्य की शिक्षा नीति का आधार बनी रहेगी।
कैबिनेट का फैसला और रद्द हुए प्रस्ताव
रविवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री फडणवीस ने घोषणा की कि राज्य मंत्रिमंडल ने 16 अप्रैल और 17 जून को जारी किए गए दो सरकारी प्रस्तावों को रद्द करने का फैसला किया है। इन प्रस्तावों में मराठी भाषा को अनिवार्य और हिंदी को वैकल्पिक भाषा के रूप में पेश किया गया था। 16 अप्रैल के सरकारी प्रस्ताव में मराठी और अंग्रेजी स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने का प्रस्ताव था। हालांकि, विभिन्न हलकों से कड़े विरोध के बाद सरकार ने इसे रोक दिया था।
- इसके बाद 17 जून को संशोधित सरकारी संकल्प जारी हुआ। इसमें सभी स्कूलों में मराठी अनिवार्य की गई थी, जबकि हिंदी वैकल्पिक थी।
- छात्रों को अन्य भारतीय भाषाओं में से किसी एक को चुनने का भी विकल्प दिया गया था।
विरोध और फडणवीस का पलटवार
सरकारी संकल्प में आगे कहा गया था कि यदि किसी स्कूल में प्रति कक्षा 20 छात्र हिंदी के अलावा कोई अन्य भारतीय भाषा सीखना चाहते हैं, तो उन्हें इसकी अनुमति दी जाएगी। इन दोनों सरकारी प्रस्तावों को रद्द करने का मतलब है कि नरेंद्र जाधव समिति की रिपोर्ट से पहले सरकार ने त्रिभाषी नीति लागू न करने का फैसला किया है। मराठी और अंग्रेजी स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी अब तीसरी भाषा नहीं होगी। महाराष्ट्र भाषा पैनल ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया था। पैनल ने कहा था कि कक्षा 5 से पहले हिंदी सहित कोई तीसरी भाषा नहीं पढ़ाई जानी चाहिए।
- मुख्यमंत्री ने पिछली उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार पर भी निशाना साधा।
- उन्होंने कहा कि महा विकास अघाड़ी सरकार ने रघुनाथ माशेलकर समिति की रिपोर्ट स्वीकार कर ली थी।
जाधव समिति और भविष्य की दिशा
माशेलकर समिति ने अंग्रेजी और हिंदी को अनिवार्य बनाने की सिफारिश की थी। फडणवीस ने कहा कि महायुति सरकार ने मराठी को अनिवार्य और हिंदी को वैकल्पिक भाषा बना दिया है। मराठी छात्रों के हित सरकार के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने उद्धव ठाकरे पर मराठी भाषा को लेकर राजनीति करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उद्धव हिंदी के विरोधी हैं, लेकिन अंग्रेजी के लिए लाल कालीन बिछा रहे हैं। हालांकि, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने आरोप लगाया था कि यह हिंदी को अनिवार्य बनाकर त्रिभाषा फॉर्मूला लागू करने का प्रयास है।
- उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया, जिसे अन्य विपक्षी दलों का भी समर्थन मिला।
- मराठी भाषा के विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और संगठनों ने भी सरकार के संशोधित प्रस्ताव का विरोध किया।
राजनीतिक निहितार्थ और आगे की राह
फडणवीस की घोषणा उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे को मात देने का एक प्रयास है। यह आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम चुनावों से पहले मराठी भाषा के मुद्दे को भुनाने की कोशिश है। यह महायुति को चुनाव में नुकसान से बचाने और मराठी लोगों को लुभाने का भी प्रयास है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कक्षा 4 से हिंदी शुरू करने का सुझाव दिया था। उन्होंने आयोजकों से 5 जुलाई को मोर्चा न निकालने की अपील की थी। महाराष्ट्र भाषा पैनल ने भी हिंदी को जल्द लागू करने का विरोध किया था।
- उन्होंने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से इसे वापस लेने का आग्रह किया था।
- राज्य सरकार द्वारा नियुक्त सलाहकार समिति ने शुक्रवार को एक प्रस्ताव पारित किया।
विशेषज्ञों की राय और सांस्कृतिक पहचान
समिति ने मांग की कि कक्षा 5 से पहले हिंदी सहित कोई तीसरी भाषा नहीं पढ़ाई जाए। यह प्रस्ताव पुणे में आयोजित एक बैठक के दौरान पारित हुआ। 27 में से 20 समिति सदस्यों ने इसमें भाग लिया। मराठी भाषा विभाग की सचिव किरण कुलकर्णी भी बैठक में मौजूद थीं। समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने कहा कि यह पहली बार है जब सरकार समर्थित निकाय ने सरकार के फैसले के खिलाफ ऐसा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि वे हिंदी या किसी अन्य भाषा के खिलाफ नहीं हैं।
- लेकिन इसे प्रारंभिक स्कूली शिक्षा में लागू करना सही नहीं है।
- उन्होंने कहा कि शुरुआती वर्षों में मातृभाषा पर ध्यान देना चाहिए।
शिक्षाविदों की चिंता और भाषाई क्षमताएं
देशमुख ने कहा कि समिति ने पहले भी हिंदी को प्राथमिक विद्यालय के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने के सरकार के फैसले पर चिंता जताई थी। प्रसिद्ध भाषा विशेषज्ञ प्रकाश परब और वरिष्ठ मराठी लेखक श्रीपाद भालचंद्र जोशी सहित समिति के सदस्यों ने इस मुद्दे को उठाया। जोशी ने परिणामों की चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि 1999 में मराठी माध्यम के स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं के लिए अंग्रेजी को अनिवार्य विषय के रूप में पेश किया गया था। अब, हिंदी या किसी अन्य तीसरी भाषा को जल्दी जोड़ने से बच्चों की भाषाई क्षमताएं कमजोर ही होंगी।
- उन्होंने दावा किया कि यह महाराष्ट्र की बौद्धिक शक्ति को कमजोर करने का प्रयास है।
- समिति का मुख्य कार्य मराठी भाषा के विकास पर सरकार को सलाह देना है।
समिति की सिफारिशें और सांस्कृतिक प्रभाव
समिति के प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि तीसरी भाषा शुरू करने के विचार पर कक्षा 5 के बाद ही विचार करना चाहिए। तब भी इसे वैकल्पिक ही रहना चाहिए। देशमुख ने कहा कि एक सलाहकार समिति के रूप में, वे दृढ़ता से अनुशंसा करते हैं। सरकार प्राथमिक विद्यालयों में तीसरी भाषा शुरू करने से बचें। ऐसा करने से छात्रों के मनोवैज्ञानिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इससे राज्य की सांस्कृतिक पहचान को नुकसान पहुंच सकता है। अंततः महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को वैकल्पिक भाषा बनाने संबंधी विवादास्पद आदेश वापस ले लिया है।
- यह निर्णय भाषा विशेषज्ञों और हितधारकों की कड़ी आपत्तियों के बाद लिया गया।
- मुख्यमंत्री ने कहा कि मराठी भाषा किसी भी नीति का आधार बनी रहेगी।
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