संविधान की प्रस्तावना विवाद पर आरएसएस की ‘धर्मनिरपेक्षता’ चुनौती

प्रस्तावना से हटें ‘समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष’? आरएसएस महासचिव की दो टूक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना विवाद को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को संविधान की मूल प्रस्तावना से आपातकाल के दौरान जोड़ा गया था और अब इन्हें हटाने की समीक्षा होनी चाहिए। ‘समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष’? आरएसएस महासचिव की दो टूक
उन्होंने यह बयान 25 जून 1975 के आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में दिया।
आपातकाल का संदर्भ और होसबोले का तर्क
होसबोले ने कहा—
“आपातकाल के दौरान जब नागरिकों के अधिकार निलंबित थे, न्यायपालिका अपंग थी और संसद प्रभावहीन थी, तब ये शब्द जोड़े गए। क्या ये भारत के लिए शाश्वत मूल्य हैं, इस पर बहस जरूरी है।”
उन्होंने बी.आर. अंबेडकर का हवाला देते हुए कहा कि ये दोनों शब्द डॉ. अंबेडकर की मूल प्रस्तावना में नहीं थे।
42वां संविधान संशोधन और प्रस्तावना परिवर्तन
- वर्ष 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने 42वां संविधान संशोधन पारित किया था।
- इसके तहत प्रस्तावना में “समाजवादी”, “धर्मनिरपेक्ष” और “अखंडता” जोड़े गए।
- इससे पहले भारत को “संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य” कहा जाता था।
- संशोधन के बाद यह बदलकर “संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य” हो गया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: संशोधन वैध
- नवंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें इन शब्दों को चुनौती दी गई थी।
- न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा: “संविधान पर संसद की संशोधन शक्ति प्रस्तावना तक भी विस्तारित होती है।”
- 2020 में दायर याचिका (बलराम सिंह, अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के माध्यम से) को भी खारिज कर दिया गया।
होसबोले की मांगें:
- कांग्रेस को आपातकाल के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।
- ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवाद’ की शाश्वतता पर पुनर्विचार होना चाहिए।
- संविधान पर बहस होनी चाहिए, सिर्फ उसे अंधभक्ति में नहीं मानना चाहिए।
“जिन्होंने संविधान को सबसे अधिक कुचला, वे आज उसकी प्रति लेकर संसद में घूम रहे हैं,” – दत्तात्रेय होसबोले
कांग्रेस की प्रतिक्रिया: ‘मोदी सरकार मुद्दा भटका रही’
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरएसएस और बीजेपी को आड़े हाथों लिया:
“जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया, वे संविधान की व्याख्या कर रहे हैं। पीएम मोदी एक भुलाए जा चुके अध्याय को दोहरा रहे हैं।”
कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इस बहस को वर्तमान मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए उछाला जा रहा है।
भाजपा की रणनीति: आपातकाल को ‘संविधान हत्या दिवस’ घोषित करना
- बीजेपी ने आपातकाल विरोधियों के सम्मान में मंत्रिमंडल प्रस्ताव पारित किया।
- 2 मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
- पार्टी ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में प्रचारित किया।
ऐतिहासिक संदर्भ: क्या वास्तव में ये शब्द आपातकाल की उपज हैं?
- संविधान सभा की बहसों में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का जिक्र था, लेकिन शब्द नहीं।
- समाजवाद नीति निर्देशक तत्वों में प्रत्यक्ष रूप से मौजूद था, पर प्रस्तावना में नहीं।
- यह भी सत्य है कि 42वां संशोधन एक विशेष राजनीतिक स्थिति में हुआ था— जब संसद की शक्तियाँ एकतरफा थीं।
अब बहस तय फैसला नहीं
संविधान की प्रस्तावना विवाद अब एक बार फिर राजनीतिक और वैचारिक मोर्चे पर लौट आया है।
जहां आरएसएस इसे “इतिहास का दोष सुधारने की कोशिश” मानता है, वहीं कांग्रेस इसे “लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला” करार देती है।
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