मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने उद्धव के साथ सुलह पर चर्चा रोकने के दिए निर्देश!

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नेताओं को एक बड़ा निर्देश मिला है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने स्पष्ट किया है कि वे विदेश यात्रा से लौटने (30 अप्रैल) तक उद्धव ठाकरे के साथ सुलह के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं करेंगे। यह कदम तब उठाया गया, जब मनसे के कुछ नेताओं ने इस प्रस्ताव पर नाराजगी जताई।
मनसे प्रमुख राज ठाकरे का नेताओं को सख्त हिदायत
सूत्रों के अनुसार, सोमवार को हुई आंतरिक बैठक में MNS chief Raj Thackeray ने पार्टी के दूसरे पायदान के नेताओं को चेतावनी दी कि वे सार्वजनिक तौर पर सुलह का विरोध न करें। यह निर्णय शनिवार को कुछ नेताओं की आलोचनाओं के बाद लिया गया, जब राज और उद्धव दोनों ने महाराष्ट्र के हित में एकजुट होने की इच्छा जताई थी। मनसे के मुंबई प्रमुख संदीप देशपांडे ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधने का समर्थन किया।
शिवसेना (यूबीटी) ने जताई सुलह की इच्छा
शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत ने इस संभावना को स्वीकार करते हुए कहा, “हम अतीत को भूलाकर नई शुरुआत करने को तैयार हैं।” उन्होंने मनसे नेताओं से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से ऊपर उठकर मराठी अस्मिता को प्राथमिकता देने का आह्वान किया।
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संपादकीय में जताई गई एकजुटता की जरूरत
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में सोमवार को एक बयान प्रकाशित हुआ, जिसमें कहा गया, “मराठी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए राज और उद्धव का एक होना जरूरी है।” संपादकीय में भाजपा पर मुंबई को “गैर-मराठियों” के हवाले करने का आरोप लगाया गया।
राजनीतिक विश्लेषण: क्यों महत्वपूर्ण है यह सुलह?
मनसे प्रमुख राज ठाकरे और उद्धव के बीच तनाव का इतिहास 2006 से है, जब राज ने शिवसेना छोड़कर मनसे बनाई। हालांकि, हाल के वर्षों में दोनों ने भाजपा की नीतियों, विशेषकर हिंदी थोपने और एनईपी के तीन-भाषा फॉर्मूले के विरोध में एक-दूसरे के करीब आने के संकेत दिए हैं। राज्य सरकार के फैसले के बाद मराठी समुदाय में असंतोष है, जिसे दोनों नेता भुनाना चाहते हैं।
भाषा विवाद की पृष्ठभूमि: महाराष्ट्र में हिंदी विरोध की जड़ें 1960 के ‘समयिक आंदोलन’ से जुड़ी हैं, जहां मराठी भाषियों ने बॉम्बे (अब मुंबई) पर अपना अधिकार जताया था। राज ठाकरे ने 2008 में ‘मुंबई पर मराठियों का हक‘ अभियान चलाकर इस मुद्दे को पुनर्जीवित किया।
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चुनावी समीकरण पर असर
2024 के विधानसभा चुनाव में मनसे का खराब प्रदर्शन (शून्य सीटें) और शिवसेना (यूबीटी) का महा विकास अघाड़ी में सिमटना दोनों के लिए चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह गठजोड़ सफल होता है, तो महाराष्ट्र में भाजपा-शिंदे गुट को चुनौती मिल सकती है।
उद्धव का सीधा संदेश: “भाजपा से दूरी बनाएं राज”
शनिवार को एक कार्यक्रम में उद्धव ठाकरे ने कहा, “राज को भाजपा और महाराष्ट्र-विरोधी ताकतों का साथ छोड़ना होगा।” यह टिप्पणी उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के राज से मुलाकात के बाद आई, जो 2022 में शिवसेना विभाजन के नायक रहे हैं।
मनसे–भाजपा रिश्ते की उलटबांसी: 2019 में राज ने भाजपा का खुलकर समर्थन किया, लेकिन 2022 के बाद से उनके बयानों में नरमी आई है। मनसे द्वारा एनडीए में शामिल न होने का फैसला इस रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
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निष्कर्ष: एकजुटता ही समाधान
दोनों नेताओं के बीच सुलह केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संकट से निपटने की जरूरत है। मराठी मानसिकता को लेकर उनके बीच सहमति भविष्य की राजनीति का रुख बदल सकती है। हालांकि, अतीत के विवाद और वर्तमान गठजोड़ों को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा।
जनता की प्रतिक्रिया: सोशल मीडिया पर #ठाकरे_एकता ट्रेंड कर रहा है, जहां युवा वर्ग इस गठजोड़ को महाराष्ट्र की प्रगति के लिए जरूरी मान रहा है।
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