सेना की मर्यादा पर प्रहार, सुप्रीम कोर्ट ने शाह खिलाफ SIT जांच का निर्देश

19 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के वन मंत्री विजय शाह की विवादित टिप्पणी पर सख्त रुख अपनाते हुए SIT जांच का आदेश दिया। मंत्री द्वारा भारतीय सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी को अदालत ने “सेना की मर्यादा पर प्रहार” करार दिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मंत्री की माफी को “मगरमच्छ के आंसू” बताते हुए उनके खिलाफ जांच की निगरानी का निर्देश दिया।
🔹 कोर्ट की टिप्पणी:
- “ऐसे बयान से देश की एकमात्र अनुशासित संस्था की गरिमा धूमिल हुई है।”
- “राजनीतिक लाभ के लिए सेना को निशाना बनाना अत्यंत गंभीर कृत्य है।”
मंत्री विजय शाह की टिप्पणी और उसका विरोध
12 मई को मंत्री विजय शाह ने एक जनसभा में कर्नल कुरैशी को लेकर कहा, “ये महिला अधिकारी आतंकवादियों की बहन लगती है।” यह टिप्पणी रिकॉर्ड हुई और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई। इसके बाद:
- 14 मई: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और FIR के आदेश दिए।
- 15 मई: सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री की याचिका पर सुनवाई की।
- 19 मई: अदालत ने SIT जांच का आदेश देते हुए टिप्पणी की कि यह बयान “सेना की मर्यादा पर प्रहार” है।
माफी नहीं, मगरमच्छ के आंसू :
सुनवाई के दौरान जब मंत्री के वकील ने माफी की बात की, तो कोर्ट ने कहा –
“आपने जानबूझकर टिप्पणी की। अब जब मामला तूल पकड़ गया, तब माफी दे रहे हैं। ये मगरमच्छ के आंसू हैं।”
कर्नल सोफिया कुरैशी: जिनके खिलाफ टिप्पणी हुई
कर्नल सोफिया कुरैशी भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारतीय टुकड़ी का नेतृत्व किया। उन्होंने:
- 2016 में UN मिशन में नेतृत्व किया
- साइबर रणनीति और आर्मी कम्युनिकेशन नेटवर्क में योगदान दिया
- सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के स्थायी कमीशन केस में अहम गवाही दी
उन पर की गई टिप्पणी केवल व्यक्तिगत अपमान नहीं, बल्कि सेना की गरिमा के विरुद्ध है।
कानूनी प्रक्रिया: कौन सी धाराएं लागू हुईं?
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जो FIR दर्ज हुई, उसमें भारतीय दंड संहिता की ये धाराएं प्रमुख हैं
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 152 (भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य),
- 196 (1)(बी) (धर्म, जाति, भाषा या अन्य समान विशेषताओं के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना)
- 197 (1)(सी) (बयान या कार्रवाई जो विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य, दुश्मनी या घृणा का कारण बनती है या होने की संभावना है) के तहत दर्ज की गई थी।
- इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट ने DGP को निर्देशित किया कि 28 मई तक SIT प्रारंभिक रिपोर्ट सौंपे।
सम्बंधित घटनाक्रम की प्रमुख तिथियां
- 12 मई 🗣️ – मंत्री विजय शाह ने कर्नल कुरैशी पर विवादास्पद टिप्पणी की
- 13 मई 🔥 – सोशल मीडिया पर तीव्र जन आक्रोश और विरोध शुरू हुआ
- 14 मई ⚖️ – मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर FIR दर्ज करने का आदेश दिया
- 15 मई 🏛️ – मंत्री की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में प्रारंभिक सुनवाई हुई
- 19 मई 👨⚖️ – सुप्रीम कोर्ट ने SIT जांच का निर्देश जारी किया
- 28 मई 📄 – SIT को जांच रिपोर्ट अदालत में सौंपने की अंतिम तिथि तय की गई
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और सेना के पूर्व अफसरों ने मंत्री के बयान की निंदा की। कुछ प्रमुख प्रतिक्रियाएं:
- कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा: “सेना के खिलाफ बोलने वाले को मंत्री पद पर रहने का कोई हक नहीं।”
- सेवानिवृत्त मेजर जनरल सतबीर सिंह: “यह केवल महिला अधिकारी का नहीं, पूरे सैन्य तंत्र का अपमान है।”
- केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान: “माफी से कुछ नहीं होगा, पार्टी से बर्खास्त होना चाहिए।”
ऐतिहासिक सन्दर्भ: क्या यह पहली बार है?
इससे पहले भी सेना पर विवादास्पद टिप्पणी करने वालों पर कार्रवाई हुई है:
- 2017: मणिशंकर अय्यर ने सेना को लेकर बयान दिया, कांग्रेस ने उन्हें निलंबित किया।
- 2021: एक राज्य मंत्री ने CDS बिपिन रावत पर टिप्पणी की थी, जिसके बाद उन्हें माफी मांगनी पड़ी।
परंतु इस बार अदालत ने टिप्पणी को “सेना की मर्यादा पर प्रहार” मानते हुए संवैधानिक दायित्व का उल्लेख किया।
न्यायालय की चेतावनी: सीमित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीम नहीं है:
“जब कोई संवैधानिक पद पर हो, तो उसके शब्दों की जिम्मेदारी भी संविधान के अनुरूप होनी चाहिए।”
सेना की मर्यादा पर प्रहार’ केवल शब्द नहीं, एक संवैधानिक चेतावनी
यह मामला केवल एक विवादित बयान भर नहीं है। यह सेना की मर्यादा पर प्रहार है – उस संस्था पर जो देश के लिए बलिदान देती है, जो लोकतंत्र के सुरक्षा कवच की रीढ़ है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश हमारे लोकतंत्र के लिए चेतावनी है कि सार्वजनिक जीवन में भाषा की मर्यादा, विशेषकर राष्ट्रसेवकों के प्रति, किसी भी हाल में टूटनी नहीं चाहिए।
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