न्यायमूर्ति यादव के बयानों पर इन-हाउस जांच की मांग तेज

राष्ट्रीय समिति ने एक चिंताजनक बयान दिया। उनका कहना है कि न्यायमूर्ति यादव खिलाफ कार्रवाई न करना गलत संदेश देता है। यह ढील अन्य न्यायाधीशों को भी भड़काऊ बयान देने का हौसला दे सकती है। इस तरह की लापरवाही न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है। यह मांग सीधे तौर पर न्यायमूर्ति शेखर यादव के एक भाषण के जवाब में उठी है।
न्यायमूर्ति यादव का विवादास्पद भाषण
8 दिसंबर, 2024 को प्रयागराज में एक महत्वपूर्ण घटना हुई। न्यायमूर्ति यादव ने वीएचपी के एक कार्यक्रम में भाषण दिया। यह कार्यक्रम “समान नागरिक संहिता की संवैधानिक आवश्यकता” पर आयोजित था। उनके भाषण में कई आपत्तिजनक बातें शामिल थीं। कई लोगों ने इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ ‘घृणास्पद भाषण’ करार दिया।
भाषण की मुख्य आपत्तिजनक बातें
न्यायमूर्ति यादव ने भारत को गाय, गीता और गंगा की संस्कृति वाला देश बताया। उन्होंने कहा कि यहां हर मूर्ति हरबाला देवी का अवतार है। साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि हर बच्चा राम जैसा है। इसके अलावा, उन्होंने दूसरे धर्म की शिक्षा पर सवाल उठाया। उनका आरोप था कि वहां बच्चों को छोटी उम्र में ही जानवरों के वध के बारे में सिखाया जाता है।
न्यायमूर्ति यादव ने ‘कठमुल्ला’ जैसे अपमानजनक शब्द भी इस्तेमाल किए। यह शब्द अक्सर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ गाली के तौर पर प्रयोग होता है। उन्होंने साफ तौर पर हिंदू बहुसंख्यकवाद का समर्थन किया। उनका कहना था कि देश और कानून बहुसंख्यकों की इच्छा से ही चलेगा।
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न्यायिक आचरण के सिद्धांतों का उल्लंघन
नागरिक समाज समूहों ने इन टिप्पणियों पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उनका मानना है कि न्यायमूर्ति यादव ने न्यायिक शपथ और संविधान के प्रति निष्ठा का उल्लंघन किया। यह बैंगलोर सिद्धांतों के भी खिलाफ है। इन सिद्धांतों में निष्पक्षता और समानता को आधार माना गया है।
विशेष रूप से, सिद्धांत 2.1 न्यायाधीशों को पूर्वाग्रह से मुक्त रहने का निर्देश देता है। इसी तरह, सिद्धांत 5.2 धर्म के आधार पर किसी भी तरह के पक्षपात को मना करता है। न्यायमूर्ति यादव की बातें इन सिद्धांतों और यूएन मानकों दोनों के विपरीत हैं।
जनविश्वास और जवाबदेही पर प्रभाव
एआईएलएजे राष्ट्रीय समिति ने एक गंभीर मुद्दा उठाया। उनका कहना है कि कार्रवाई न होने से जनता का न्यायपालिका पर भरोसा डगमगाता है। विधायिका और न्यायपालिका दोनों की चुप्पी चिंता बढ़ाती है। यह संस्था की साख के लिए अच्छा नहीं है।
इस साल की शुरुआत में विपक्षी सांसदों ने महाभियोग नोटिस दिए थे। दिसंबर 2024 में सीजेएआर ने आंतरिक जांच की मांग की। जनवरी 2025 में 13 वरिष्ठ वकीलों ने सीजेआई से गंभीर कदम उठाने को कहा। उन्होंने न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ आईपीसी की धारा 196 व 302 के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की।
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पारदर्शिता की कमी और भविष्य की चिंताएं
2022 में न्यायाधीशों के खिलाफ 1600+ शिकायतें दर्ज हुई थीं। ये शिकायतें सरकारी ऑनलाइन पोर्टल पर दर्ज की गई थीं। फिर भी, अब तक किसी भी जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। हाल ही में एक आरटीआई आवेदन भी अस्वीकार कर दिया गया। यह जानकारी मांगता था कि क्या कोई जांच हुई।
इस घटना ने न्यायिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। न्यायमूर्ति यादव के मामले में त्वरित और पारदर्शी कार्रवाई जरूरी है। अन्यथा, यह भविष्य में समान विचारधारा वाले न्यायाधीशों को गलत प्रोत्साहन दे सकता है। न्यायपालिका का निष्पक्ष और स्वतंत्र रहना लोकतंत्र के लिए अहम है।
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