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“वक्फ विधेयक” पर बीजद का रुख: विवेकाधिकार के साथ समर्थन!

वक्फ विधेयक पर बीजद का रुख

बीजद ने तोड़ा विरोधी गठजोड़, कहा- “व्हिप नहीं, विवेक से करेंगे निर्णय”

बीजू जनता दल (बीजद) ने वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पर अपना रुख नरम करते हुए राज्यसभा में पार्टी व्हिप नहीं जारी करने का ऐलान किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सस्मित पात्रा ने सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया कि सदस्य “अपने विवेक” से मतदान करेंगे। यह फैसला अल्पसंख्यक समुदायों की “भावनाओं का सम्मान” बताया गया है। इससे पहले, बीजद लोकसभा में विधेयक का विरोध कर रही थी।

क्यों बदला बीजद का स्टैंड?

 ‘वक्फ विधेयक पर बीजद का रुख’ के संबंध में विश्लेषकों का मानना है कि ओडिशा चुनाव में भाजपा से मिली करारी हार (20/21 लोकसभा सीटें गंवाना) के बाद नवीन पटनायक केंद्र में एनडीए से दूरी बनाना चाहते हैं। हालांकि, राज्यसभा में एनडीए के पास पहले से ही बहुमत (125/245) है, लेकिन बीजद के 7 वोट सरकार के लिए मनोवैज्ञानिक जीत साबित होंगे।

उद्धव ठाकरे का तीखा हमला: “जिन्ना को शर्म आ जाती!”

शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा और सहयोगियों पर निशाना साधते हुए कहा, “वक्फ बिल पर जिस तरह की चिंता दिखाई जा रही है, वह पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना को भी शर्मसार कर देती।” उन्होंने अल्पसंख्यक अधिकारों को “राजनीतिक हथियार” बनाने का आरोप लगाया।

विधेयक का विवाद क्या है?

वक्फ संशोधन विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को केंद्रीकृत करना और अवैध कब्जे की जांच के लिए तंत्र मजबूत करना है। विपक्ष का दावा है कि यह कानून अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वायत्तता को कमजोर करेगा और केंद्र सरकार को वक्फ बोर्डों पर अत्यधिक नियंत्रण देगा।

राजनीतिक समीकरण: AIADMK-वाईएसआर कांग्रेस अड़े, बीजद ने बदली चाल

  • AIADMK और वाईएसआर कांग्रेस अब तक विधेयक के खिलाफ दृढ़ हैं।
  • बीजद का पलटवार: 2023 तक “एक राष्ट्र एक चुनाव” समेत कई विवादित बिलों को एनडीए का समर्थन करने वाली पार्टी अब तटस्थता दिखा रही है।
  • ओडिशा चुनाव का असर: लोकसभा और विधानसभा में ऐतिहासिक हार के बाद बीजद ने संसद में मोदी सरकार से दूरी बनाना शुरू किया। प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान सोनिया गांधी पर टिप्पणी का विरोध करते हुए वॉकआउट भी किया था।

विशेषज्ञों की राय: “रणनीतिक चाल या सिद्धांतों का समर्पण?”

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. प्रदीप कुमार बताते हैं, “बीजद का यह कदम दोहरी रणनीति का हिस्सा है। एक तरफ, वे ओडिशा में हिंदुत्व राजनीति से बचना चाहते हैं, दूसरी ओर केंद्र में सरकार से टकराव नहीं चाहते। हालांकि, ‘विवेकाधिकार’ का बहाना भविष्य में उनकी विश्वसनीयता को चुनौती दे सकता है।”

निष्कर्ष: संसदीय लड़ाई से आगे की राजनीति

वक्फ विधेयक पर बहस सिर्फ कानूनी पहलू तक सीमित नहीं है। यह 2024 के बाद के राजनीतिक समीकरणों, विपक्ष की एकजुटता और एनडीए के विस्तार की परीक्षा भी है। बीजद का यह निर्णय नवीन पटनायक की केंद्र-राजनीति में बदलती प्राथमिकताओं का संकेत देता है, जो 2024 के चुनावी नतीजों के बाद और स्पष्ट होगा।

वक्फ संपत्तियों का भारत में लगभग 8 लाख एकड़ भूमि पर कब्जा है, जिसका वार्षिक राजस्व 365 करोड़ रुपये से अधिक है। नया विधेयक इन संपत्तियों के डिजिटलीकरण और केंद्रीय नियंत्रण पर जोर देता है।

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