पाकिस्तानी आतंकी हकीकत पर गुलाम नबी आजाद का बड़ा बयान

पाकिस्तानी आतंकी हकीकत पर एक बार फिर वैश्विक मंच से भारत की तरफ से तीखा संदेश दिया गया है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के अध्यक्ष गुलाम नबी आजाद ने बहरीन में पाकिस्तान को घेरते हुए स्पष्ट कहा कि पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादी पूरी दुनिया के कुल आतंकवादियों से भी ज्यादा हैं।
यह बयान उन्होंने उस समय दिया जब वह भाजपा सांसद बैजयंत जय पांडा के नेतृत्व में गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे।
बहरीन को बताया मिनी इंडिया
गुलाम नबी आजाद ने बहरीन की विविधता और धार्मिक सहिष्णुता की तारीफ करते हुए कहा:
- बहरीन में सभी धर्मों के लोग शांतिपूर्वक रहते हैं।
- यह देश “मिनी इंडिया” जैसा प्रतीत होता है।
- भारत के सांसद यहां भारतीय पहचान के साथ एकजुट हैं।
उन्होंने कहा कि धर्म के नाम पर बने पाकिस्तान में अस्थिरता है, जबकि भारत में सभी धर्मों के लोग एकजुट हैं।
पाकिस्तान में आतंक की फैक्ट्री
गुलाम नबी आजाद का बयान सिर्फ सांकेतिक नहीं था, बल्कि उसमें एक कड़ा वैश्विक संदेश छिपा था :
- पाकिस्तान में रहने वाले आतंकवादियों की संख्या दुनिया के अन्य देशों से कहीं ज्यादा है।
- पाकिस्तान ने धर्म के नाम पर राष्ट्र का निर्माण किया, पर वह अपने ही हिस्सों को एकजुट नहीं रख सका।
- पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) इसका प्रमाण है।
आजाद का इशारा साफ था – पाकिस्तानी आतंकी हकीकत अब दुनिया से छिपी नहीं रह सकती।
आतंकवाद पर भारत-बहरीन समझौते
पूर्व भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, जो इसी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, ने भारत-बहरीन सुरक्षा संबंधों पर ज़ोर दिया।
उन्होंने बताया:
- 2015 में भारत और बहरीन ने आतंकवाद विरोधी समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- 2019 में संयुक्त सुरक्षा वार्ता शुरू हुई।
- दोनों देशों के सुरक्षा एजेंसियों में नियमित संपर्क है।
श्रृंगला ने कहा कि बहरीन भारत के साथ मिलकर आतंकवाद के सभी स्वरूपों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता है।
भारत की वैश्विक रणनीति : आतंकी प्रोपेगंडा का जवाब
इस प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि वैचारिक मोर्चे पर भी जवाब दे रहा है:
- 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद यह यात्रा अहम मानी जा रही है।
- भारत अपनी “शून्य सहिष्णुता” नीति को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रख रहा है।
- सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, अल्जीरिया जैसे देशों से समर्थन जुटाना भी इस यात्रा का उद्देश्य है।
भारत ये भी स्पष्ट कर रहा है कि आतंकवाद अब सिर्फ सीमा पार समस्या नहीं, बल्कि वैश्विक चिंता है।
ऐतिहासिक सन्दर्भ : पाकिस्तान की आतंकी नीति
भारत लंबे समय से पाकिस्तान पर सीमा पार आतंकवाद को प्रायोजित करने का आरोप लगाता रहा है।
- 2001 संसद हमला, 2008 मुंबई हमला, 2016 उरी हमला – सबमें पाक प्रायोजित आतंकियों की भूमिका थी।
- FATF (Financial Action Task Force) ने भी पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ में डाला है।
- UN द्वारा घोषित कई आतंकवादी पाकिस्तान की धरती पर खुलेआम घूमते रहे हैं।
आजाद का बयान इसी पृष्ठभूमि में बेहद महत्वपूर्ण बनता है।
प्रतिनिधिमंडल की भूमिका
इस बहुपक्षीय प्रतिनिधिमंडल में विभिन्न दलों के सांसद शामिल थे:
- बैजयंत जय पांडा (भाजपा)
- निशिकांत दुबे (भाजपा)
- रेखा शर्मा (एनजेपी)
- असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM)
- सतनाम सिंह संधू
- गुलाम नबी आजाद
- हर्षवर्धन श्रृंगला (पूर्व राजदूत)
यह टीम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देने गई है कि भारत आतंकवाद पर एकमत है और इसे राजनीतिक मतभेदों से ऊपर रखता है।
राजनीतिक संदेश: राष्ट्रीय एकता की झलक
गुलाम नबी आजाद ने यह कहकर भारत की लोकतांत्रिक ताकत को रेखांकित किया:
“हम भारत में अलग-अलग राजनीतिक दलों से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन यहां भारतीय के तौर पर आते हैं।”
इस कथन से यह साफ होता है कि आतंकवाद जैसे मुद्दों पर भारतीय नेतृत्व राजनीति से ऊपर उठकर एक मंच पर आता है।
पाक को विश्व मंच पर जवाब
पाकिस्तानी आतंकी हकीकत अब केवल भारत की चिंता नहीं रही, बल्कि दुनिया की भी ज़िम्मेदारी बनती जा रही है।
भारत के इस कदम से यह साफ संदेश गया है:
- आतंकवाद के खिलाफ भारत का रुख सख्त है।
- पाकिस्तान को अब छिपाने के बजाय जवाब देना होगा।
- अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भारत का समर्थन करना चाहिए।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल के गठन की पृष्ठभूमि
भारतीय संसद में लगातार उठते आतंकी खतरे, खासकर जम्मू-कश्मीर और सीमावर्ती राज्यों में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक जनमत तैयार करने की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। इसी के चलते विदेश मंत्रालय और संसदीय मामलों से जुड़े विभागों ने मिलकर एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के गठन का प्रस्ताव रखा।
इस प्रस्ताव का उद्देश्य था
- खाड़ी और इस्लामी देशों को भारत की आतंकवाद पर नीति से अवगत कराना।
- पाकिस्तान के दुष्प्रचार अभियान का वैध अंतरराष्ट्रीय जवाब देना।
- भारतीय मुस्लिम नेतृत्व की धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सोच को विश्व के सामने प्रस्तुत करना।
प्रतिनिधिमंडल का चयन सोच-समझकर किया गया ताकि विविध राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले नेता एक साथ जाकर भारत की आतंकवाद के खिलाफ “अनेकता में एकता” का संदेश दे सकें। विशेष रूप से गुलाम नबी आजाद और असदुद्दीन ओवैसी जैसे मुस्लिम नेताओं की भागीदारी से यह प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान के इस झूठ को तोड़ने के लिए तैयार किया गया था कि भारत में आतंकवाद में उसकी कोई भूमिका नहीं है।
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