मानवाधिकारों का उल्लंघन: एनएचआरसी ने हरियाणा पुलिस को भेजा नोटिस

“राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी में मानवाधिकारों का उल्लंघन होने की आशंका जताई है। 20 मई 2025 को एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर एनएचआरसी ने हरियाणा पुलिस को नोटिस जारी किया। आयोग ने एक सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानूनी प्रक्रिया पर बहस छेड़ देता है।”
मानवाधिकारों का उल्लंघन: मामले की पृष्ठभूमि
प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष हैं। मई 2025 में हरियाणा पुलिस ने उन्हें “ऑपरेशन सिंदूर” पर फेसबुक पोस्ट के बाद गिरफ्तार किया। यह पोस्ट पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान तनाव पर थी। पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराओं के तहत दो एफआईआर दर्ज कीं। इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा और समाज में वैमनस्य फैलाने के आरोप शामिल हैं।
हरियाणा राज्य महिला आयोग ने भी प्रोफेसर को तलब किया। आयोग ने उनके पोस्ट को महिला सैनिकों का अपमान बताया। आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने यूजीसी के नैतिक दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का आरोप लगाया।
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मानवाधिकारों का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफेसर को 22 मई को अंतरिम जमानत दी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “शब्दों का चयन सावधानी से होना चाहिए।” कोर्ट ने उनकी भाषा को “डॉग व्हिसलिंग” (गुप्त संदेश) करार दिया। साथ ही, उन्हें मामले या भारत-पाक संबंधों पर टिप्पणी करने से रोक दिया। पासपोर्ट जमा करने का भी आदेश दिया गया।
हालाँकि, कोर्ट ने जाँच रोकने से इनकार किया। पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वह एसआईटी गठित करे। यह टीम हरियाणा और दिल्ली से बाहर के अधिकारियों से बनेगी। इससे जाँच की निष्पक्षता सुनिश्चित होगी।
एनएचआरसी की चिंताएँ
एनएचआरसी ने स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई की। प्रोफेसर की गिरफ्तारी मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हुए आयोग ने कहा है कि, “गिरफ्तारी में मानवाधिकार और स्वतंत्रता का हनन हुआ।” हरियाणा पुलिस से पूछा गया, “क्या गिरफ्तारी के समय प्रक्रिया का पालन हुआ?” साथ ही, यह भी जानना चाहा कि क्या प्रोफेसर को कानूनी सहायता तक पहुँच थी।
भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण को लेकर यह मामला एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। पिछले पाँच वर्षों में एनएचआरसी ने 1,200+ गिरफ्तारी-संबंधी शिकायतें दर्ज की हैं। इनमें से 60% मामलों में पुलिस प्रक्रिया की कमियाँ पाई गईं।
प्रोफेसर के पक्ष में तर्क
प्रोफेसर महमूदाबाद के समर्थकों का कहना है कि उनकी टिप्पणियाँ आलोचनात्मक विमर्श को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने फेसबुक पर लिखा था, “भीड़ हिंसा और बुलडोजर राज को रोका जाना चाहिए।” उनके वकील ने कहा, “यह पोस्ट सरकार की नीतियों पर सवाल है, राष्ट्र-विरोधी बयान नहीं।”
शैक्षणिक समुदाय ने भी इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन मानते हुए चिंता जताई। 50+ विश्वविद्यालयों के शिक्षकों ने संयुक्त बयान जारी किया। इसमें कहा गया, “अकादमिक स्वतंत्रता को दबाने से लोकतंत्र कमजोर होता है।”
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मानवाधिकारों का उल्लंघन: अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने प्रोफेसर के साथ एकजुटता दिखाई। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख ने ट्वीट किया, “भारत को अभिव्यक्ति और न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए।” अमेरिकी विदेश विभाग ने भी मामले पर “गहरी निगरानी” की बात कही।
हालाँकि, भारत सरकार ने इन टिप्पणियों को “अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप” बताया। विदेश मंत्रालय ने कहा, “देश की न्याय व्यवस्था स्वतंत्र है। बाहरी ताकतें इसमें दखल न दें।”
भविष्य की चुनौतियाँ
यह मामला भारत में मानवाधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन की बहस को उछालता है। विशेषज्ञों का मानना है कि बीएनएस की धाराएँ (जैसे धारा 124) अक्सर दुरुपयोग का शिकार होती हैं। 2024 में, इन धाराओं के तहत 450+ गिरफ्तारियाँ हुईं, जिनमें 70% मामले अदालतों में खारिज हुए।
नागरिक समाज संगठनों ने ऐसे मामलों में मानवाधिकारों का उल्लंघन रोकने के लिए कानूनों में सुधार की मांग की है। उनका तर्क है, “राष्ट्र-विरोधी” की अस्पष्ट परिभाषा से मनमानी बढ़ती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में कहा था, “राष्ट्रभक्ति और असहमति एक साथ रह सकते हैं।”
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मानवाधिकारों का उल्लंघन रोकने की जरूरत
प्रोफेसर महमूदाबाद का मामला भारतीय लोकतंत्र के लिए एक परीक्षा है। एनएचआरसी की रिपोर्ट और एसआईटी की जाँच नए मानक तय कर सकती है। नागरिक अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ, राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि कानून का दुरुपयोग न हो।
जैसा कि गांधीजी ने कहा था, “कानून की आत्मा उसके शब्दों में नहीं, न्याय में होती है।” मानवाधिकारों का उल्लंघन रोकने के लिए यह आत्मा जीवित रहनी चाहिए।
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