न्यायमूर्ति वर्मा नकद विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने RTI याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति वर्मा नकद विवाद में एक अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने RTI अधिनियम के तहत दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र की प्रति मांगी गई थी।
गोपनीयता और विशेषाधिकार का हवाला
चार सूत्री तर्कों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने RTI याचिका को खारिज किया:
- सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने संचार की गोपनीयता को सर्वोपरि बताया।
- यह जानकारी सार्वजनिक करना संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
- आंतरिक समिति की रिपोर्ट को साझा करना न्यायिक प्रक्रियाओं पर असर डाल सकता है।
- CJI द्वारा भेजे गए पत्रों को संवेदनशील माना गया।
याचिका में उस रिपोर्ट और पत्र की मांग की गई थी जो नकद विवाद में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ आरोपों की पुष्टि करता है। CJI संजीव खन्ना ने इस रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा था।
तीन सदस्यीय समिति की जांच
तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की समिति ने नकद विवाद की जांच की थी। पैनल में शामिल थे:
- शील नागू, मुख्य न्यायाधीश, पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट
- जी.एस. संधावालिया, मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
- अनु शिवरामन, न्यायाधीश, कर्नाटक हाईकोर्ट
मुख्य बिंदु:
- समिति ने 3 मई को रिपोर्ट सौंप दी थी।
- रिपोर्ट के आधार पर न्यायमूर्ति वर्मा को पद छोड़ने की सलाह दी गई थी।
- उन्होंने रिपोर्ट पर 6 मई को जवाब भी भेजा।
- यह पत्र और रिपोर्ट CJI ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजे।
दिल्ली स्थित आवास पर आग और नकद बरामदगी
विवाद की शुरुआत दिल्ली के लुटियन जोन स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास में 14 मार्च की रात आग लगने की घटना से हुई थी।
जांच में शामिल तथ्य:
- आग लगने के बाद दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा और दिल्ली फायर चीफ समेत 50 लोगों के बयान लिए गए।
- आग लगने के बाद कथित तौर पर नकदी बरामद हुई, जिससे मामला और गंभीर हुआ।
- जांच रिपोर्ट ने इन आरोपों को प्रथम दृष्टया सही माना।
न्यायमूर्ति वर्मा का खंडन
न्यायमूर्ति वर्मा ने खुद पर लगे सभी आरोपों का खंडन किया। उन्होंने:
- दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को विस्तृत जवाब भेजा।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पैनल के सामने भी साफ इनकार किया।
- उन्होंने कहा कि कोई अवैध नकदी उनके पास नहीं मिली।
इसके बावजूद, प्रशासनिक स्तर पर कई कदम उठाए गए।
जैसे-जैसे विवाद बढ़ा, लिए गए प्रशासनिक कदम:
- दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने न्यायमूर्ति वर्मा से न्यायिक कार्य वापस लिया।
- बाद में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित किया गया।
- सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 24 मार्च को स्थानांतरण की सिफारिश की।
- 28 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के CJ को निर्देश दिया गया कि फिलहाल उन्हें कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए।
विधिक विशेषज्ञों की राय
विधिक विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा RTI याचिका खारिज करना कानून के उन प्रावधानों को उजागर करता है जो न्यायपालिका की गोपनीय प्रक्रियाओं की रक्षा करते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा, “यह मामला न्यायिक पारदर्शिता और गोपनीयता के बीच संतुलन की आवश्यकता को दर्शाता है। यदि समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाती है, तो इससे न्यायाधीशों की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है, परंतु जवाबदेही भी उतनी ही जरूरी है।”
वहीं, पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे का कहना है कि, “RTI कानून में न्यायिक कार्यों और आंतरिक संचार को विशेष दर्जा प्राप्त है। CJI द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्रों को सार्वजनिक करना न केवल असंवैधानिक हो सकता है, बल्कि इससे संसदीय प्रक्रिया में अनावश्यक हस्तक्षेप होगा।”
कई विधिक विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि चूंकि यह मामला न्यायिक नैतिकता से जुड़ा है, इसलिए यह आवश्यक है कि महाभियोग की प्रक्रिया तक पहुंचने से पहले सभी पहलुओं पर गोपनीय ढंग से विचार किया जाए। सार्वजनिक बहस से पहले न्यायिक संस्थाओं को अपनी आंतरिक प्रक्रिया पूरी करने का अधिकार होना चाहिए।
इस राय से स्पष्ट है कि न्यायपालिका की पारदर्शिता की मांग और संवैधानिक प्रक्रियाओं की गोपनीयता के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
आगे की कार्रवाई कार्यपालिका के पाले में
अब न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में अंतिम निर्णय कार्यपालिका और संसद के पास है। अगर वह इस्तीफा नहीं देते, तो उनके खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
महत्वपूर्ण जानकारी:
- CJI खन्ना ने प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र भेजा।
- पत्र के साथ समिति रिपोर्ट और न्यायमूर्ति वर्मा का जवाब भी संलग्न किया गया।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब आगे की प्रक्रिया संसद और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में है।
न्यायपालिका की पारदर्शिता बनाम गोपनीयता
इस घटनाक्रम से एक बड़ा सवाल उठता है: क्या न्यायिक जवाबदेही की मांग सूचना अधिकार से टकराती है?
- सुप्रीम कोर्ट का रुख स्पष्ट है – संवेदनशील संचार RTI अधिनियम के दायरे से बाहर है।
- वहीं पारदर्शिता की मांग करने वालों का कहना है कि न्यायिक आचरण जनता के सामने आना चाहिए।
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