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डिजिटल जनगणना जातीय आंकड़े- भारत की 2027 की जनगणना

डिजिटल जनगणना जातीय आंकड़े

भारत में अगली जनगणना, जिसे ‘जनगणना-2027’ नाम दिया गया है, 1 मार्च 2027 तक पूरी होगी। यह स्वतंत्र भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी। 1931 के बाद यह पहली व्यापक जाति-आधारित गणना है। इसका अर्थ है कि हम पहली बार व्यापक डिजिटल जनगणना जातीय आंकड़े एकत्र कर पाएंगे।

  • यह एक ऐतिहासिक कदम है।
  • इसके दूरगामी सामाजिक निहितार्थ होंगे।
  • आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव भी पड़ेंगे।

मुख्य बिंदु :

  1. भारत की पहली डिजिटल जनगणना 2027 तक पूरी होगी, जातिगत आंकड़े भी जुटाए जाएंगे।
  2. 1931 के बाद पहली बार व्यापक जाति-आधारित आंकड़ों का संग्रह होगा।
  3. जनगणना दो चरणों में होगी – पहले मकानों की सूची, फिर जनसंख्या गणना।
  4. जनगणना ऐप और सेल्फ एनुमरेशन से नागरिक डिजिटल रूप से जानकारी भर सकेंगे।
  5. जनगणना से पिछड़ी जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का सटीक विश्लेषण संभव होगा।
  6. आरक्षण सीमा बढ़ाने और नीति निर्धारण में यह आंकड़े निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
  7. राजनीतिक प्रतिनिधित्व और संसाधन वितरण में बड़े बदलाव संभव, परिसीमन से सीटें बदलेंगी।

जनगणना 2027: एक नया आरंभ

कोविड-19 महामारी के कारण 2021 की जनगणना टल गई थी। अब 16 साल बाद यह जनगणना हो रही है। भारत में जनगणना का इतिहास 1872 में शुरू हुई पहली गैर-समकालिक जनगणना से जुड़ा है। 1881 में हुई पहली पूर्ण समकालिक जनगणना के बाद से यह प्रत्येक दस वर्ष में निर्बाध रूप से आयोजित होती रही है। 2021 में यह क्रम बाधित हो गया था।

  • गृह मंत्रालय के अनुसार, जनगणना दो चरणों में होगी।
  • पहला चरण अप्रैल से सितंबर 2026 तक चलेगा।

चरणबद्ध प्रक्रिया और समयरेखा

पहले चरण में मकानों की सूचीकरण (House Listing) होगा। इसमें सभी इमारतों, चाहे वे स्थायी हों या अस्थायी, उनके प्रकार, सुविधाओं और संपत्ति का विवरण दर्ज होगा। जनगणना का दूसरा चरण फरवरी 2027 में होगा। यह जनसंख्या गणना (Population Enumeration) का चरण है। यह लगभग एक महीने तक चलेगा। 1 मार्च 2027 जनगणना की संदर्भ तिथि (Reference Date) तय की गई है।

  • जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फीले क्षेत्रों में संदर्भ तिथि 1 अक्टूबर 2026 होगी।
  • इन क्षेत्रों में गणना अक्टूबर 2026 से ही शुरू हो जाएगी।

डिजिटल नवाचार और भागीदारी

यह भारत की पहली पूरी तरह से डिजिटल जनगणना होगी। इसके लिए 30 लाख से अधिक गणनाकर्ताओं (enumerators) को मोबाइल ऐप पर प्रशिक्षित किया जाएगा। स्वयं गणना (self-enumeration) की सुविधा भी उपलब्ध होगी। नागरिक अपने मोबाइल उपकरणों का उपयोग करके अपनी जानकारी खुद दर्ज कर सकेंगे।

  • यह उन परिवारों के लिए है जिन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को ऑनलाइन अपडेट किया है।
  • डेटा प्रबंधन और निगरानी के लिए एक समर्पित जनगणना पोर्टल भी विकसित किया गया है।

कानूनी आधार और ऐतिहासिक निर्णय

भारतीय जनगणना जनगणना अधिनियम, 1948 और जनगणना नियम, 1990 के तहत आयोजित होती है। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत संघ सूची की प्रविष्टि 69 में शामिल है। इसका अर्थ है कि यह केंद्रीय सरकार का विषय है। इस अधिनियम के तहत जानकारी की गोपनीयता सुनिश्चित की जाती है। एकत्र किया गया डेटा अदालतों में भी प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

  • जनगणना कराने के इरादे की अधिसूचना 16 जून 2025 तक प्रकाशित होने की उम्मीद है।
  • यह जनगणना अधिनियम की धारा 3 के प्रावधानों के तहत आवश्यक है।

केंद्रीय कैबिनेट ने 30 अप्रैल 2025 को आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़ों को शामिल करने की स्वीकृति दी थी।

जाति-वार गणना का ऐतिहासिक महत्व

इस जनगणना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू जाति-वार गणना का समावेश है। आजादी के बाद से, केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) की ही गणना होती थी। 1931 के बाद यह पहला मौका होगा जब देश में सभी जातियों के आंकड़े एकत्र किए जाएंगे।

  • सरकार ने स्पष्ट किया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को एक समूह के तौर पर दर्ज नहीं किया जाएगा।
  • बल्कि व्यक्तियों से उनकी विशिष्ट जाति का उल्लेख करने को कहा जाएगा।

व्यक्ति अपनी जाति तो दर्ज कराएगा, लेकिन यह नहीं बताया जाएगा कि वह ओबीसी वर्ग में आता है या नहीं। यह इसलिए है क्योंकि OBC की कोई एक केंद्रीय या एकीकृत सूची नहीं है। केंद्र और राज्यों के लिए अलग-अलग ओबीसी सूचियां हैं। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो हमें वास्तविक डिजिटल जनगणना जातीय आंकड़े देगा।

सामाजिक और नीतिगत लाभ

जाति-वार गणना से देश में विभिन्न जातियों की सटीक संख्या का पता चलेगा। इससे पिछड़े और अति-पिछड़े वर्गों की शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति की स्पष्ट तस्वीर मिलेगी। सरकार उनके लिए अधिक प्रभावी और लक्ष्यित नीतियां बना सकेगी।

  • कई विशेषज्ञों का मानना है कि देश के कई हिस्सों में अभी भी जातिगत भेदभाव मौजूद है।
  • जाति-वार गणना वंचित समूहों की पहचान करने में मदद करेगी।
  • सामाजिक असमानताओं को दूर करने में भी यह सहायक होगी।

आरक्षण और संवैधानिक निहितार्थ

जातिगत जनगणना के आंकड़े आने के बाद, आरक्षण पर 50 प्रतिशत की वर्तमान सीमा को बढ़ाने की मांग उठ सकती है। खासकर यदि ओबीसी आबादी वर्तमान अनुमानों से अधिक निकलती है। बिहार जैसे कुछ राज्यों ने पहले ही अपने स्तर पर जाति सर्वेक्षण कराए हैं। उन्होंने आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात की है।

  • संविधान का अनुच्छेद 340 सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थितियों की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
  • जातिगत जनगणना इन संवैधानिक प्रावधानों को पूरा करने में सहायक हो सकती है।

डिजिटल जनगणना जातीय आंकड़े: निहितार्थ और चुनौतियां

जाति-वार गणना के आलोचकों का तर्क है कि यह देश में जातियों के बंटवारे को और मजबूत करेगी। यह सामाजिक विभाजन को गहरा कर सकती है। यह ‘प्रतिस्पर्धी पिछड़ापन’ की स्थिति को जन्म दे सकती है। इसमें विभिन्न समूह लाभों के लिए स्वयं को निम्न दर्जा प्राप्त वर्ग के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। गलत जाति बताने पर सरकार के पास जांच का कोई पैमाना नहीं होगा। इससे आंकड़ों की सटीकता पर सवाल उठ सकते हैं।

  • इस जनगणना का राजनीतिक महत्व भी बहुत अधिक है।
  • 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के नतीजों के आधार पर लोकसभा और विधानसभाओं का परिसीमन (Delimitation) होना है।

वर्तमान में लोकसभा सीटें 1971 की जनगणना पर आधारित हैं। नई जनगणना के बाद होने वाले परिसीमन से राज्यों के बीच सीटों के बंटवारे में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। उन दक्षिणी राज्यों को नुकसान हो सकता है जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में बेहतर प्रदर्शन किया है। महिला आरक्षण विधेयक भी इस परिसीमन के बाद ही लागू होगा। जनगणना के नतीजों का राजनीतिक दलों पर गहरा असर पड़ सकता है।

सटीकता और समावेशी विकास

सरकार ने कोविड-19 महामारी को जनगणना में देरी का कारण बताया है। उनका तर्क है कि महामारी के तुरंत बाद जनगणना कराने वाले देशों को गुणवत्ता और कवरेज में समस्याएं मिलीं। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि जो डिजिटल जनगणना जातीय आंकड़े एकत्र किए जाएं, वे सटीक और विश्वसनीय हों। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार सभी दलों को साथ लेकर आम सहमति बनाने में सफल होती है या नहीं। इन आंकड़ों का उपयोग किस प्रकार से देश के भविष्य को आकार देने में किया जाता है।

  • यह जनगणना देश को अपनी नीतियों को अधिक सटीकता से लक्षित करने में मदद करेगी।
  • संसाधनों के वितरण को अनुकूलित करने में भी सहायक होगी।
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