बैसरन घाटी सुरक्षा चूक: सरकार से पूछे गए तीखे सवाल

सुरक्षा चूक से दहशत, खुली छूट मिली आतंकियों को
बैसरन घाटी सुरक्षा चूक के कारण पर्यटक इलाका आतंकियों के निशाने पर आ गया। सुरक्षा प्रबंध बेहद लचर और असंगठित रहे। बिना किसी ठोस योजना के इलाके को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। स्थानीय पुलिस पहले ही घुसपैठ की चेतावनी दे चुकी थी, लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया। CRPF और सेना की तैनाती भी न्यूनतम स्तर पर रही, जिससे सुरक्षा में बड़ा छेद हुआ। टूरिज्म सीजन शुरू करने के लिए जल्दबाज़ी में निर्णय लिया गया, जबकि खुफिया इनपुट को दरकिनार कर दिया गया। इसी लापरवाही का फायदा उठाकर आतंकियों को खुला मैदान मिल गया।
जल्दबाज़ी में खोला गया इलाका, खुफिया चेतावनी को किया नजरअंदाज
बैसरन घाटी को पर्यटकों के लिए खोलने का निर्णय टूरिस्ट सीजन के दबाव में लिया गया। सुरक्षा एजेंसियों ने पहले ही आतंकी गतिविधियों की आशंका जताई थी, लेकिन उसे दरकिनार कर दिया गया। नतीजा ये हुआ कि आतंकियों को खुला मैदान मिल गया। सेना और अर्धसैनिक बलों की सीमित तैनाती और स्पष्ट योजना की कमी ने इस इलाके को एक सॉफ्ट टारगेट बना दिया।
राजनीतिक बैठक में विपक्ष ने घेरा सरकार को
बैसरन हमले के बाद बुलाई गई आपात बैठक में विपक्षी दलों ने सरकार पर गंभीर सवाल उठाए। नेताओं ने पूछा कि बिना पर्याप्त सुरक्षा इंतज़ाम के घाटी को क्यों खोला गया। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट को किसने नजरअंदाज किया? स्थानीय पुलिस द्वारा पहले ही अलर्ट दिए जाने के बावजूद कोई प्रभावी कदम क्यों नहीं उठाया गया? बैठक में यह भी सवाल उठा कि क्या टूरिज्म सीजन के दबाव में सुरक्षा को बलि चढ़ा दिया गया?
- क्या CRPF और सेना को जानबूझकर सीमित तैनाती में रखा गया?
- आखिर किसने खुफिया रिपोर्टों को दबाया और क्यों?
- क्या केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को पर्याप्त संसाधन दिए?
- उरी जैसे पुराने हमलों से कोई सबक क्यों नहीं लिया गया?
विपक्ष ने सरकार से पूछे ये सवाल
बैठक में विपक्षी दलों ने भाजपा सरकार को घेरते हुए कई तीखे सवाल पूछे:
- “क्या घाटी में शांति का दावा झूठा था?”
- “घुसपैठ की जानकारी के बावजूद पर्यटन क्यों शुरू किया गया?”
- “क्या बैसरन को बिना खुफिया मंजूरी खोला गया?”
- “स्थानीय पुलिस को नजरअंदाज क्यों किया गया?”
- “घाटी में UAV निगरानी क्यों नहीं हो रही थी?”
- “क्या यह पर्यटकों की जान को खतरे में डालना नहीं था?”
- “क्या लश्कर और TRF से जुड़े मॉड्यूल पर खुफिया इनपुट मिला था?”
इन सवालों पर गृह मंत्रालय के अधिकारी कोई सीधा जवाब नहीं दे सके।
पहले भी हुई हैं ऐसी घटनाएं
बैसरन घाटी सुरक्षा चूक कोई पहली घटना नहीं, ऐसे उदाहरण अतीत में भी दर्ज हैं।
- 2006 में लश्कर के आतंकी पकड़े गए थे पहलगाम के पास।
- 2017 अमरनाथ यात्रा पर हमला हुआ, जिसमें सात तीर्थयात्री मारे गए।
- 2021 में भी सेना ने पर्यटन सीजन में अतिरिक्त तैनाती की मांग की थी।
हर बार पर्यटन बढ़ते ही आतंकी घटनाएं बढ़ जाती हैं, फिर भी सरकार चूक दोहराती रही है।
सरकार की आगे की रणनीति
बैठक के बाद सरकार ने कई नए सुरक्षा उपायों की घोषणा की है।
- बैसरन में UAV निगरानी सिस्टम जल्द तैनात होगा।
- विशेष कमांडो यूनिट को त्वरित तैनाती के निर्देश।
- सभी पर्यटन स्थलों की “जोखिम प्रोफ़ाइलिंग” की जाएगी।
- CRPF की दो नई कंपनियां तैनात होंगी।
विशेषज्ञों का कहना है, “जब तक नीति में स्थायित्व और संज्ञान नहीं होगा, हालात नहीं सुधरेंगे।”
बैसरन हमले के बाद देशभर में उरी जैसी जवाबी कार्रवाई की मांग उठने लगी है। पूर्व सैन्य अधिकारियों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अब केवल कड़ी निंदा से काम नहीं चलेगा। पाकिस्तान प्रायोजित आतंक को सीमा पार जवाब देना ज़रूरी हो गया है। रक्षा विशेषज्ञों ने सरकार को याद दिलाया कि 2016 में उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक ने निर्णायक संदेश दिया था। अब दोबारा वैसी ही कठोर कार्रवाई की ज़रूरत महसूस हो रही है।
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