Loading Now

न्यायिक टिप्पणी पर सवाल : SC ने हाईकोर्ट की टिप्पणियों को बताया अमानवीय

न्यायिक टिप्पणी पर सवाल

मानव अधिकारों पर चोट: सुप्रीम कोर्ट की सख़्त टिप्पणी 

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की हालिया टिप्पणी पर गंभीर आपत्ति जताई है। इस टिप्पणी में कहा गया था कि बलात्कार पीड़िता ने “खुद मुसीबत को आमंत्रित किया“। सुप्रीम कोर्ट ने इसे “असंवेदनशील” और “अमानवीय दृष्टिकोण” करार दिया। पीठ ने कहा कि न्यायिक टिप्पणी पर सवाल उठना स्वाभाविक है। जमानत देने का निर्णय अलग है, लेकिन इस तरह की टिप्पणी अनुचित है।

न्यायमूर्ति बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “न्यायिक पदों पर बैठे लोगों को शब्दों का चुनाव सावधानी से करना चाहिए।” सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी आम नागरिकों की धारणा का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि “एक आम आदमी इन टिप्पणियों को कैसे देखता है, यह भी महत्वपूर्ण है।”

मुख्य बिंदु (Bullet Points):

  • सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की टिप्पणी को अमानवीय बताया।
  • पीड़िता को “मुसीबत आमंत्रित करने वाली” कहना असंवेदनशील कहा गया।
  • हाईकोर्ट के आदेश के कुछ हिस्सों पर अस्थायी रोक लगाई गई।
  • सॉलिसिटर जनरल ने न्यायिक भाषा की सामाजिक व्याख्या पर सवाल उठाया।
  • पिछली विवादास्पद टिप्पणियों का हवाला देकर संवेदनशीलता की ज़रूरत बताई गई।

कानून और संवेदना में संतुलन जरूरी :

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को जमानत देते समय विवादास्पद टिप्पणी की थी। अदालत ने कहा था कि महिला ने शराब पीकर आरोपी के घर जाने का निर्णय लिया। इसके आधार पर उसे “खुद मुसीबत को न्योता देना” माना गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसपर सख्त ऐतराज़ जताते हुए कहा कि ऐसी न्यायिक टिप्पणी पर सवाल उठते हैं।

पीठ ने स्वप्रेरणा से इस मामले में सुनवाई शुरू की है। 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के 17 मार्च के आदेश पर रोक भी लगाई थी।
उस आदेश में स्तनों को पकड़ना और लोअर की डोरी खींचना बलात्कार के प्रयास के बराबर नहीं बताया गया था। शीर्ष अदालत ने इसे कानून की मूल भावना के खिलाफ बताया। न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की टिप्पणी को भी अमानवीय कहा गया।

प्रमुख टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं :

१) न्यायमूर्ति बीआर गवई (सुप्रीम कोर्ट) :
“अगर जमानत देना है तो दीजिए, पर इस तरह की संवेदनहीन बातें क्यों?”

२) तुषार मेहता (सॉलिसिटर जनरल) :
“आम आदमी को इन टिप्पणियों से क्या संदेश जाएगा, यह भी सोचना चाहिए।”

३) एच.एस. फुल्का (वरिष्ठ अधिवक्ता) :
“हाईकोर्ट ने पीड़िता की मां का नाम उजागर किया, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ है।”

जांच और कानूनी प्रक्रिया :

  • सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के विवादास्पद आदेश की न्यायिक जांच शुरू की।
  • पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्र और सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किए।
  • कहा गया कि जब तक अगला आदेश न आए, हाईकोर्ट के पैराग्राफ 21, 24 और 26 पर रोक लागू रहेगी।
  • इन टिप्पणियों को न्यायिक प्रक्रिया में आगे किसी राहत के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य :

  • इससे पहले भी 2020 में बॉम्बे हाईकोर्ट की एक टिप्पणी विवादों में रही थी।
  • उसमें कहा गया था कि “त्वचा पर त्वचा का संपर्क” न हो तो वह यौन उत्पीड़न नहीं है।
  • बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसपर कड़ी फटकार लगाई थी।
  • यह घटनाएं दिखाती हैं कि न्यायिक टिप्पणी पर सवाल उठने की स्थिति बार-बार उत्पन्न हो रही है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि संवेदनशील मामलों में न्यायिक भाषा का अत्यंत सतर्क उपयोग आवश्यक है।
न्यायिक टिप्पणी पर सवाल केवल अदालतों की गरिमा पर नहीं, बल्कि समाज के विश्वास पर भी प्रभाव डालते हैं।

Spread the love

Post Comment

You May Have Missed