आरएलजेपी प्रमुख पशुपति कुमार पारस ने एनडीए गठबंधन से संबंध तोड़े, अन्याय का आरोप लगाया
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) के नेता और दलित नेता रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने सोमवार (14 अप्रैल, 2025) को एनडीए गठबंधन छोड़ने की घोषणा कर दी। उन्होंने आरोप लगाया कि एनडीए ने उनकी पार्टी के साथ “अन्याय” किया है।
पशुपति पारस ने कहा, “मैंने अपने पांच सांसदों के साथ एनडीए छोड़ दिया है। 2014 से मैं इस गठबंधन का हिस्सा था, लेकिन हमें उचित सम्मान नहीं मिला।”
पशुपति कुमार पारस ने क्यों छोड़ा एनडीए?
पशुपति कुमार पारस ने बताया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलजेपी ने छह सीटें जीतीं, लेकिन बाद में एनडीए ने उन्हें नजरअंदाज किया।
हलाकि “2024 के चुनाव में हमें एक भी सीट नहीं दी गई, जबकि चिराग पासवान की पार्टी को पांच सीटें मिलीं,” उन्होंने कहा। इसके बाद पशुपति पारस ने मार्च 2024 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
क्या अब आरएलजेपी महागठबंधन में शामिल होगी?
जब पूछा गया कि क्या वे राजद के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन में शामिल होंगे, तो पशुपति पारस ने कहा, “लालू प्रसाद जी हमारे पुराने सहयोगी हैं। फिलहाल हम बिहार के सभी 38 जिलों का दौरा कर रहे हैं।
243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है।” उनके करीबी सूत्रों ने बताया कि आरएलजेपी महागठबंधन के साथ जाने पर विचार कर रही है, बशर्ते उन्हें उचित सम्मान मिले।
रामविलास पासवान को भारत रत्न देने की मांग
पशुपति पारस ने अपने भाई रामविलास पासवान को “दूसरा अंबेडकर” बताते हुए उन्हें भारत रत्न देने की मांग की।
उन्होंने कहा, “रामविलास जी ने दलितों के उत्थान के लिए कड़ी मेहनत की। उन्हें यह सम्मान मिलना चाहिए।”
भविष्य की रणनीति क्या होगी?
पशुपति कुमार पारस ने कहा कि वे अभी बिहार के शेष 16 जिलों का दौरा करेंगे और फिर पार्टी के नेताओं के साथ भविष्य की रणनीति तय करेंगे। “हम जनता के बीच जा रहे हैं।
अगर महागठबंधन हमें सम्मान देता है, तो हम साथ चलने को तैयार हैं,” उन्होंने संकेत दिया।
निष्कर्ष
पशुपति कुमार पारस का एनडीए छोड़ना बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। अगर वे विपक्षी गठबंधन में शामिल होते हैं, तो 2025 के विधानसभा चुनावों में एनडीए को बड़ा झटका लग सकता है।
फिलहाल, आरएलजेपी की अगली चाल सभी की नजरों में है।
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