डेरिव इन्वेस्टमेंट्स:भाजपा को 50 करोड़, कांग्रेस को 3.2 करोड़
रूंगटा संस: 50 करोड़
भारत बायोटेक: 50 करोड़
दिनेश चंद्र आर. अग्रवाल इंफ्राकॉन:भाजपा को 30 करोड़
दिलीप बिल्डकॉन: 29 करोड़
मैक्रोटेक डेवलपर्स: 27 करोड़
कॉर्पोरेट दान का बोलबाला: क्यों चिंताजनक है?
रिपोर्ट के अनुसार, 88.9% दान कॉर्पोरेट और व्यावसायिक संस्थाओं से आया। भाजपा को इनसे 2,064.58 करोड़ रुपये मिले, जो अन्य दलों के संयुक्त कॉर्पोरेट फंडिंग (229.92 करोड़) से 9 गुना अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह असमानता लोकतंत्र में “फंडिंग असंतुलन” को बढ़ावा देती है, जिससे छोटे दलों के लिए चुनावी प्रतिस्पर्धा मुश्किल हो जाती है।
इलेक्टोरल ट्रस्ट: दान का मुख्य जरिया
प्रूडेंट और ट्रायम्फ जैसे इलेक्टोरल ट्रस्ट कॉर्पोरेट दान के प्रमुख चैनल बन गए हैं। ये ट्रस्ट कंपनियों से फंड लेकर उसे विभिन्न दलों में वितरित करते हैं। 2013 में इलेक्टोरल ट्रस्ट के नियम सख्त होने के बावजूद, इनके माध्यम से दान की राशि में लगातार वृद्धि हुई है।
चुनावी बॉन्ड्स के बाद क्या बदला?
2018 में चुनावी बॉन्ड्स की शुरुआत के बाद, राजनीतिक दान में पारदर्शिता पर सवाल उठे थे। हालांकि, 2023 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन्हें असंवैधानिक घोषित करने के बाद, दानदाताओं के नाम सार्वजनिक करना अनिवार्य हो गया। एडीआर की यह रिपोर्ट इसी नए नियम के तहत जारी की गई है।
जनता की प्रतिक्रिया और मांगें
इस रिपोर्ट ने सोशल मीडिया पर चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता की मांग को फिर से गर्मा दिया है। कई संस्थाएं अब दान की सीमा तय करने और कॉर्पोरेट फंडिंग पर नियंत्रण की वकालत कर रही हैं। साथ ही, विपक्षी दल भाजपा पर “कॉर्पोरेट तुष्टीकरण” का आरोप लगा रहे हैं।
क्या है भविष्य का रास्ता?
एडीआर की रिपोर्ट ने एक बार फिर साबित किया है कि भारतीय राजनीति में फंडिंग का बड़ा हिस्सा कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में केंद्रित है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए, दान के स्रोतों और राशि पर सख्त निगरानी और समान वितरण के नियम जरूरी हैं। अगले चुनावों तक इन मुद्दों पर बहस तेज होने की उम्मीद है।
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