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चीन की नामकरण रणनीति पर भारत का तीखा पलटवार

चीन की नामकरण रणनीति

चीन की नामकरण रणनीति पर भारत ने एक बार फिर सख्त रुख अपनाया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है। चीन द्वारा अप्रैल 2024 में 30 स्थानों के नाम बदलने की चौथी सूची जारी की गई थी। इससे पहले चीन 2017, 2021 और 2023 में भी ऐसे ही कदम उठा चुका है। भारत ने हर बार इसे “बेतुका और व्यर्थ” करार दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “रचनात्मक नामकरण इस निर्विवाद सच्चाई को नहीं बदल सकता।”

  • रणधीर जायसवाल ने चीन को बताया ‘बेतुका’
  • चीन की चौथी सूची अप्रैल 2024 में जारी
  • 2017, 2021, 2023 में भी हुई थी कोशिश
  • भारत ने हर बार विरोध दर्ज कराया

बीजिंग का दावा, नई दिल्ली की अस्वीकार :

चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी भाग मानता है। लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है कि यह क्षेत्र उसका अविभाज्य हिस्सा है। नई दिल्ली ने कहा कि चीन की नामकरण रणनीति केवल भ्रम फैलाने की कोशिश है। यह कदम सीमा विवाद को और गहरा करता है। वर्ष 2017 में चीन ने छह स्थानों के नाम बदलने की शुरुआत की थी। इसके बाद यह एक सुनियोजित रणनीति में बदल गई। 2021 में 15 और 2023 में 11 स्थानों के नाम बदले गए थे।

  • चीन ने नामकरण को बताया ‘तिब्बती दावा’
  • 2017 से लगातार बढ़ रही गतिविधि
  • भारत ने हर स्तर पर किया विरोध
  • नाम बदलने से सीमा नहीं बदलती

भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया और सैद्धांतिक रुख :

भारत ने हमेशा स्पष्ट किया है कि अरुणाचल प्रदेश पर उसका पूर्ण नियंत्रण है। रणधीर जायसवाल ने कहा, “हमारे सैद्धांतिक रुख के अनुसार, हम इन कदमों को पूरी तरह अस्वीकार करते हैं।” पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी 2017 में कहा था कि “चीन की इन चालों से हमारे भूभाग की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ता।” वर्तमान विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भी 2023 में चीन की इन गतिविधियों पर सख्त आपत्ति जताई थी।

  • भारत का रुख: ‘अविभाज्य हिस्सा’
  • सुषमा स्वराज ने 2017 में जताई थी आपत्ति
  • डॉ. एस. जयशंकर ने 2023 में कहा था ‘कोरी कल्पना’
  • अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की कूटनीतिक विजय

सीमा विवाद की जड़ें और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य :

अरुणाचल विवाद की जड़ें 1914 की शिमला संधि से जुड़ी हैं। तब ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच मैकमोहन रेखा तय की गई थी। चीन ने इस रेखा को कभी मान्यता नहीं दी। इस कारण 1962 का भारत-चीन युद्ध भी हुआ था। आज भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) को लेकर भ्रम बना हुआ है। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन नामकरण के जरिए राजनीतिक और सैन्य दबाव बनाना चाहता है। लेकिन भारत की कूटनीति और सेना दोनों सतर्क हैं।

  • 1914 की शिमला संधि है विवाद की जड़
  • 1962 में युद्ध के बाद विवाद और गहरा हुआ
  • LAC पर चीन की बढ़ती गतिविधियां
  • नामकरण से राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश

शिमला संधि: एक ऐतिहासिक सीमांकन प्रयास

20वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन के बीच सीमाओं को स्पष्ट करने के उद्देश्य से शिमला में एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ। वर्ष 1914 में संपन्न हुई इस शिमला संधि को ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों की मध्यस्थता में तैयार किया गया था। इसका प्रमुख उद्देश्य तिब्बत की सीमाओं को निर्धारित करना और ब्रिटिश भारत व चीन के साथ तिब्बत के संबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना था। इस संधि के तहत प्रस्तावित मैकमोहन रेखा चीन-भारत सीमा विवाद की पृष्ठभूमि में एक निर्णायक तत्व के रूप में उभरी। हालांकि यह रेखा ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमांकन के लिए नक्शों पर दर्शाई गई थी, लेकिन चीन ने इसे कभी औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया। इस अस्वीकृति ने आने वाले वर्षों में सीमा विवाद और भू-राजनीतिक तनावों की नींव रख दी।

मैकमोहन रेखा आज भी भारत और चीन के बीच प्रमुख विवादों में से एक है, खासकर अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र को लेकर। शिमला संधि इस पूरे परिप्रेक्ष्य में एक ऐतिहासिक दस्तावेज है, जिसने आधुनिक दक्षिण एशियाई सीमाओं के गठन और विवादों में अहम भूमिका निभाई है।

चीन की चालें और भारत की स्पष्टता :

भारत ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि अरुणाचल प्रदेश पर उसका अधिकार निर्विवाद है। चीन की नामकरण रणनीति केवल भ्रामक प्रचार है। भारत न केवल कूटनीतिक स्तर पर बल्कि सैन्य मोर्चे पर भी पूरी तरह सजग है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी भारत के रुख को मान्यता देता है। भारत का संदेश साफ है: नक्शे में नाम बदलने से धरातल की सच्चाई नहीं बदलती।

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