महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य? स्कूलों में तीसरी भाषा को लेकर नया विवाद

महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य किए जाने के नए सरकारी संकल्प (जीआर) ने राज्य के शैक्षिक और राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर गर्माहट पैदा कर दी है। मंगलवार को जारी इस संशोधित जीआर में कहा गया है कि राज्य के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। यह आदेश अप्रैल में जारी पिछले निर्देश का अद्यतन है, जिसे क्षेत्रीय भाषा अधिवक्ताओं और राजनीतिक दलों के कड़े विरोध के बाद वापस ले लिया गया था। उस समय इसे गैर-हिंदी भाषी छात्रों पर हिंदी थोपने का प्रयास बताया गया था।
- संशोधित आदेश में एक प्रावधान शामिल है।
- इसके तहत छात्रों को हिंदी के स्थान पर कोई अन्य भारतीय भाषा चुनने की अनुमति है।
- शर्त यह है कि स्कूल में एक ही कक्षा के कम से कम 20 छात्र ऐसा अनुरोध करें।
संशोधित GR में मुख्य बातें
नए जीआर में स्पष्ट किया गया है कि राज्य पाठ्यक्रम रूपरेखा (एससीएफ) 2024 की सिफारिशों के आधार पर हिंदी सामान्य तौर पर कक्षा 1 से 5 तक की तीसरी भाषा होगी। हालांकि, इसमें एक चेतावनी भी शामिल है।
- “अगर छात्र तीसरी भाषा के रूप में हिंदी के बजाय किसी अन्य भारतीय भाषा का अध्ययन करना चाहते हैं, तो उन्हें अनुमति दी जाएगी।”
- “लेकिन, वैकल्पिक भाषा तभी दी जाएगी जब एक ही कक्षा के कम से कम 20 छात्र उसे सीखने में रुचि व्यक्त करें।”
मुख्य बिंदु :
- कक्षा 1 से 5 तक हिंदी तीसरी भाषा के रूप में लागू करने का संशोधित जीआर जारी।
- छात्र चाहें तो हिंदी की जगह अन्य भारतीय भाषा चुनने का विकल्प मौजूद।
- वैकल्पिक भाषा चुनने के लिए कम से कम 20 छात्रों की शर्त विवादित बनी।
- शिक्षकों और पाठ्यक्रम की कमी से विकल्प लागू करना स्कूलों के लिए मुश्किल।
- NEP 2020 और SCF 2024 की सिफारिशों के विपरीत बताया जा रहा यह निर्णय।
- राज ठाकरे समेत विपक्षी दलों ने हिंदी थोपने का आरोप लगाकर विरोध जताया।
- भुसे ने मराठी को अनिवार्य बताया, पर विशेषज्ञों ने हिंदी को डिफ़ॉल्ट करार दिया।
वैकल्पिक भाषा का प्रावधान और शर्तें
यदि वैकल्पिक भाषा का विकल्प चुनने वाले छात्रों की संख्या 20 या अधिक होती है, तो उस भाषा को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक प्रदान किया जाएगा। हालांकि, यदि छात्रों की संख्या 20 से कम है, तो भाषा को ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाया जाएगा। यह प्रावधान ही विवाद का मुख्य कारण बन रहा है।
- पुराने जीआर में हिंदी कक्षा 1 से 5 तक अनिवार्य थी।
- व्यापक प्रतिक्रिया के बाद, शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने अनिवार्यता खत्म करने की बात कही थी।
विरोध का मुख्य कारण: 20 छात्रों की सीमा
संशोधन के बावजूद, नवीनतम संकल्प ने नए विवाद को जन्म दिया है। आलोचकों का तर्क है कि 20 छात्रों की सीमा के कारण अधिकांश स्कूलों के लिए वैकल्पिक पाठ्यक्रम प्रदान करना अव्यावहारिक है। यह प्रभावी रूप से हिंदी को डिफ़ॉल्ट तीसरी भाषा के रूप में स्थापित करता है।
- महाराष्ट्र के 80% से अधिक स्कूल इस शर्त को पूरा नहीं कर पाएंगे।
- खासकर सरकारी स्कूल जिनमें कुल छात्रों का नामांकन ही 20 से कम होता है।
पाठ्यक्रम और शिक्षकों की कमी का मुद्दा
शिक्षाविद् वसंत कल्पांडे ने कहा, “उन्होंने वादा किया था कि वे हिंदी के विकल्प के साथ पाठ्यक्रम डिजाइन भी उपलब्ध कराएंगे।” उन्होंने सवाल किया, “बिना पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों और शिक्षकों के सरकार तीसरी भाषा के रूप में हिंदी के विकल्प की अनुमति कैसे देगी?” यदि 20 से कम छात्र हैं, तो ऑनलाइन मोड में पढ़ाई की बात भी अस्पष्ट है, खासकर कक्षा 1 के छोटे बच्चों के लिए।
- गिरीश सामंत, शिक्षण मंडल गोरेगांव के अध्यक्ष, ने ऑनलाइन शिक्षण की अस्पष्टता पर चिंता जताई।
- उन्होंने कहा कि कक्षा 1 के छोटे बच्चों को ऑनलाइन भाषा कैसे पढ़ाई जा सकती है, यह उचित नहीं।
NEP 2020 और शिक्षाविदों की चिंताएं
कई शिक्षाविद कक्षा 1 से तीन भाषाओं को लाने का विरोध कर रहे हैं। महाराष्ट्र स्कूल प्रिंसिपल्स एसोसिएशन के पूर्व प्रमुख महेंद्र गणपुले ने बताया कि तीसरी भाषा को शामिल करना एससीएफ की सिफारिशों के विपरीत है। एससीएफ ने प्री-प्राइमरी और कक्षा 1 से 2 तक के फाउंडेशनल स्टेज के लिए केवल दो भाषाओं की सिफारिश की थी।
- शिक्षाविद् किशोर दरक ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का हवाला दिया।
- एनसीएफएसई कक्षा 6 से तीसरी भाषा शुरू करने की सिफारिश करता है।
- दरक ने कहा, “महाराष्ट्र के लिए पहली कक्षा के बच्चों को तीसरी भाषा शुरू करना कोई अकादमिक समझ नहीं है।”
राजनीतिक दलों का विरोध और मराठी भाषा की अनिवार्यता
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है। पार्टी प्रमुख राज ठाकरे ने राज्य सरकार पर स्कूलों में “पिछले दरवाजे से हिंदी थोपने” का आरोप लगाया है। उन्होंने नई नीति लागू करने वाले स्कूलों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू करने की धमकी दी है। इस बीच, स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने बुधवार शाम एक बयान जारी किया।
- उन्होंने कहा कि मराठी भाषा अनिवार्य है और हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाएं वैकल्पिक हैं।
- भुसे ने स्पष्ट किया कि, “शिक्षण के माध्यम की परवाह किए बिना, मराठी सभी स्कूलों में एक अनिवार्य विषय होगा।”
- “मराठी नहीं पढ़ाने वाले स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
क्या महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य है: विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों और विपक्षी नेताओं का मानना है कि यह वास्तव में अनिवार्य-हिंदी नीति का पिछले दरवाजे से प्रवेश है। उन्होंने इसे मराठी लोगों के साथ विश्वासघात भी बताया है। महाराष्ट्र राज्य बोर्ड के स्कूलों में महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य नहीं होगी। लेकिन यह डिफ़ॉल्ट विकल्प होगी, जब तक एक कक्षा में कम से कम 20 छात्र वैकल्पिक भाषा नहीं चुनते।
रमेश पानसे, वरिष्ठ शिक्षाविद् व राज्य पाठ्यक्रम रूपरेखा संचालन समिति के सदस्य ने कहा :
“सरकार पिछले दरवाजे से मराठी बच्चों के नाजुक मन पर हिंदी का बोझ डाल रही है। यह शिक्षा नहीं, दबाव है। मराठी समाज को इस साजिश का डटकर विरोध करना चाहिए।”
दीपक पवार, संस्थापक, मराठी भाषा अभ्यास केंद्र ने तीखी प्रतिक्रिया दी :
“सरकार ने मराठी लोगों से जो वादा किया था, वह अब टूट गया है। अगर हम अभी नहीं बोले, तो यह संघीय ढांचे और संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की आत्मा को खत्म करने की शुरुआत होगी।”
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