आपातकाल लोकतंत्र पर हमला और ‘संविधान हत्या दिवस’ की कड़वी याद – PM

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। उन्होंने 1975 के आपातकाल को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में चिन्हित किया। यह हमें 25 जून 1975 की भयावह घोषणा की याद दिलाता है। पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि उस दौरान संविधान की हत्या हुई थी। न्यायपालिका को भी गुलाम बनाने की मंशा रखी गई थी। यह घोषणा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद हुई, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था, जिससे देश में राजनीतिक संकट गहरा गया।
मुख्य बिंदु:
- प्रधानमंत्री मोदी ने 1975 की आपातकाल घोषणा को ‘संविधान हत्या दिवस’ करार दिया।
- न्यायपालिका को गुलाम बनाने और मौलिक अधिकारों को निलंबित करने की कोशिश की गई थी।
- प्रेस पर सेंसरशिप और हजारों नागरिकों पर मीसा कानून के तहत दमन हुआ।
- संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान ने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया।
- ‘मन की बात’ में मोदी ने अटल, मोरारजी और बाबू जगजीवन राम की आवाजें सुनाईं।
- मोदी ने एरी सिल्क को अहिंसा रेशम बताते हुए इसके वैश्विक महत्व को रेखांकित किया।
- आपातकाल की याद दिलाकर लोकतंत्र की रक्षा और भविष्य की सतर्कता पर ज़ोर दिया गया।
आपातकाल: भयावह यातनाओं का दौर और संवैधानिक अधिकारों का निलंबन
प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल के दौरान लोगों को दी गई भयानक यातनाओं पर बात की। उन्होंने कहा, “आपातकाल लगाने वालों ने हमारे संविधान की हत्या की।” उनका लक्ष्य न्यायपालिका को भी अपने अधीन करना था। इस दौरान बड़े पैमाने पर लोगों को प्रताड़ित किया गया था।
- जॉर्ज फर्नांडीज को जंजीरों में बांधा गया था, जो उस दौर के दमन की एक मार्मिक तस्वीर पेश करता है।
- नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था, जिसमें बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल थी।
मीसा कानून का दुरुपयोग, प्रेस पर सेंसरशिप और अमानवीय अत्याचार
मीसा (Maintenance of Internal Security Act) कानून का दुरुपयोग व्यापक रूप से हुआ। इसके तहत किसी को भी बिना किसी ठोस कारण के गिरफ्तार किया जा सकता था। छात्रों को भी बुरी तरह परेशान किया गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया गया था। प्रेस पर कठोर सेंसरशिप लगाई गई; अख़बारों को छापने से पहले सरकारी अनुमति लेनी पड़ती थी। कई अख़बारों ने विरोध में अपने संपादकीय पृष्ठ खाली छोड़ दिए।
- 26 जून 1975 से ही अख़बारों पर पूर्व-सेंसरशिप लगा दी गई थी।
- दिल्ली में कई अख़बारों के बिजली कनेक्शन काट दिए गए थे, ताकि वे ख़बरें प्रकाशित न कर सकें।
- हजारों लोगों पर अमानवीय अत्याचार किए गए, जिसमें हिरासत में यातना और मौतें भी शामिल थीं।
न्यायपालिका पर हमला और जबरन नसबंदी का कलंक
आपातकाल के दौरान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से कमज़ोर किया गया। न्यायाधीशों के तबादले किए गए और न्यायपालिका को कार्यकारी दबाव में काम करने के लिए मजबूर किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने एडीएम जबलपुर मामले में एक विवादास्पद फैसला दिया, जिसने आपातकाल के दौरान जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को निलंबित करने की अनुमति दी।
- संजय गांधी के नेतृत्व में एक बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया।
- इस अभियान के तहत 1.07 करोड़ से अधिक नसबंदी प्रक्रियाएं की गईं, जिनमें कई लोगों की मौतें भी हुईं।
- लोगों को सरकारी सेवाओं और राशन से वंचित किया गया, यदि वे नसबंदी कराने से इनकार करते थे।
लोकतंत्र की विजय और भविष्य के सबक
प्रधानमंत्री ने कहा कि अंत में आम लोगों की जीत हुई। आपातकाल हटा लिया गया और इसे लगाने वालों की हार हुई। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश को उन सभी लोगों को याद रखना चाहिए जिन्होंने आपातकाल का डटकर मुकाबला किया। यह हमें अपने संविधान को मजबूत रखने की प्रेरणा देता है। जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने “संपूर्ण क्रांति” का आह्वान किया, जिसने जनता को एकजुट किया। जेल में रहते हुए भी, विपक्षी नेताओं ने लोकतंत्र के लिए संघर्ष जारी रखा।
- आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) और विभिन्न छात्र संगठनों ने भूमिगत रहकर प्रतिरोध किया।
- लाखों कार्यकर्ताओं को मीसा और डीआईआर (रक्षा भारत नियम) के तहत गिरफ्तार किया गया।
‘संविधान हत्या दिवस’ और ऐतिहासिक भाषणों की गूंज
इस साल आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ है। इसे ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया गया। ‘मन की बात’ के दौरान कुछ ऐतिहासिक ऑडियो क्लिप बजाई गईं। बाबू जगजीवन राम, मोरारजी भाई देसाई और अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण शामिल थे। मोरारजी देसाई ने इंदिरा गांधी शासन के उत्पीड़न को अविश्वसनीय बताया, जबकि वाजपेयी ने 1977 की हार को एक शांतिपूर्ण क्रांति कहा था। इन भाषणों ने लोगों को उस अंधकारमय दौर की याद दिलाई।
एरी सिल्क: ‘अहिंसा सिल्क’ की अनूठी पहचान और वैश्विक पहचान
आपातकाल के अलावा, प्रधानमंत्री मोदी ने मेघालय के पारंपरिक एरी सिल्क की भी सराहना की। उन्होंने इसे ‘अहिंसा सिल्क‘ बताया, जिसका उत्पादन रेशम के कीड़ों को मारे बिना होता है। यह एक नैतिक और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है।
- एरी सिल्क को हाल ही में जीआई टैग मिला है, जो इसकी विशिष्टता को दर्शाता है।
- खासी समुदाय ने इसे पीढ़ियों से संरक्षित किया है, यह उनकी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
- यह रेशम सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा रखता है।
एरी सिल्क: शाकाहारी विकल्प और वैश्विक निर्यात के अवसर
यह एक शाकाहारी रेशम है, जहाँ पतंगे कोकून से स्वाभाविक रूप से बाहर निकलते हैं। यह विधि रेशम उत्पादन को मानवीय और टिकाऊ बनाती है। पिछले साल इसे जर्मनी से ओको-टेक्स प्रमाणन मिला। यह उपलब्धि एरी सिल्क को वैश्विक निर्यात बाजार में ले जाएगी। इससे मेघालय के बुनकरों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान मिलेगी और उनकी आजीविका में सुधार होगा।
आपातकाल की याद और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य
प्रधानमंत्री मोदी का यह संबोधन ऐसे समय आया है। भाजपा और विपक्षी दलों के बीच तीखी बयानबाजी चल रही है। विपक्षी दल मोदी सरकार पर अघोषित आपातकाल का आरोप लगाते हैं। ‘मन की बात’ में आपातकाल को याद दिलाकर, मोदी ने लोकतंत्र की रक्षा के महत्व पर जोर दिया। यह हमें भविष्य के खतरों के प्रति सतर्क रहने के लिए प्रेरित करता है। 1975 का आपातकाल, जिसने भारत के लोकतंत्र को हिला दिया था, आज भी हमें ‘संविधान हत्या दिवस’ की याद दिलाता है। शाह आयोग की रिपोर्ट ने आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों का खुलासा किया, जिसने भविष्य के लिए महत्वपूर्ण सबक प्रदान किए।
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