सुप्रीम कोर्ट: असम में फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की जांच का आदेश

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णायक फैसला सुनाया। असम में फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की जांच होगी। यह आदेश मानवाधिकारों की रक्षा करेगा। न्यायालय ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले को खारिज किया। पीड़ितों को कानूनी सहायता मिलेगी। फर्जी पुलिस मुठभेड़ों के आरोप गंभीर चिंता का विषय हैं।
जांच प्रक्रिया के प्रमुख पहलू
असम मानवाधिकार आयोग (AHRC) जाँच करेगा। सभी कथित फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की समीक्षा होगी। पीड़ितों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए कड़े उपाय होंगे।
AHRC को सार्वजनिक नोटिस जारी करना होगा। फर्जी पुलिस मुठभेड़ों से प्रभावित लोग सामने आएँ। नोटिस राष्ट्रीय और स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित होगा। पीड़ित परिवारों को मुफ्त कानूनी सहायता मिलेगी। विधिक सेवा प्राधिकरण संपर्क जानकारी प्रदान करेगा।
जाँच टीम में स्वतंत्र अधिकारी शामिल होंगे। सेवानिवृत्त या सक्रिय पुलिस अधिकारी चुने जाएँगे। उनका रिकॉर्ड पूरी तरह से साफ होना चाहिए। कथित घटनाओं से उनका कोई संबंध नहीं होगा। गवाह संरक्षण प्रोटोकॉल सख्ती से लागू किया जाएगा।
असम सरकार को पूरा सहयोग देना आवश्यक है। वित्तीय और प्रशासनिक संसाधन उपलब्ध कराए जाएँगे। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (ASLSA) सक्रिय भूमिका निभाएगा। जिला एवं तालुका स्तर पर विशेष अधिकारी तैनात होंगे।
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मामले की पृष्ठभूमि: घटनाक्रम विस्तार से
वर्ष 2021 में चिंताजनक घटनाएँ हुईं। मई से दिसंबर 2021 के बीच 80 मुठभेड़ें दर्ज की गईं। दुखद रूप से 28 लोगों की मौत हुई। इसके अतिरिक्त 48 व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हुए। पुलिस ने इन्हें भागने का प्रयास बताया।
एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। न्यायालय ने याचिका को अस्पष्ट माना। पर्याप्त प्रमाणों के अभाव की ओर इशारा किया। बाद में सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।
अवधि | मुठभेड़ों की संख्या | मृतक | घायल |
मई 2021 – अगस्त 2022 | 171 | 56 | 145 |
स्रोत: असम सरकार के शपथ पत्र, अगस्त 2022
पीयूसीएल दिशानिर्देशों का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने पीयूसीएल मामले का हवाला दिया। वर्ष 2014 के इस निर्णय में स्पष्ट नियम बनाए गए। असम में फर्जी पुलिस मुठभेड़ों के दौरान नियमों का पालन नहीं हुआ। फोरेंसिक जाँच में जानबूझकर देरी की गई। अनिवार्य मजिस्ट्रेट जाँच पूरी नहीं कराई गई।
न्यायिक तर्क और आयोगों की भूमिका
स्वतंत्र जाँच की आवश्यकता पर बल दिया गया। पुलिस अपने अधिकारियों की निष्पक्ष जाँच नहीं कर सकती। हितों का टकराव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इसीलिए AHRC को जिम्मेदारी सौंपी गई। आयोग को तत्परता से कार्य करना होगा।
पीड़ित परिवार डर की वजह से चुप थे। उन्हें कानूनी अधिकारों की जानकारी नहीं थी। सार्वजनिक नोटिस से वे सुरक्षित तरीके से आ सकेंगे। कानूनी सहायता उन्हें न्याय दिलाने में मदद करेगी। यह फर्जी पुलिस मुठभेड़ों के खिलाफ बड़ी राहत है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की प्रतिक्रिया
मामले की गंभीरता को देखते हुए NHRC सक्रिय हुआ। उसने शुरू में ही संज्ञान लिया था। राज्य आयोगों के साथ समन्वय बनाया गया। मानवाधिकार संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई।
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पीड़ितों के लिए सहायता तंत्र
तालुका स्तर पर विधिक केंद्र स्थापित किए जाएँगे। पीड़ित बिना भय के सहायता माँग सकेंगे। ASLSA विशेष हेल्पलाइन संचालित करेगा। वकीलों की टीम निःशुल्क कानूनी सलाह देगी।
सहायता प्रकार | प्रदाता संस्था | संपर्क विधि |
कानूनी परामर्श | जिला विधिक सेवा प्राधिकरण | हेल्पलाइन / शारीरिक केंद्र |
मनोसामाजिक सहायता | राज्य महिला आयोग | काउंसलिंग सत्र |
वित्तीय सहायता | असम राहत कोष | आवेदन प्रक्रिया |
जाँच में पारदर्शिता सुनिश्चित करना
सभी सुनवाई सार्वजनिक रूप से की जाएँगी। महीने में एक बार प्रगति रिपोर्ट प्रकाशित होगी। मीडिया को निष्पक्ष रिपोर्टिंग की अनुमति होगी। फर्जी पुलिस मुठभेड़ों से संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक किए जाएँगे।
भविष्य के लिए न्यायिक दिशा-निर्देश
सभी राज्यों को यह आदेश अधिसूचित किया जाएगा। पुलिस मुठभेड़ों के मामलों में त्वरित कार्रवाई होगी। मानवाधिकार आयोगों को अधिक अधिकार दिए जाएँगे। जाँच प्रक्रिया में नागरिक समाज की भागीदारी होगी।
सामाजिक प्रभाव और जागरूकता
इस फैसले से जनता का विश्वास बढ़ेगा। पुलिस बलों में जवाबदेही की भावना आएगी। मानवाधिकार संगठन शैक्षिक कार्यक्रम चलाएँगे। स्कूली पाठ्यक्रम में कानूनी अधिकारों को शामिल किया जाएगा।
न्याय की नई उम्मीद
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश क्रांतिकारी है। फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की जाँच स्वतंत्र रूप से होगी। पीड़ित परिवारों को न्याय मिलने की उम्मीद है। AHRC की जाँच पारदर्शी और निष्पक्ष होगी। असम सरकार को सक्रिय सहयोग देना होगा। यह निर्णय मानवाधिकारों की सुरक्षा में मील का पत्थर है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?
इस मामले के मद्देनजर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य डॉ योगेश दूबे का कहना है कि; देश की सर्वोच्च अदालत के इस निर्णय से कम से काम राज्य स्तर पर सुधार की उम्मीद है जैसे, भविष्य में ऐसी घटनाएँ कम होंगी। पुलिस अधिकारी अपने कार्यों के प्रति जवाबदेह होंगे।
उन्होंने कहा कि; संविधान के अनुच्छेद 21 का पूर्ण सम्मान होगा। जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुरक्षित रहेगी। फर्जी पुलिस मुठभेड़ों के सभी पीड़ितों को न्याय प्रक्रिया में सहायता मिलेगी।
सतर्कता और सहयोग आवश्यक
डॉ दूबे आगे कहा कि; नागरिकों को सजग रहने की आवश्यकता है। किसी भी संदिग्ध घटना की रिपोर्ट करें। मानवाधिकार आयोगों से सीधे संपर्क करें। सामूहिक प्रयासों से ही न्याय सुनिश्चित होगा। फर्जी पुलिस मुठभेड़ों जैसी घटनाएँ रुकेंगी।
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