महाराष्ट्र बैंक में मराठी भाषा न बोलने पर कर्मचारी के साथ हिंसा पर सवाल?

लोनावाला में मराठी विवाद: बैंक कर्मचारी के साथ मारपीट
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं ने लोनावाला स्थित महाराष्ट्र बैंक की एक शाखा में हंगामा किया और एक कर्मचारी को मराठी न बोलने के आरोप में पीट दिया। घटना तब हुई जब कार्यकर्ताओं ने बैंक प्रबंधक को नोटिस देकर मांग की कि सभी कर्मचारी ग्राहकों से केवल मराठी में बात करें। चर्चा के दौरान, एक कर्मचारी ने हिंदी के उपयोग का बचाव किया, जिससे नाराज़ कार्यकर्ताओं ने उसके साथ मारपीट की। इस तरह महाराष्ट्र बैंक में मराठी भाषा न बोलने पर कर्मचारी के साथ हिंसा पर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
मनसे का मराठी थोपने का अभियान: क्या है पृष्ठभूमि?
यह घटना मनसे प्रमुख राज ठाकरे के गुड़ी पड़वा रैली में दिए गए चेतावनी भरे बयान के बाद सामने आई। ठाकरे ने जोर देकर कहा था कि सरकारी और निजी संस्थानों में मराठी को अनिवार्य बनाया जाए। पार्टी का दावा है कि महाराष्ट्र बैंक के 99% ग्राहक स्थानीय हैं, जिनमें बुजुर्ग और ग्रामीण लोग शामिल हैं, जो हिंदी नहीं समझते। उन्होंने महाराष्ट्र भाषा अधिनियम, 1965 का भी हवाला दिया, जो सार्वजनिक कार्यालयों में मराठी के उपयोग को अनिवार्य करता है।
मुंबई से लोनावाला तक: मनसे का ‘गुलाब और पत्थर’ रणनीति
राज्यव्यापी अभियान के तहत मनसे कार्यकर्ता बैंकों में जाकर मराठी लागू करने की मांग कर रहे हैं। मुंबई में कुछ बैंक प्रबंधकों को गुलाब और पत्थर देकर चेतावनी दी गई। यह रणनीति “पहले सम्मान, फिर धमकी” के सिद्धांत पर आधारित है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले एक सप्ताह में ऐसी 15+ घटनाएं दर्ज की गई हैं।
बीएमसी चुनाव और मराठी अस्मिता: कैसे जुड़े हैं दोनों?
विश्लेषकों का मानना है कि यह अभियान बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) चुनाव से पहले मनसे की सियासी पैंतरेबाज़ी है। BMC भारत का सबसे अमीर नगर निगम है, और मराठी मुद्दे पर एजेंडा सेट करके पार्टी स्थानीय मतदाताओं को लुभाना चाहती है। 2022 के BMC सर्वे के अनुसार, मुंबई की 42% आबादी मराठीभाषी है, जबकि 29% हिंदीभाषी हैं।
भाषाई हिंसा पर सवाल: क्या है कानूनी पहलू?
इस घटना ने भाषाई हिंसा और कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं। महाराष्ट्र पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की है। विधि विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार के अनुसार, “भाषा थोपने की मांग संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। ग्राहक और कर्मचारी अपनी सुविधा की भाषा चुन सकते हैं।” वहीं, महाराष्ट्र सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं: समर्थन vs विरोध
इस मामले ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है। #MarathiVsHindi ट्रेंड कर रहा है, जहां एक तबका मनसे के समर्थन में है, तो दूसरा इसे “भाषाई फासीवाद” बता रहा है। मराठी सेलिब्रिटी समीर कोटक ने ट्वीट किया, “भाषा प्रेम ठीक है, पर हिंसा गलत।” वहीं, युवाओं का एक वर्ग इसे रोजगार और समावेशन के लिए खतरा मान रहा है।
महाराष्ट्र बैंक का रुख: क्या कहता है डेटा?
महाराष्ट्र बैंक के 2023 के आंकड़े बताते हैं कि राज्य की 78% शाखाओं में हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में सेवाएं दी जाती हैं। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में 35% कर्मचारी गैर-मराठीभाषी हैं। बैंक प्रबंधन ने एक बयान जारी कर कहा है कि वे “स्थानीय भाषा के सम्मान” और “कर्मचारियों की सुरक्षा” के बीच संतुलन बनाएंगे।
हिंसा अस्वीकार्य, मराठी संवर्धन शांतिपूर्ण तरीके से हो CM फडणवीस
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा बैंक कर्मचारी की पिटाई की घटना पर सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त की है। फडणवीस ने कहा कि, “भाषा को लेकर हिंसा या धमकी देना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।
महाराष्ट्र सरकार मराठी भाषा के सम्मान और संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन यह काम कानून और शालीनता के दायरे में होना चाहिए।” उन्होंने पुलिस को निर्देश दिए कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें और भविष्य में ऐसी घटनाएं रोकने के लिए सख्त निगरानी रखें।
फडणवीस ने यह भी स्पष्ट किया कि “महाराष्ट्र भाषा अधिनियम, 1965 के तहत सरकारी कार्यालयों में मराठी अनिवार्य है, लेकिन निजी संस्थानों में भाषा का चयन प्रबंधन और ग्राहकों की सुविधा पर निर्भर करता है।”
उन्होंने बहुभाषी समावेशन पर जोर देते हुए कहा कि राज्य में हर भाषा और संस्कृति का सम्मान किया जाता है। साथ ही, उन्होंने राज ठाकरे के एजेंडे पर प्रत्यक्ष टिप्पणी से परहेज करते हुए कहा कि “राजनीतिक दलों को भाषाई मुद्दों का इस्तेमाल सियासी फायदे के लिए नहीं करना चाहिए।”
फडणवीस का रिकॉर्ड: मराठी समर्थक, पर अतिवाद के विरोधी
देवेंद्र फडणवीस ने पहले भी मराठी भाषा को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं। 2022 में, उनकी अगुवाई वाली सरकार ने मराठी भाषा दिवस को राज्य स्तर पर मनाने का फैसला किया था। हालांकि, वे भाषाई हिंसा और अतिवाद के खिलाफ लगातार मुखर रहे हैं।
2019 में, उन्होंने मुंबई में ‘हिंदी vs मराठी’ विवाद के दौरान कहा था कि “महाराष्ट्र सभी भाषाओं का सम्मान करता है, लेकिन यहां की स्थानीय भावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।” विश्लेषकों का मानना है कि BMC चुनाव से पहले फडणवीस का यह बयान सांप्रदायिक तनाव को नियंत्रित करने की रणनीति का हिस्सा है।
भाषा vs संवैधानिक अधिकार की लड़ाई
यह घटना भाषाई संवेदनशीलता और राष्ट्रीय एकता के बीच तनाव को उजागर करती है। यह अपने पसंद की भाषा चुनने और बोलने की आजादी के संवैधानिक अधिकार अनुच्छेद 19(1)(ए) का उलंघन है. जो देश के प्रत्येक नागरिक को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें अपनी पसंद की भाषा चुनने और बोलने की स्वतंत्रता भी शामिल है।
जहां मनसे महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान बचाने की बात करती है, वहीं विरोधी इसे अतिवाद बता रहे हैं। आगे की राह कानूनी प्रक्रिया और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगी।
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