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APP vs BJP : ‘बैंक ऑफ जुमला’ और 2500 रुपए के वादे पर दिल्ली में राजनीतिक तूफान!

APP vs BJP : ‘बैंक ऑफ जुमला’ और 2500 रुपए के वादे पर दिल्ली में राजनीतिक तूफान!

Delhi की महिलाओं को हर महीने 2500 रुपए देने का भाजपा का वादा एक बार फिर सुर्खियों में है। आम आदमी पार्टी (आप) ने इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर निशाना साधते हुए ‘बैंक ऑफ जुमला’ का प्रतीकात्मक चेक बांटकर प्रदर्शन किया। आइए जानते हैं कि क्यों यह मुद्दा चुनावी वादों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर रहा है और कैसे यह राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है।

चेक, वादे और ‘जुमले’ की कहानी, क्या है पूरा मामला?

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि 8 मार्च 2023 (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस) से दिल्ली की हर महिला के बैंक खाते में हर महीने 2500 रुपए जमा किए जाएंगे। हालांकि, यह तारीख निकल गई, लेकिन न तो पैसा आया और न ही योजना का रजिस्ट्रेशन शुरू हुआ। इसी को लेकर आप ने ‘बैंक ऑफ जुमला’ नाम से महिलाओं को 2500 रुपए के प्रतीकात्मक चेक बांटे और भाजपा पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया।

‘मोदी की गारंटी’ या ‘चुनावी जुमला’? आम आदमी पार्टी ने उठाए सवाल

आप के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने कहा, “प्रधानमंत्री ने कहा था कि यह ‘मोदी की गारंटी’ है, लेकिन आज तक महिलाओं के फोन में मैसेज तक नहीं आया। यह साबित करता है कि भाजपा के वादे महज झूठे सपने हैं।”
नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने भी हमला बोलते हुए कहा, “यह वादा ‘जुमला’ था। भाजपा ने महिलाओं को भरोसे में लेकर धोखा दिया।”

वहीं, दिल्ली की पूर्व महापौर डॉ. शैली ओबेरॉय ने करोलबाग में प्रदर्शन के दौरान कहा, “भाजपा ने कहा था कि दिल्ली में सरकार बनते ही पैसे जमा कर देंगे, लेकिन आज भी महिलाएं इंतजार कर रही हैं।”

भाजपा के पिछले ‘जुमलों’ पर क्यों है बवाल?

यह पहली बार नहीं है जब भाजपा पर ‘जुमलेबाजी’ के आरोप लगे हैं। 2014 के चुनाव में ‘हर खाते में 15 लाख रुपए’ का वादा और 2019 में ‘किसानों की आय दोगुनी करने’ का दावा भी विवादों में रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे वादे चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं, लेकिन इनकी पूर्ति न होने से जनता का भरोसा डगमगाता है।

दिल्ली की महिलाओं पर क्या होगा असर? आंकड़ों की कहानी

  • दिल्ली में ~3.5 करोड़ की आबादी में लगभग 48% महिलाएं हैं।
  • यदि भाजपा का वादा पूरा होता, तो सरकार को हर महीने लगभग 1,750 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते।
  • आप ने इसे ‘अव्यावहारिक’ बताते हुए दिल्ली में अपनी महिला सुरक्षा योजनाओं (महिला बस सेवा, मोहल्ला क्लिनिक) का उदाहरण दिया है।

क्या कहती है भाजपा? जवाबदेही पर सन्नाटा!

बीजेपी ने अभी तक इस मुद्दे पर स्पष्ट जवाब नहीं दिया है। हालांकि, कुछ नेता इसे ‘आप का प्रोपेगैंडा’ बता रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शेजार कुरैशी ने एक इंटरव्यू में कहा, “केंद्र सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन दिल्ली में आप सरकार योजनाओं को अवरुद्ध करती है।”

निष्कर्ष: वादों की राजनीति या जनता का भरोसा?

यह मामला सिर्फ 2500 रुपए का नहीं, बल्कि चुनावी वादों की विश्वसनीयता का है। जनता के मन में सवाल उठ रहा है: “क्या नेताओं के वादे केवल वोट बैंक तक सीमित हैं?” 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले यह बहस और गर्माई है, क्योंकि आप जैसे दल भाजपा की ‘जुमला राजनीति’ को अपना मुख्य हथियार बना रहे हैं।

क्या आपको लगता है कि राजनीतिक दलों को वादों की पूर्ति के लिए कानूनी बाध्य होना चाहिए? अपनी राय कमेंट में साझा करें!

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