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कट्टर कार्रवाई पर सवाल, छात्रा की गिरफ्तारी पर बॉम्बे हाईकोर्ट की फटकार

कट्टर कार्रवाई पर सवाल

एक 19 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्रा द्वारा सोशल मीडिया पर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर की गई एक पोस्ट के चलते गिरफ्तारी पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और शैक्षणिक संस्थान की भूमिका पर तीखा सवाल उठाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह की कट्टर कार्रवाई पर सवाल उठना स्वाभाविक है, क्योंकि यह एक युवा छात्रा का जीवन बर्बाद कर सकती है।

सोशल मीडिया पोस्ट पर गिरफ्तारी, अदालत ने उठाए सवाल

महाराष्ट्र की एक 19 वर्षीय छात्रा को इंस्टाग्राम पर ऑपरेशन सिंदूर को लेकर पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यह पोस्ट ‘रिफॉर्मिस्तान’ नामक लाहौर आधारित इंस्टाग्राम हैंडल से रीपोस्ट की गई थी। छात्रा ने दो घंटे बाद पोस्ट हटाते हुए माफ़ी मांगी, फिर भी उस पर कानूनी कार्रवाई की गई।

  • 9 मई को पुणे से हुई गिरफ्तारी
  • पोस्ट में ‘इस्लामोफोबिक कट्टरता’ की आलोचना थी
  • छात्रा को जान से मारने की धमकियां मिली थीं

छात्रा के भविष्य पर संकट, अदालत का कड़ा रुख

बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ किया कि छात्रा ने माफ़ी मांगकर अपनी मंशा स्पष्ट कर दी थी। बावजूद इसके गिरफ्तारी और निष्कासन पर अदालत ने नाराजगी जताई।

  • छात्रा पुणे के सिंहगढ़ इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ती हैं
  • सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय से संबद्ध निजी संस्थान है कॉलेज
  • याचिका में कार्रवाई को बताया गया ‘मनमाना और गैरकानूनी’

छात्रा को गिरफ्तार कर परीक्षा से रोका गया

छात्रा को गिरफ्तार करने के बाद कॉलेज प्रशासन ने उसे निष्कासित भी कर दिया और परीक्षाएं देने से भी वंचित कर दिया गया। छात्रा ने अदालत में याचिका दाखिल करते हुए कहा कि उसके खिलाफ की गई कार्रवाई न केवल कठोर थी बल्कि पूरी तरह से मनमानी और गैरकानूनी भी थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाया। न्यायमूर्ति गौरी गोडसे और सोमशेखर सुंदरसन की खंडपीठ ने कहा कि यह मामला छात्रा के जीवन से जुड़ा है और सरकार तथा कॉलेज दोनों की प्रतिक्रिया अनुचित रही है।

हाईकोर्ट की मौखिक टिप्पणियां: सरकार और कॉलेज को फटकार

न्यायमूर्ति गोडसे ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा:

  • “आप एक छात्रा का जीवन बर्बाद कर रहे हैं?”
  • “किस तरह का रवैया है ये? क्या आपने उसका स्पष्टीकरण मांगा?”
  • “शैक्षणिक संस्थान का काम छात्र को सुधारना है, न कि उसे अपराधी बनाना।”

उन्होंने यह भी कहा कि अगर छात्रा ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है और माफी मांग ली है, तो उसे परीक्षा देने से क्यों रोका जा रहा है? इस संदर्भ में अदालत ने कहा कि छात्रा को बाक़ी परीक्षाओं में बैठने देना चाहिए और कॉलेज को उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए, न कि उसे कठघरे में खड़ा करना।

‘कट्टर कार्रवाई पर सवाल’ पर न्यायपालिका की दृढ़ टिप्पणी

‘कट्टर कार्रवाई पर सवाल’ उठाते हुए अदालत ने यह भी कहा कि जब छात्रा ने माफी मांग ली, तब सरकार की प्रतिक्रिया जरूरत से ज्यादा सख्त थी। राज्य सरकार की ओर से पेश वकील प्रियभूषण काकड़े ने कहा कि छात्रा को पुलिस एस्कॉर्ट के साथ परीक्षा देने की अनुमति दी जा सकती है। इस पर कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “वह कोई अपराधी नहीं है, जो पुलिस एस्कॉर्ट की ज़रूरत हो। उसे रिहा किया जाना चाहिए और सामान्य रूप से परीक्षा देनी चाहिए।”

राष्ट्रीय हित पर कॉलेज की दलील को किया खारिज

कॉलेज की ओर से जब “राष्ट्रीय हित” की बात की गई तो न्यायमूर्ति सुंदरसन ने कहा:
“कौन-सा राष्ट्रीय हित? वह पहले ही परिणाम भुगत चुकी है।”

  • कहा, “वह अपराधी नहीं, छात्रा है”
  • अदालत ने छात्रा को तुरंत रिहा करने की बात कही
  • पुलिस एस्कॉर्ट से परीक्षा दिलवाने की राज्य की पेशकश ठुकराई

छात्रा की रिहाई के आदेश, अगली सुनवाई शाम तक

पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील फरहाना शाह को छात्रा की तत्काल रिहाई के लिए अलग याचिका दाखिल करने की अनुमति दी। शाम तक सुनवाई टाल दी गई।

अदालत ने स्पष्ट कहा:
शैक्षणिक संस्थानों को सुधारक बनना चाहिए, अपराधी गढ़ने का केंद्र नहीं।”

शिक्षा बनाम सज़ा: कोर्ट ने खींची लक्ष्मण रेखा

अदालत ने टिप्पणी की कि शैक्षणिक संस्थानों का काम छात्रों की सोच को दिशा देना है, न कि उन्हें दंडित करना। इस पूरे घटनाक्रम में स्पष्ट हो गया कि कहीं न कहीं सरकारी तंत्र और शिक्षण संस्थान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की दिशा में बढ़ रहे हैं।

  • अदालत ने कहा: “शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों की मदद करनी चाहिए, न कि उन्हें अपराधी बनने में धकेलना चाहिए।”
  • छात्रा पुणे के सिंहगढ़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग की छात्रा है।
  • कॉलेज सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध एक निजी संस्था है।
  • इस मामले से उठे गंभीर प्रश्न

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