निशिकांत दुबे का सुप्रीम कोर्ट पर हमला और बीजेपी की प्रतिक्रिया!
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का सुप्रीम कोर्ट पर हमला बोला, उन्होंने देश में “गृह युद्ध” की स्थिति के लिए CJI को जिम्मेदार ठहराया। इसके बाद, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने डैमेज कंट्रोल करते हुए इन टिप्पणियों को खारिज कर दिया।
न्यायपालिका पर हमले की रणनीति?
विश्लेषकों का मानना है कि न्यायपालिका को परोक्ष धमकी देने का प्रयास में दो संदेश छुपा है:
संविधान के अनुच्छेद 142 में संशोधन का माहौल बनाना।
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रपति की भूमिका से जुड़े फैसले और वक्फ कानून पर आंशिक रोक जैसे फैसलों के विपरीत सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाना ।
नड्डा का डैमेज कंट्रोल की कोशिश और पार्टी की दूरी
कुछ घंटों बाद, नड्डा ने स्पष्ट किया: “भाजपा दुबे के बयानों से सहमत नहीं। न्यायपालिका हमारे लोकतंत्र का आधार है।” उन्होंने सभी नेताओं को ऐसी टिप्पणियों से बचने की हिदायत दी। हालांकि, अब तक सुप्रीम कोर्ट पर हमलावर बीजेपी के नेताओं पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हुई है।
दुबे का तर्क: “संसद बनाएगी कानून!”
दुबे ने एक्स (ट्विटर) पर वीडियो पोस्ट कर कहा: “सुप्रीम कोर्ट कानून क्यों बनाए? संसद भवन बंद कर देना चाहिए!” उन्होंने NJAC अधिनियम पर चर्चा की मांग की, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
जजों की नियुक्ति और जातिगत प्रतिनिधित्व
दुबे ने न्यायपालिका में “सवर्ण वर्चस्व” पर सवाल उठाए: “SC/ST/OBC जज नहीं हैं। यह भाई-भतीजावाद है!” उन्होंने NJAC के माध्यम से पारदर्शी नियुक्तियों की वकालत की लेकिन सवाल यह है कि गाहे-बगाहे आरक्षण को खत्म करने की वकालत करने वाली बीजेपी के सांसद द्वारा यह मुद्दा उठाना क्या सुप्रीम कोर्ट पर दबाव बनाने का एक हथियार मात्र नहीं है?
राजनीतिक-न्यायिक टकराव का इतिहास
यह पहली बार नहीं जब न्यायपालिका और सत्ताधारी दल टकराए हैं। 1973 के केशवानंद भारती केस से लेकर NJAC विवाद तक, यह संघर्ष जारी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकारें अक्सर न्यायिक स्वतंत्रता को चुनौती देती रहती हैं।
अनुच्छेद 142 और संसद की शक्ति
निशिकांत दुबे का सुप्रीम कोर्ट पर हमला बोला साथ ही दुबे ने सुप्रीम कोर्ट की “तीन महीने की शर्त” को असंवैधानिक बताया। अनुच्छेद 142 कोर्ट को विशेष अधिकार देता है, लेकिन संसद इसमें संशोधन कर सकती है, दुबे ने इशारा दिया । अनुच्छेद 142 के संशोधन के इस मुद्दे पर संवैधानिक विशेषज्ञों में बहस छिड़ गई है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ भी न्यायपालिका पर हमलावर
इससे पहले, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट के “समयसीमा” फैसले की आलोचना की थी। यह दर्शाता है कि सत्ता पक्ष न्यायपालिका पर दबाव बनाना चाहता है।
क्या है भविष्य का रास्ता?
न्यायपालिका और विधायिका के बीच यह टकराव भारतीय लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। न्यायिक स्वतंत्रता पर लगातार हमले पर तत्काल रोक और सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं द्वारा निरंकुश बयानबाजी से संविधान की मर्यादा को बचाये रखना ही समाधान हो सकता है।
Post Comment