खुफिया विभाग पुनर्गठन निर्णय : मुंबई पुलिस में छठा संयुक्त आयुक्त पद सृजित

पहलगाम आतंकी हमले के बाद खुफिया विभाग पुनर्गठन निर्णय के तहत मुंबई पुलिस को छठा संयुक्त आयुक्त पद सृजित कर बड़ी रणनीतिक पहल की गई है। यह निर्णय हालिया भारत-पाक तनावों और पहलगाम हमले की प्रतिक्रिया स्वरूप आया है। नया पद अब विशेष शाखा की निगरानी करेगा, जिससे खुफिया नेटवर्क का संचालन अधिक प्रभावी हो सकेगा। पहले, यह जिम्मेदारी अतिरिक्त आयुक्त (DIG रैंक) संभालते थे, लेकिन अब यह संयुक्त आयुक्त (IG रैंक) को दी गई है। इससे रिपोर्टिंग संरचना स्पष्ट और शक्तिशाली होगी।
- नया संयुक्त आयुक्त विशेष शाखा को संभालेगा
- सीधे पुलिस आयुक्त को रिपोर्टिंग का ढांचा
- भारत-पाक तनावों के मद्देनज़र लिया गया फैसला
- स्लीपर सेल्स पर पैनी निगरानी सुनिश्चित
- पुराने ढांचे में समन्वय की कमी थी
विशेष शाखा को मिला स्वतंत्र नेतृत्व
विशेष शाखा, जो आतंकी गतिविधियों, स्लीपर सेल्स और गुप्त जानकारी पर नजर रखती है, अब सीधे पुलिस आयुक्त को रिपोर्ट करेगी। यह बदलाव पुराने रिपोर्टिंग ढांचे की सीमाओं को दूर करने के लिए लाया गया है। पहले, विशेष शाखा के अधिकारी कानून व्यवस्था के संयुक्त आयुक्त को रिपोर्ट करते थे। लेकिन अब फील्ड से मिल रही खुफिया जानकारी सीधे निर्णय प्रक्रिया तक पहुंचेगी। इससे कार्यप्रणाली में तेजी और स्पष्टता आएगी।
- IG रैंक का अधिकारी अब कमान संभालेगा
- खुफिया सूचना की गुणवत्ता और गति में सुधार
- निर्णय प्रक्रिया में तेजी आने की संभावना
- गुप्त सूचनाएं जल्द वरिष्ठ नेतृत्व तक पहुंचेंगी
- खुफिया विश्लेषण अधिक बहुस्तरीय होगा
भारत-पाक तनाव बना अहम कारक
यह फैसला अप्रैल 2025 के पहलगाम आतंकी हमले के बाद आया, जब भारत-पाक सीमा पर तनाव चरम पर था। 22 अप्रैल को महाराष्ट्र सरकार ने विशेष बैठक में इस पद को सृजित करने का निर्णय लिया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्लीपर सेल्स की बढ़ती गतिविधियों पर चिंता जताई थी और निगरानी बढ़ाने के निर्देश दिए थे। 2008 के मुंबई हमलों के बाद भी खुफिया ढांचे को मजबूत करने की मांग उठी थी, लेकिन पूर्ण क्रियान्वयन अब जाकर संभव हो पाया है। जिस के तहत खुफिया विभाग पुनर्गठन निर्णय लिया गया
- 22 अप्रैल को लिया गया था फैसला
- मुख्यमंत्री फडणवीस ने दिए थे निर्देश
- 2008 के हमलों से मिला सबक
- पहले प्रस्ताव को राजनीतिक विरोध झेलना पड़ा
- मौजूदा तनावों के बीच फैसले को स्वीकृति मिली
जांच अधिकार में भी बड़ा बदलाव
महाराष्ट्र सरकार ने 9 मई को एक और प्रशासनिक निर्णय में हेड कांस्टेबल और उससे ऊपर के पुलिसकर्मियों को जांच अधिकार दिया। यह आदेश केस पेंडेंसी को कम करने और थानों की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए लाया गया है। आदेश में कहा गया है कि ऐसे पुलिसकर्मियों को प्राथमिकता मिलेगी जो स्नातक हों, सात साल की सेवा पूरी कर चुके हों और डिटेक्टिव ट्रेनिंग पास कर चुके हों।
- आदेश से जांच प्रक्रिया में तेजी आएगी
- प्रशिक्षित और अनुभवी पुलिसकर्मी ही होंगे पात्र
- लंबित केसों का निपटारा सरल होगा
- आदेश से थानों का कार्यभार घटेगा
- खुफिया जानकारी के आधार पर कार्रवाई में तेजी
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और कानूनी पक्ष
पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा, “यह खुफिया विभाग पुनर्गठन निर्णय सुरक्षा तंत्र की मजबूती की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।” नेता संजय निरुपम ने टिप्पणी की, “सरकार ने सही दिशा में कदम उठाया है।” विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 176 (1) के तहत हेड कांस्टेबल को जांच अधिकार देना पूर्णतः वैध है। राजनीतिक हलकों में इसे स्थायित्व और सुरक्षा सुधार की ओर इशारा माना जा रहा है।
- धारा 176 (1) से कानूनी वैधता सुनिश्चित
- विपक्ष ने फैसले को देर से आया बताया
- विशेषज्ञों ने इसे रणनीतिक मजबूती कहा
- खुफिया सूचना प्रणाली में सुधार की दिशा
- सुरक्षा व राजनीतिक स्थिरता की दिशा में प्रयास
राष्ट्रीय स्तर पर हो सकता है मॉडल लागू
मुंबई में खुफिया ढांचे में यह परिवर्तन केवल स्थानीय महत्व का नहीं है, बल्कि इसका असर राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति पर भी पड़ सकता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय पहले ही ‘इंटेलिजेंस नेटवर्क रीऑर्गनाइजेशन’ योजना पर विचार कर रहा है, जिसमें महानगरों में स्वतंत्र खुफिया नेतृत्व को बढ़ावा देना शामिल है। यदि मुंबई मॉडल सफल होता है, तो दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे शहरों में भी इसी तरह के संयुक्त आयुक्त (खुफिया) पद बनाए जा सकते हैं। इससे पूरे देश में खुफिया सूचनाओं की गति और सटीकता में व्यापक सुधार होगा।
- केंद्रीय गृह मंत्रालय मॉडल पर नजर रखे हुए है
- सफल परीक्षण के बाद अन्य राज्यों में भी बदलाव संभव
- राष्ट्रीय इंटेलिजेंस ग्रिड (NATGRID) से जोड़ने की योजना
- उच्च स्तरीय मॉनिटरिंग में एकरूपता आएगी
- राज्यों के बीच सूचना साझा करने में आसानी होगी
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