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राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम निवेश : सेलेबी का कानूनी संघर्ष

राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम निवेश

सेलेबी एविएशन विवाद: भारत के फैसले को चुनौती

राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम निवेश के इस विवाद में तुर्की की सेलेबी एविएशन ने भारत सरकार के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कंपनी का कहना है कि सुरक्षा मंजूरी रद्द करने का फैसला “अस्पष्ट” और “असंवैधानिक” है। इस कदम से 3,791 कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम निवेश के इस विवाद में अब सबकी नजरें सोमवार को होने वाली अदालती सुनवाई पर टिकी हैं।

  • मुख्य आरोप : भारत ने बिना ठोस कारण बताए राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया।
  • कंपनी का दावा : उसका तुर्की सरकार से कोई लिंक नहीं, निवेशकों का भरोसा डगमगाया।
  • राजनीतिक प्रतिक्रिया : शिवसेना ने मुंबई एयरपोर्ट से सेलेबी को हटाने की मांग की थी।

भारत-पाक तनाव का सेलेबी पर असर

यह विवाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव की वजह से उपजा है। तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था, जिसके बाद भारत ने सेलेबी पर रोक लगा दी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने कहा कि यह फैसला “राष्ट्रीय हित” में लिया गया है।

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : 2019 पुलवामा हमले के बाद से तुर्की-पाक गठजोड़ पर भारत सतर्क।
  • आर्थिक प्रभाव : सेलेबी भारत के 9 प्रमुख एयरपोर्ट्स पर सर्विस देती है, सालाना 5.4 लाख टन कार्गो हैंडल करती है।

कानूनी लड़ाई : सेलेबी के तर्क

सेलेबी ने अदालत में दाखिल याचिका में कहा कि भारत का फैसला “मनमाना” है। कंपनी का कहना है कि उसने सभी सुरक्षा जांचें पास की थीं और अचानक मंजूरी रद्द करना अनुचित है।

  • कानूनी पहलू: क्या राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर बिना कारण बताए लाइसेंस रद्द किया जा सकता है?
  • निवेशकों की चिंता: इस फैसले से विदेशी निवेशकों का भारत में भरोसा कमजोर हो सकता है।

राजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ :

मोदी सरकार के सहयोगी दल शिवसेना ने सेलेबी के खिलाफ प्रदर्शन किए थे। वहीं, एयर इंडिया ने इंडिगो के तुर्की एयरलाइंस के साथ डील रुकवाने की मांग की है।

  • भविष्य की चुनौतियां: अगर अदालत भारत के पक्ष में फैसला देती है, तो तुर्की-भारत व्यापार प्रभावित होगा।
  • वैश्विक प्रतिक्रिया: अन्य देश भारत के “राष्ट्रीय सुरक्षा” के तर्क को कैसे देखेंगे?

सेलेबी विवाद : क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय कानून?

अंतरराष्ट्रीय निवेश कानून के विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला जटिल हो सकता है। भारत ने द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) के तहत तुर्की के साथ समझौता किया हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि सेलेबी अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का रास्ता अपनाती है तो भारत को चुनौती मिल सकती है। हालांकि, राष्ट्रीय सुरक्षा को आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय कानून में विशेष छूट प्राप्त है। यह मामला भारत की विदेशी निवेश नीतियों की परीक्षा लेगा। अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारत के इस कदम को करीब से देख रहे हैं।

विमानन उद्योग पर पड़ने वाले प्रभाव :

इस फैसले का भारतीय विमानन क्षेत्र पर तत्काल प्रभाव पड़ा है। एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) को तुरंत वैकल्पिक सेवा प्रदाताओं की तलाश करनी पड़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे हवाई अड्डों के संचालन में अल्पकालिक व्यवधान आ सकता है। यात्रियों को कुछ असुविधा का सामना करना पड़ सकता है, विशेषकर कार्गो सेवाओं में। सेलेबी के पास उन्नत ग्राउंड हैंडलिंग तकनीक थी जिसका विकल्प ढूंढना चुनौतीपूर्ण होगा। इस घटनाक्रम ने विमानन क्षेत्र में स्वदेशी क्षमता निर्माण की बहस को फिर से जीवित कर दिया है।

तुर्की-भारत आर्थिक संबंधों का भविष्य :

  • यह विवाद तुर्की और भारत के बीच आर्थिक संबंधों को नई दिशा दे सकता है।
  • दोनों देशों के बीच वार्षिक व्यापार लगभग 10 अरब डॉलर का है।
  • तुर्की की कई प्रमुख कंपनियाँ भारत में निवेश कर रही हैं।
  • विशेष रूप से इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र में तुर्की की भागीदारी महत्वपूर्ण है।

कर्मचारियों की नौकरियों को लेकर चिंता :

सेलेबी में कार्यरत 3,791 भारतीय कर्मचारियों का भविष्य अनिश्चितता में है। कर्मचारी संघों ने सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की है। उनका कहना है कि राजनीतिक विवादों की कीमत आम कर्मचारियों को नहीं चुकानी चाहिए। विमानन मंत्रालय ने आश्वासन दिया है कि कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखा जाएगा। संभावना है कि नई सेवा प्रदाता कंपनियाँ इन कर्मचारियों को अवशोषित कर लेंगी। हालांकि, वेतन और सेवा शर्तों में बदलाव की आशंका से कर्मचारी चिंतित हैं। इस मामले में श्रम मंत्रालय की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

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