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मुंबई में सड़क दुर्घटना का भयावह सच!

मुंबई में सड़क दुर्घटना का भयावह सच

मुंबई की सड़कों पर मुंबई में सड़क दुर्घटना रोजमर्रा की भयावह वास्तविकता बन गई है। शनिवार को देवनार में हुई एक त्रासदी इसका ज्वलंत उदाहरण है। घाटकोपर-मानखुर्द लिंक रोड पर डंपर ट्रक ने स्कूटर सवार नूर गुलाम शेख और उनके तीन नाबालिग भतीजों को रौंद दिया। इस घटना के तुरंत बाद, स्थानीय निवासियों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया। उनकी मुख्य मांग थी कि भारी वाहन फ्लाईओवर पर चलें, न कि आम सड़कों पर। अगले ही दिन जोगेश्वरी में अजय गुप्ता की एक अन्य मुंबई में सड़क दुर्घटना में मौत ने शहर की यातायात सुरक्षा नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

मुंबई में सड़क दुर्घटना के हालिया मामले: क्या कहते हैं तथ्य?

देवनार की घटना में 28 वर्षीय नूर और 11 से 13 साल के तीन बच्चे शामिल थे। वे स्थानीय बूचड़खाने से बकरी खरीदने जा रहे थे। इसी प्रकार, जोगेश्वरी के अजय गुप्ता मीरा रोड से सब्जियाँ ला रहे थे। वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पर एक डंपर ने उनके स्कूटर को पीछे से टक्कर मारी। दोनों हादसों में डंपर चालकों की लापरवाही प्रमुख कारण थी। नतीजतन, स्थानीय लोगों ने यातायात अवरोधक प्रदर्शन किए। उन्होंने पुलिस स्टेशन के बाहर भी आवाज उठाई।

मुंबई में सड़क दुर्घटना के आँकड़े: 2024 की विस्तृत समीक्षा

पिछले वर्ष शहर में कुल 4,935 मुंबई में सड़क दुर्घटना दर्ज हुईं। इनमें 1,108 लोगों की मौत हुई और 2,500 से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए। हालाँकि, मृत्यु दर में 0.2% की मामूली गिरावट दर्ज की गई। फिर भी, प्रतिदिन औसतन तीन लोगों की जान जाना चिंताजनक है। विशेष रूप से, पैदल यात्री और दोपहिया सवार 70% मामलों में पीड़ित थे। यह आँकड़ा शहर के कमजोर यातायात उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा में गंभीर खामियों को उजागर करता है।

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मौसम और समय का प्रभाव: कब बढ़ता है जोखिम?

मानसून के महीने मुंबई में सड़क दुर्घटना के लिए सबसे घातक साबित होते हैं। जून-जुलाई 2024 में प्रतिमाह 120+ मौतें दर्ज हुईं। इसका प्रमुख कारण था फिसलन भरी सड़कें और कम दृश्यता। त्योहारी सीजन में भी स्थिति भयावह रही। दिसंबर-जनवरी में औसतन 100 मासिक मौतें हुईं। सबसे महत्वपूर्ण बात, शाम 6-9 बजे के बीच 40% हादसे होते हैं। इस समय यातायात घनत्व चरम पर होता है। इसके विपरीत, सुबह के घंटे अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं।

दुर्घटनाओं के मूल कारण: व्यवहार से लेकर बुनियादी ढाँचे तक

गति और लापरवाही: तेज रफ्तार 42% हादसों का प्राथमिक कारण है। नशे में ड्राइविंग से 18% मौतें होती हैं। इसके अतिरिक्त, मोबाइल फोन का उपयोग नए खतरे के रूप में उभरा है। एक अध्ययन के अनुसार, 35% युवा ड्राइवर सिग्नल पर फोन चलाते हैं।

सुरक्षा उपकरणों की उपेक्षा: जानलेवा आदतें मौतों को बढ़ावा देती हैं। उदाहरण के लिए:

  • 67% बाइक सवार बिना हेलमेट चलाते हैं।
  • 89% कार यात्री सीटबेल्ट नहीं लगाते।
  • पीछे बैठे 95% यात्री सुरक्षा नियमों की अनदेखी करते हैं।

बुनियादी ढाँचे की विफलताएँ: क्यों असुरक्षित हैं सड़कें?

86% हादसे खराब रोशनी वाली “सीधी” सड़कों पर होते हैं। विडंबना यह है कि ये स्थान सुरक्षित दिखकर ड्राइवरों को गति बढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं। 78% घातक स्थलों पर पैदल क्रॉसिंग नहीं हैं। परिणामस्वरूप, अमर महल जंक्शन और वर्ली जैसे ब्लैकस्पॉट्स निरंतर खतरा बने हुए हैं। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि मुंबई की केवल 12% सड़कें ही अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों पर खरी उतरती हैं।

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सरकारी प्रयास: क्या पर्याप्त हैं उपाय?

इंजीनियरिंग हस्तक्षेप: प्रशासन ने मुंबई में सड़क दुर्घटना को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। मुंबई-पुणे हाईवे पर 15 स्पीड ब्रेकर लगाए गए। इसी प्रकार, 8 उच्च-जोखिम वाले चौराहों को पुनर्निर्मित किया गया। समृद्धि राजमार्ग पर इन उपायों से मौतों में 29% की कमी आई।

प्रवर्तन और प्रौद्योगिकी: पुलिस ने सड़क सुरक्षा माह में 20,000 हेलमेट वितरित किए। इसके बाद, 12 प्रमुख गलियारों में ऑटोमैटिक स्पीड कैमरे लगाए गए। वर्तमान में, एआई-आधारित दुर्घटना पूर्वानुमान प्रणाली का परीक्षण चल रहा है। इसी तरह, वर्चुअल रियलिटी ड्राइविंग सिमुलेटर युवा चालकों को प्रशिक्षित कर रहे हैं।

आपातकालीन प्रतिक्रिया में सुधार: गोल्डन ऑवर प्रोटोकॉल ने औसत प्रतिक्रिया समय घटाकर 12 मिनट कर दिया है। पहले, 30% पीड़ित अस्पताल पहुँचने से पहले दम तोड़ देते थे। इसके अतिरिक्त, 1,500 प्रथम उत्तरदाताओं को विशेष ट्रॉमा प्रशिक्षण दिया गया। साथ ही, 217 स्कूलों में सड़क सुरक्षा पाठ्यक्रम शुरू किए गए।

शेष चुनौतियाँ: कहाँ अटकी है प्रगति?

44% हिट-एंड-रन मामले अब भी अनसुलझे हैं। इसके ऊपर, यातायात जाम आपातकालीन वाहनों की रफ्तार रोकता है। इसी तरह, पैदल यात्री सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। विशेष रूप से, निर्माण मलबा ढोने वाले डंपर 22% घातक हादसों के लिए जिम्मेदार हैं। महाराष्ट्र सरकार ने मर्सिडीज-बेंज और सेवलाइफ फाउंडेशन के साथ साझेदारी की है। फिर भी, निजी क्षेत्र का निवेश अभी अपर्याप्त है।

सामुदायिक भागीदारी: एक महत्वपूर्ण कड़ी

देवनार विरोध प्रदर्शन ने दिखाया कि नागरिक सक्रियता कितनी प्रभावी हो सकती है। स्थानीय समूह अब “सड़क सुरक्षा जनवाद” अभियान चला रहे हैं। वे साप्ताहिक जागरूकता शिविर आयोजित करते हैं। उदाहरण के लिए, दादर में युवाओं ने स्वयंसेवी ट्रैफिक सहायक बनकर 15% दुर्घटनाएँ कम कीं।

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भविष्य की रणनीति: 2030 तक 50% कम मौतें

सरकार का लक्ष्य 2030 तक यातायात मौतों को आधा करना है। इसके लिए तीन स्तंभों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा:

  • पैदल यात्री केंद्रित डिजाइन: सभी नई सड़कों पर जेब्रा क्रॉसिंग और फुटपाथ अनिवार्य होंगे।
  • कानूनी सख्ती: हिट-एंड-रन के लिए जुर्माना 10 गुना बढ़ाने का प्रस्ताव है।
  • तकनीकी नवाचार: इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम को पूरे शहर में लागू किया जाएगा।

सामूहिक जिम्मेदारी की अपेक्षा

मुंबई में सड़क दुर्घटना की समस्या एकल समाधान से परे है। नागरिकों को हेलमेट और सीटबेल्ट जैसे बुनियादी नियमों का पालन करना होगा। इसी तरह, सरकार को ब्लैकस्पॉट्स का त्वरित निराकरण करना चाहिए। अंततः, ड्राइवर शिक्षा और सख्त प्रवर्तन के समन्वय से ही सड़कें सुरक्षित बन सकती हैं। जैसा कि देवनार के विरोध ने दिखाया, जनता की आवाज परिवर्तन का प्रारंभिक बिंदु है।

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