2 दशक बाद ठाकरे बंधु फिर साथ आए, मराठी अस्मिता मंच पर दिखाई एकता

मुंबई, 5 जुलाई 2025 – 2 दशक बाद ठाकरे बंधु फिर साथ आए, जिसने महाराष्ट्र की राजनीति में नई हलचल मचा दी है। यह एक ऐसा क्षण था जिसका अनुमान कई राजनीतिक पंडित लगा रहे थे। यह शनिवार को मुंबई में एक संयुक्त विजय रैली के दौरान हुआ। यह रैली महाराष्ट्र सरकार के विवादास्पद तीन-भाषा नीति पर सरकारी संकल्प (जीआर) को रद्द करने के जश्न में थी।
- यह निर्णय प्राथमिक विद्यालय के पाठ्यक्रमों में हिंदी को अनिवार्य बनाने से संबंधित था।
- राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की साझा उपस्थिति ने सबको चौंका दिया।
मुख्य बिंदु :
- दो दशक बाद ठाकरे बंधुओं की साझा रैली ने सियासी हलचल तेज कर दी।
- तीन-भाषा नीति रद्द करने पर विजय रैली का आयोजन मराठी गौरव से जुड़ा था।
- राज-उद्धव की उपस्थिति ने मराठी पहचान और भावनाओं को एक साथ जोड़ा।
- राज ठाकरे ने मराठी मानुस के अधिकारों की मुखरता से वकालत की।
- संभावित शिवसेना (यूबीटी)-मनसे गठबंधन ने नई चुनावी समीकरणों को जन्म दिया।
- फडणवीस ने रैली को ‘रुदाली’ बताते हुए राजनीतिक कटाक्षों की बौछार की।
- यह पहचान आधारित राजनीति के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकती है।
मराठी गौरव का उद्घोष और राजनीतिक विरासत
रैली को गैर-राजनीतिक बताया गया, पर यह पूरी तरह से मराठी पहचान से भरी थी। यह बयानबाजी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के परिवारों की राजनीतिक विरासत की आधारशिला है। राज ठाकरे, जिनकी मनसे 2006 में अविभाजित शिवसेना से अलग होकर बनी थी, ने मराठी गौरव पर ध्यान केंद्रित किया। उनके भाषण ने ‘मराठी मानुस’ के अधिकारों के लिए उनकी वकालत को मजबूत किया। दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे ने राजनीतिक कटाक्ष किए। उन्होंने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को ‘जय गुजरात’ नारे के लिए निशाना बनाया। उन्होंने भाजपा पर विभाजनकारी राजनीति का आरोप भी लगाया।
- यह रैली पहचान की राजनीति का एक लिटमस टेस्ट थी।
- यह मराठी मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने की उनकी क्षमता दर्शाती है।
गठबंधन की अटकलें और चुनावी गणित
उद्धव ठाकरे ने राजनीतिक पुनर्मिलन की संभावना का संकेत दिया। राज ठाकरे औपचारिक गठबंधन पर सतर्क रहे। फिर भी, उनके संयुक्त रूप से आने से मजबूत संकेत मिले। यह महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य पर ठाकरे परिवार के प्रभाव की याद दिलाता है। शिवसेना (यूबीटी)-मनसे गठबंधन महाराष्ट्र में चुनावी गणित बदल सकता है। खासकर मुंबई, पुणे और नासिक जैसे शहरी केंद्रों में। यह गठबंधन बनाना चुनौतियों से खाली नहीं होगा। दोनों पार्टियों के पास अलग संगठनात्मक ढांचे हैं। वैचारिक बारीकियां और ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विताएं भी हैं। सीट-बंटवारे की बातचीत एक संभावित खदान बन सकती है। दोनों नेताओं को आंतरिक असंतोष को पार करना होगा। प्रतिस्पर्धी महत्वाकांक्षाओं पर भी काबू पाना होगा।
- सीट-बंटवारे से वोट बैंक मजबूत हो सकते हैं।
- मुंबई के वर्ली, सेवरी, लालबाग जैसे क्षेत्र उनके गढ़ रहे हैं।
राजनीतिक परिणाम और विपक्षी खेमे में हलचल
शिवसेना (यूबीटी)-मनसे गठबंधन के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। एक समेकित मराठी वोट बैंक का तात्कालिक लाभार्थी भाजपा हो सकती है। ठाकरे चचेरे भाइयों को एकजुट करके, मराठी वोट एक बैनर तले आ सकते हैं। इससे भाजपा गैर-मराठी हिंदुत्व मतदाताओं पर हावी हो सकती है। यह गतिशीलता शिंदे गुट और कांग्रेस की संभावनाओं को कमजोर कर सकती है। वे दोनों मराठी वोटों पर निर्भर हैं।
- महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन को भी अशांति का सामना करना पड़ सकता है।
- राज ठाकरे का लाउडस्पीकर विरोध अल्पसंख्यक मतदाताओं को अलग कर सकता है।
यह कांग्रेस और एनसीपी (एसपी) के लिए एक प्रमुख समर्थन आधार है। इससे एमवीए का अल्पसंख्यक वोट बैंक प्रभावित हो सकता है। यह गठबंधन के भीतर तनाव पैदा कर सकता है।
फडणवीस की प्रतिक्रिया: ‘रुदाली’ भाषण और राजनीतिक कटाक्ष
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ठाकरे बंधुओं के पुनर्मिलन पर तंज कसा। उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में राज ठाकरे को ‘धन्यवाद’ दिया। राज ने कहा था कि फडणवीस ने वह कर दिखाया जो बालासाहेब ठाकरे भी नहीं कर सके थे। फडणवीस ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “बालासाहेब ठाकरे मुझे आशीर्वाद दे रहे होंगे।”
- फडणवीस ने उद्धव ठाकरे पर सीधा निशाना साधा।
- उन्होंने रैली को “रुदाली” जैसा भाषण बताया।
- मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि उद्धव ‘हताशा में’ बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि उद्धव ने 25 साल से अधिक समय तक बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) पर शासन किया, पर उनके पास कोई विकास कार्य दिखाने को नहीं है। फडणवीस ने इसके विपरीत कहा, “मोदी के नेतृत्व में, हमने मुंबई को बदला है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्हें मराठी और हिंदू होने पर गर्व है और सभी मराठी व गैर-मराठी लोग उनके साथ हैं।
भविष्य की दिशा: पहचान की राजनीति और चुनौतियाँ
2 दशक बाद ठाकरे बंधु फिर साथ आए हैं, यह घटनाक्रम मराठी मतदाताओं को ध्रुवीकृत कर सकता है। यह मराठी गौरव के मुद्दे पर एकजुट होकर और तीन-भाषा नीति को खत्म करने का जश्न मनाने से हुआ है। यह एक आजमाया हुआ फॉर्मूला है जो उनके मुख्य निर्वाचन क्षेत्र से गहराई से जुड़ा है।
- तीन-भाषा नीति को खत्म करने का फैसले को जीत बताया गया।
- इसने मराठी मतदाताओं के साथ भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाया।
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