नांदेड़ में किसान आत्महत्या संकट: मोदी राज के एक दशक का दर्द

2014 से अब तक महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में 1,546 किसान आत्महत्या के मामले सामने आये हैं। मोदी सरकार की गलत कृषि नीतियों के परिणाम स्वरूप यह संकट बरकरार है। मराठवाड़ा के इस जिले की तकलीफ भारत के किसान संकट की दास्तां बयां करती है।
किसान आत्महत्या के चौंकाने वाले आंकड़े
2014 से 2024 के बीच नांदेड़ के 16 तालुकाओं में 1,546 आत्महत्याएं दर्ज हुईं। 2024 में मराठवाड़ा के 822 मामलों में से 146 अकेले नांदेड़ के थे। 2025 की पहली तिमाही में 32% की भयावह बढ़ोतरी हुई।
वार्षिक आंकड़े (2014–2024):
वर्ष | किसान आत्महत्याएं |
2014 | 118 |
2015 | 190 |
2016 | 180 |
2017 | 153 |
2018 | 98 |
2019 | 122 |
2020 | 77 |
2021 | 119 |
2022 | 147 |
2023 | 147 |
2024 | 167 |
2023-24 में आत्महत्याओं में तेजी आई। कर्ज, फसल चौपट और सरकारी मदद की कमी ने संकट गहराया।
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क्यों मौत को गले लगा रहे हैं किसान?
- कर्ज का बोझ और फसल विफलता: कम उपज और बढ़ती लागत ने किसानों को कर्ज के जाल में फंसाया। 2024 में 70% आत्महत्याओं का कारण बंजर खेत थे। महाजनों के चंगुल से निकलना मुश्किल होता है।
- जलवायु आपदाओं ने बढ़ाई मुश्किलें: मराठवाड़ा में सूखा और अनियमित बारिश आम है। 2023 में असमय बारिश ने 40% सोयाबीन बर्बाद कर दिया। सिंचाई सुविधाओं के अभाव में किसान मानसून के भरोसे।
- सरकारी मदद में देरी और भ्रष्टाचार: 2024 में 822 प्रभावित परिवारों में से केवल 303 को ही मदद मिली। मुआवजा आवेदन में महीनों लगते हैं। 1 लाख रुपये का पैकेज अपर्याप्त है।
- मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज: कर्ज और सामाजिक दबाव ने बढ़ाई डिप्रेशन की समस्या। गांवों में काउंसलिंग सेंटर नहीं, सलाह लेने में शर्म महसूस करते हैं।
सरकारी योजनाएं क्यों नाकाम?
किसान आत्महत्या रोकने में विफल नीतियां
महाराष्ट्र सरकार ने कर्ज माफी और लाड़की बहन योजना जैसे कदम उठाए। यह योजना किसानों को राहत पहुंचाने की नहीं बल्कि चुनाव में वोट हासिल करने के लिए लाई गयी थी किन्तु यह योजना बजट की कमी का शिकार होता दिख रहा है। बाकी की अन्य राहत योजनाएं जमीन पर उतरने के पहले भ्र्ष्टाचार की भेंट चढ़ गई।
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किसान आत्महत्या के खिलाफ झूठे वादे
- कर्ज माफी: भ्रष्ट अधिकारियों ने राहत राशि हड़प ली।
- फसल बीमा: जटिल प्रक्रिया ने छोटे किसानों को दूर रखा। जिनका बीमा हुआ, फसल नष्ट होने पर कंपनियों ने उन्हें धोखे से या तो बीमे की राशि से वंचित कर दिया अथवा किसानों के साथ क्रूर मजाक करते हुए 2 रूपये बीमा की रकम पास की
- मानसिक स्वास्थ्य: हेल्पलाइन पर अनुभवहीन कर्मचारी, गांवों तक पहुंच नहीं।
- 2024 तक हजारों आवेदनों में से केवल 90 परिवारों को मदद मिली। आलोचक कहते हैं – योजनाएं दिखावे के लिए हैं।
क्या महाराष्ट्र का संकट बनेगा राष्ट्रीय मुद्दा?
नांदेड़ जिले के किसानों का दर्द, नरेंद्र मोदी के “5 ट्रिलियन भारत की अर्थव्यवस्था” के सपने पर सवाल खड़ा करता है। कृषि संकट देश की तरक्की की दावेदारी को झुठलाता है।
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किसानों के राहत के लिए जरूरी कदम
- मृतक परिवारों को तुरंत मुआवजा: महाराष्ट्र सरकार को चाहिए कि मृतक के परिवारों को तत्काल मुआवजे की जिम्मेदारी समय सीमा का उपबंध करते हुए जिले के कलक्टर को सौपे
- सूखा घोषित क्षेत्रों में ब्याज मुक्त कर्ज: सरकार सूखा घोषित क्षेत्रों में किसानों के लिए ब्याज मुक्त कर्ज की व्यवस्था करें, किसानों को साहूकारों के चक्रवृद्धि कर्ज के चंगुल से बचाये।
- गांव-गांव में मानसिक स्वास्थ्य शिविर: किसान आत्महत्या को रोकने के लिए ग्रामीण क्षत्रों में मनोवैज्ञानिकों और मानसिक चिकित्सकों के समूहों की व्यवस्था करके संकट से जूझ रहें गाओं में मानसिक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन करें
मानवता की पुकार
किसान आत्महत्या सिर्फ आंकड़ा नहीं, यह व्यवस्था की विफलता है। जब तक नीतियां जड़ तक नहीं पहुंचेंगी तब तक न केवल नांदेड़ बल्कि देश के अन्य जिलों के खेत किसानों के मौत की फसल काटते रहेंगे। क्योकि किसानों की खुशहाली के बिना भारत की विकास गाथा अधूरी ही है ।
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