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सार्वजनिक मर्यादा का उल्लंघन : विजय शाह की टिप्पणी पर SC की नसीहत

सार्वजनिक मर्यादा का उल्लंघन

‘सार्वजनिक मर्यादा का उल्लंघन’ शब्दों से सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री विजय शाह को चेताया। उन्होंने सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी पर आपत्तिजनक बयान दिया। अदालत ने कहा कि सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति से अनुशासन और ज़िम्मेदारी की उम्मीद की जाती है। मंत्री ने दावा किया कि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया। फिर भी कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बयान सीधे कर्नल सोफिया को लक्षित करता है। बयान में उन्होंने कहा, “हमने उनकी बहन से उन्हें सबक सिखाया।” यह कथन मीडिया और राजनीतिक हलकों में विवाद का कारण बन गया।

  • कोर्ट ने कहा, हर सार्वजनिक बयान में ज़िम्मेदारी होनी चाहिए
  • मंत्री शाह ने सुप्रीम कोर्ट में एफआईआर रद्द करने की याचिका दी
  • हाईकोर्ट पहले ही मामले की जांच के आदेश दे चुका है
  • सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को प्रचार प्रयास बताकर खारिज किया

सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी और कानूनी बहस

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ मंत्री होना बयानबाज़ी की छूट नहीं देता। सीजेआई बी आर गवई ने दो टूक कहा, “हर शब्द में मर्यादा होनी चाहिए।” कोर्ट ने मामले पर तुरंत सुनवाई से इनकार किया। साथ ही यह भी जोड़ा कि हाईकोर्ट पहले से संज्ञान में है। कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें केंद्र और राज्य सरकार से मंत्री पर कार्रवाई की मांग की गई थी। पीठ ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं अक्सर मीडिया प्रचार के लिए दायर की जाती हैं।

  1. CJI ने कहा, “ऐसी याचिकाएं अख़बार की खबर पर नहीं टिकतीं”
  2. कोर्ट ने प्रचार की नीयत वाली याचिकाओं से किनारा किया
  3. हाईकोर्ट की निगरानी में जांच आगे बढ़ेगी
  4. मंत्री ने वीडियो पोस्ट कर माफी मांगी थी

मुख्य बिंदु – सुप्रीम कोर्ट और विजय शाह विवाद

1]सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री विजय शाह की याचिका पर तत्काल हस्तक्षेप से किया इनकार

2] मंत्री शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी पर परोक्ष टिप्पणी की, जिसे कांग्रेस ने आपत्तिजनक बताया

3] सुप्रीम कोर्ट ने कहा – सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति से जिम्मेदार भाषा की उम्मीद

4] हाईकोर्ट ने पहले ही FIR दर्ज करने और जांच की निगरानी का आदेश दे दिया है

5] शाह ने बयान के बाद वीडियो जारी कर माफी मांगी, लेकिन विवाद बढ़ता रहा

6] याचिका में केंद्र और राज्य सरकार से कार्रवाई की मांग की गई थी, सुप्रीम कोर्ट ने प्रचार बताया

7] कोर्ट ने कहा – “अखबार पढ़कर हर कोई याचिका दायर नहीं कर सकता”

8] कर्नल सोफिया कुरैशी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में सेना का प्रतिनिधित्व किया था

9] 2019 में भी शाह ने एयर स्ट्राइक पर विवादित बयान दिया था

10] सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को इस पर विस्तार से सुनवाई करेगा

सेना, ऑपरेशन सिंदूर और राजनीतिक प्रतिक्रिया

कर्नल सोफिया कुरैशी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान प्रेस को जानकारी दी थी। यह भारत की पाक आतंकियों पर जवाबी कार्रवाई थी। विंग कमांडर व्योमिका सिंह भी उनके साथ थीं। इस अभियान के बाद वे राष्ट्रीय चेहरा बनीं। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मंत्री ने सेना की बहादुर महिला अफसर को बदनाम किया। शाह के बयान से यह संकेत मिला कि सेना की महिला अधिकारी को अपमानजनक रूप में पेश किया गया। इस पर पूरे देश में आक्रोश दिखा और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं सामने आईं।

  • ऑपरेशन सिंदूर में सोफिया कुरैशी ने प्रेस को जानकारी दी
  • मंत्री ने नाम लिए बिना टिप्पणी की
  • कांग्रेस ने इसे सेना का अपमान बताया
  • BJP ने कहा, बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया

राजनीतिक प्रतिक्रिया और पुराना उदाहरण

इस विवाद पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा कि यह बयान सिर्फ महिला अधिकारियों का नहीं, बल्कि सेना की प्रतिष्ठा का भी अपमान है। प्रियंका गांधी ने भी सोशल मीडिया पर लिखा कि “एक महिला अधिकारी पर इस तरह की टिप्पणी देश की बहादुरी का अपमान है।” कांग्रेस ने मांग की कि मंत्री को बर्खास्त किया जाए और जांच निष्पक्ष हो। बीजेपी की ओर से बयान आया कि मंत्री ने पहले ही माफी मांग ली है और मामला राजनीतिक रंग न दिया जाए।

ऐसा ही मामला 2019 में सामने आया था, जब एक केंद्रीय मंत्री ने विंग कमांडर अभिनंदन की मूंछों पर विवादित टिप्पणी की थी। उस समय भी सेना के प्रतिनिधित्व पर राजनीतिक टिप्पणी पर सवाल उठे थे।

  • कांग्रेस ने मंत्री को बर्खास्त करने की मांग की
  • प्रियंका गांधी ने सेना के अपमान की बात कही
  • बीजेपी ने माफी को पर्याप्त बताया
  • 2019 में अभिनंदन पर टिप्पणी से मिला पुराना उदाहरण

मर्यादा और जवाबदेही की ज़रूरत

कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादास्पद टिप्पणी ने सार्वजनिक पद की गरिमा पर सवाल खड़े किए हैं। सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी ने यह साफ किया कि मंत्री पद कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि जवाबदेही का प्रतीक है। सेना की महिला अधिकारी को आतंकवाद से जोड़ना न केवल अनुचित है, बल्कि यह सेना की प्रतिष्ठा पर भी आघात करता है।

  1. सार्वजनिक पदों पर बोलने में सावधानी ज़रूरी
  2. सुप्रीम कोर्ट ने जिम्मेदारी की याद दिलाई
  3. सेना को राजनीति से अलग रखना चाहिए
  4. सार्वजनिक मर्यादा का उल्लंघन न करे
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