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“दक्षिण से सीखो”: राज ठाकरे ने भाषा विवाद पर तीखी प्रतिक्रिया दी

"दक्षिण से सीखो": राज ठाकरे ने भाषा विवाद पर तीखी प्रतिक्रिया दी

राज ठाकरे ने आज एक बार फिर भाषाई विवाद पर जोरदार बयान दिया। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख ने कहा कि महाराष्ट्र को दक्षिणी राज्यों से सीखना चाहिए कि कैसे अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा की जाती है। उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का उदाहरण देते हुए कहा, “दक्षिण ने हिंदी थोपे जाने का मजबूती से विरोध किया, हमें भी ऐसा ही करना चाहिए।”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर बहस

केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति (NEP) में तीन भाषाएं पढ़ाने का प्रावधान है, जिसमें हिंदी को शामिल किया गया है। लेकिन तमिलनाडु जैसे राज्य इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह हिंदी को जबरन लादने की कोशिश है। राज ठाकरे भी इसी नाराजगी में शामिल हो गए हैं। उनका सवाल है— “क्या महाराष्ट्र में मराठी को उतना सम्मान मिल रहा है, जितना दक्षिण में उनकी भाषाओं को मिलता है?”

महाराष्ट्र में मराठी का सवाल:

ठाकरे ने मुंबई जैसे शहरों में मराठी के कम होते प्रभाव पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “हमारे यहाँ लोग प्रतिक्रिया नहीं देते, जबकि दक्षिण के लोग अपनी भाषा के लिए लड़ते हैं।” उनकी पार्टी हमेशा से मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की मांग करती रही है।

केंद्र सरकार का पक्ष:

वहीं, भाजपा ने स्पष्ट किया है कि NEP में हिंदी के अलावा अन्य भाषाएं भी चुनने की आजादी है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि यह नीति छात्रों पर हिंदी नहीं, बल्कि भाषाई विविधता को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है। इस बीच, मध्य प्रदेश सरकार ने कॉलेजों में मराठी, तमिल, तेलुगु जैसी भाषाएं पढ़ाने की योजना बनाई है।

डीएमके का तर्क:

तमिलनाडु की डीएमके पार्टी इस मामले में सख्त है। उनका कहना है कि तीन-भाषा फॉर्मूला दक्षिण की संस्कृति के खिलाफ है। वे अपने दो-भाषा मॉडल (तमिल + अंग्रेजी) पर अड़े हुए हैं और कहते हैं कि यही उनकी पहचान है।

सवाल यह है कि क्या भाषाई नीतियों में राज्यों की भावनाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए? या फिर पूरे देश में एक समान शिक्षा व्यवस्था जरूरी है? राज ठाकरे का यह बयान इस बहस को फिर से हवा देगा।

क्या आपको लगता है कि हिंदी को जबरन थोपा जा रहा है? नीचे कमेंट में अपनी राय जरूर बताएं!

 

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2 comments

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Jay Prakash Sharma

वेस्ट की जीवन पद्धति कभी दक्षिण की नहीं हो सकती। वहाँ के लोग बाजारों मे और दूसरे राज्यों में हिंदी के सहारे जीविका चलाते हैं। राज यह सन् सत्तर नहीं दुई हज़ार पचीस है!!

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